“कला आ संस्कृति केर हृदयस्थली अछि मिथिला”

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— कीर्ति नारायण झा     

मिथिलाक विश्व प्रसिद्ध कला – मिथिला आदिकालहि सँ कला आ संस्कृति केर हृदयस्थली रहल अछि। मिथिलाक पुरूष पूजा पाठ आ स्त्रीगण हुनका संग पूजा पाठ केर ओरियान में सहयोग दैत कला केर एतेक सुन्दर नमूना प्रस्तुत कयलनि जे आइ ओ कला विश्वप्रसिद्ध अछि। नित्य दिन मिथिलानी भगवानक पूजा के लेल पूजा स्थान के गाय केर गोवर सँ पवित्रता के संग नीपि कऽ पूजा हेतु उपयुक्त बनबैत छैथि। मिथिलाक कोनो पावनि अथवा शुभ कार्य में अरिपन बनयवाक ब्यवस्था अछि जे बहुत सुंदर मिथिलाक कला में अपन स्थान रखैत अछि। मिथिला पेटिंग अथवा मधुबनी पेंटिंग आइ विश्व भरि मे अपन सर्वोच्च स्थान रखने अछि। मधुबनी जकर शाब्दिक अर्थ छैक मधु केर जंगल आ ई पेंटिंग बिहारक एकटा प्रमुख चित्रकला के रूप में जानल जाइत अछि। मिथिला पेटिंग में अधिकतर कुलदेवी देवता के चित्रण देखाओल जाइत अछि। ई पेंटिंग दू प्रकारक होइत अछि – भित्ति चित्र आ अरिपन अथवा अल्पना। आरम्भ में मिथिलानी द्वारा देबाल पर अथवा पाथर पर पेंटिंग बनाओल जाइत छल मुदा समय केर संग संग एहि में परिवर्तन भेल गेल आ ई कपड़ा आ कागज पर खूब बनाओल गेल। आब ई कला स्त्रीगण केर संग संग पुरूष वर्ग में सेहो पसरि रहल अछि। मिथिला पेटिंग के सभ सँ पैघ विशेषता छैक जे एकर रंग घरेलू चीज सँ बनाओल जाइत छैक जेना पीयर रंग हरैद सँ, हरियर रंग केराक पात, लाल रंग पीपरक छाल सँ, सफेद रंग चून सँ अथवा दूध सँ बनाओल जाइत अछि। पेंटिंग में चित्र बनयवाक लेल सलाई केर काठी आ करची केर कलम के उपयोग कयल जाइत छैक। रंग खूब नीक जकाँ पकड़ैक ताहि लेल बबूलक गोंद रंग में मिलाओल जाइत छैक। १९३४ ई. सँ पहिले ई पेंटिंग गामक लोक कला के रूप में जानल जाइत छलैक मुदा १९३४ के भूकंपक बाद ई कला अंतरराष्ट्रीय कला के रूप में अपन स्थान पयवा में सफल भेल। एकर सभ सँ पैघ श्रेय विलियम आर्चर जे ओहि समय मधुबनी में पदस्थापित छलाह आ भूकंप सँ भेल तवाही के देखवाक क्रम में खूब सुन्दर सुंदर पेंटिंग देखि ओ मंत्रमुग्ध भऽ गेलाह जकर चर्चा ओ १९४९ में अपन लेख “मार्ग” में विस्तार सँ चर्चा कयलनि जे समस्त विश्व में मिथिला पेंटिंग केर सुंदरता के बारे में विश्व के परिचित कयलक। मिथिला पेटिंग के महान विभूति में अनेकों मिथिलानी अपन ध्वज पताका 🚩 फहराओने छैथि जाहि मे १९६९ में बिहार सरकार द्वारा सम्मानित मधुबनी जिलाक जितवारपुर के सीता देवी के बिहार रत्न आ शिल्प गुरु सँ सम्मानित कयल गेल। १९७५ में जगदम्बा देवी, १९८४ में सीता देवी, २०११ में महासुंदरी देवी के मिथिला पेंटिंग के लेल पद्मश्री सम्मान सँ सम्मानित कयल गेलीह। बउआ देवी १९८४ में राष्ट्रीय पुरस्कार आ २०१७ में पद्मश्री सम्मान सँ विभूषित भेलीह। मिथिलाक कला वास्तव मे अद्वितीय अछि। कोनो शुभ काज मे घरक वातावरण के पेंटिंग के द्वारा एकटा अत्यन्त मांगलिक कऽ दैत अछि। जय मिथिला आ जय मिथिलाक अद्वितीय कला 🙏