— आभा झा
हिंदू धर्ममें पितृपक्षक काफी महत्व छैक। पितृपक्षक दौरान पितरक तर्पण, श्राद्ध केनाइ शुभ मानल जाइत छैक। भाद्रपद शुक्ल पक्षक पूर्णिमा तिथिक संग पितृपक्षक शुरूआत भ’ जाइत छैक, जे अश्विन मासक अमावश्याक संग समाप्त होइत छैक। मानल जाइत छैक कि पितृपक्षक दौरान पितृगण पृथ्वी पर अबैत छथि और अपन परिवारकेँ सुख- समृद्धिक आशीर्वाद दैत छथिन। हुनकर श्राद्ध और तर्पण पूरा विधि-विधान सँ कएल जाइत छैन्ह। एहि सँ हुनकर आत्माकेँ शांति भेटैत छैन्ह। पितृपक्षक दौरान कोनो शुभ या मंगल कार्य नहिं करबाक चाही।देवताक तर्पण सँ देवॠण, ॠषि तर्पण सँ ॠषि ॠण आ पितर तर्पण सँ पितृॠण सँ मुक्ति भेटैत छैक। ज्योतिषशास्त्रक अनुसार जखन मृतककेँ अंतिम संस्कार विधिपूर्वक नहिं कएल जाइत छैक या ककरो अकाल मृत्यु भ’ जाइत छैक एनामें परिवारकेँ पितृदोषक सामना करय पड़ैत छैक। कहल जाइत छैक कि पितृदोषक असर पीढ़ी दर पीढ़ी चलैत रहैत छैक। पितृ दोषक कारण ही परिवारकेँ आर्थिक संकटक सामना करय पड़ैत छैक। घरमें कलह-क्लेश होइत रहैत छैक। नौकरी या व्यापारमें मेहनतक बावजूद भी अनुकूल फल नहिं भेटैत छैक। एना में पितृपक्षक दौरान पितरक तर्पण क’ अहाँ पितृ दोष सँ मुक्ति पाबि सकैत छी।हम जाहि समयमें पितृपक्ष मनबैत छी, यानी कि अश्विन मासक पितृपक्षमें ओहि समय पंद्रह दिन तक चंद्रमा पृथ्वीकेँ सर्वाधिक निकट रहैत छथि।ताहि दुवारे कहल गेल अछि कि पितर हमर निकट आबि गेल छथि।
शास्त्रक अनुसार, पितृपक्षमें ब्राह्मण भोजन करबैकेँ विधान छैक। मान्यता अछि कि ब्राह्मण द्वारा भोजन कएला सँ भोजन सीधे पितर तक पहुँचैत छैन्ह। ब्राह्मणक संग वायु रूपमें पितर सेहो भोजन करैत छथि।ताहि दुवारे अपन मिथिलामें सेहो बिना ब्राह्मण भोजनक श्राद्धक परंपरा पूर्ण नहिं मानल जाइत छैक। ब्राह्मण भोजन सँ पितर प्रसन्न होइत छथि और रक्षा कवच जेकां परिवारकेँ सुरक्षित राखै छथि।मनुष्य अगर श्राद्धमें ब्राह्मण या गरीबकेँ भोजन कराबैमें असमर्थ छथि, तखन ओ पूर्वजक स्मरण करैत एक मुट्ठी कारी तिल दान क’ देथिन त’ हुनकर पितर तृप्त भ’ जेथिन।कोनो कारणवश मनुष्य इहो नै क’ पाबैथ त’ ओ पितृपक्षमें भोरे जलमें सात टा कारी तिल डालि क’ पितरक स्मरण क’ हुनका जल समर्पित क’ सकैत छथि।हुनकर पितर खुश भ’ जेथिन।पितृपक्षक दौरान पितरक सद्गतिक लेल पिण्डदान और तर्पणक लेल कारी तिल और कुशक उपयोग कैल जाइत छैक। तिल और कुश दुनू भगवान विष्णुक शरीर सँ निकलैत छैन्ह और पितरकेँ सेहो भगवान विष्णुक स्वरूप मानल जाइत छैन्ह। मान्यता अछि कि बिना तिलकेँ श्राद्ध कएल जाय त’ दुष्ट आत्माक प्रकोप हावि भ’ जाइत छैक। गरूड़ पुराणक अनुसार ब्रह्मा,विष्णु, महेश कुशमें क्रमश: जड़ि
मध्य और अग्रभागमें रहैत छथि।कुशक अग्रभाग देवताक, मध्य मनुष्यक और जड़ि पितरक मानल जाइत छैन्ह। तिल पितरकेँ प्रिय और दुष्टआत्माकेँ दूर भगाबै वाला मानल जाइत छैक। तिलक दान कतेको सेर सोनाक दानकेँ बराबर होइत छैक। तर्पणमें तिल व कुशकेँ ईश्वरक विभूति कहल गेल छैक।
तर्पण कर्मक प्रकार- पुराणमें तर्पणकेँ छह भागमें विभक्त कएल गेल अछि – 1- देव तर्पण 2- ॠषि तर्पण 3- दिव्य मानव तर्पण 4- दिव्य पितृ तर्पण 5- यम तर्पण 6- मनुष्य पितृ तर्पण।
श्राद्ध कर्मक लाभ- ।। श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छादम्।।
भावार्थ- श्रद्धा सँ श्रेष्ठ संतान, आयु, आरोग्य, अतुल एश्वर्य और इच्छित वस्तुक प्राप्ति होइत छैक।
वेदक अनुसार एहि सँ पितृॠण चुकता होइत छैक। पुराणक अनुसार, श्रद्धायुक्त भ’ क’ श्राद्धकर्म कएला सँ पितृगण ही तृप्त नहिं होइत छथि, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र,दुनू अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, ॠषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी सेहो तृप्त होइत छथि।संतुष्ट भ’ क’ पितर मनुष्यक लेल आयु,पुत्र, स्वर्ग, कीर्ति, बल, वैभव, पशु , सुख, धन- धान्य दैत छथि। जय मिथिला जय मैथिली।
आभा झा
गाजियाबाद