— उग्रनाथ झा
पितर पक्ष अपन पूर्वज के प्रति श्रद्धा आ समर्पण के पक्ष अछि । एतय पक्ष सऽ आशय छैक पखबारा। यानी भादव मासक पूर्णिमा सँ आसिन मासक अमावस्या तक चलैत छैक ।ओना त एहि पक्षक महत्व पूरा हिन्दू धर्मावलंबी के बीच छैक । पुरा भारत अपन अपन परंपरा अनुसार मनबै छथि । मुदा मिथिला में एकर अपन विशिष्टता छैक ।मिथिला सं बाहर त तील दान , पोखरि में भात आ तील मिश्रीत पिंड बनाय पीतरक नाम पर जलप्रवाह, पितरक नामे जलघट दान ईत्यादी , मुदा मिथिला में एकर वैशिष्ट्यता के संग अलौकिक, शास्त्रोक्त परंपरा छैक । मान्यता छैक जे एहि पक्ष में पूर्वज अपन वंशजक यश , किर्ती वंश परंपरा के देखबाक उद्देश्य सँ धराधाम पर अबैत छथि । जाहि हेतु हुनकर वंशजक द्वारा पुर्वजक स्वागत सत्कारमे अन्न जल दान होएत छैक जाहि सँ हुनका पटि होएत छन्हि ।आ प्रसन्नचीत भय पाक्षिक यात्रा समापन करैत पुनः निज धाम वापस जाए जाईत छथि।एहि क्रम मैथिल लोकनि के तर्पण (जलदान)करबाक विधान छैक ।ई तर्पण तीन प्रकारे संपादित होएत छैक । प्रथम देवतर्पण , दोसर ऋषि तर्पण आ तेसर पितर तर्पण । पितर तर्पण में अपन निकट पूर्वज (पिता)सँ जल दान प्रारंभ करबा विधान छैक ताहि हेतु पिता जिबैत तर्पण निषेध छैक ।तत्पश्चात ज्ञात(नाम) पूर्वज सभक नाम सँ अन्यथा यथानामो सं उभय पक्ष(मातृक/पैतृक) के जलदान करबाक चाहि। एहि में ज्ञाताज्ञात वंशज के जलदान क सकै छि बंधेज नहि छैक। संगहि एहि प्रक्रिया में मुख्यत: तील कुश आ जल के प्रधानता छैक । यज्ञोपवीत धारि देव तर्पण सव्य में, ऋषि तर्पण मालाकार आ पितर तर्पण अपसव्य में करैत छथि ।देव ऋषि तर्पण(धर्मपारायणता) देखि पुर्वज प्रसन्न होईत छथि। पितृपक्षक पूर्ण जीवंत वंश परंपरा के द्योतक अछि, जाहि मे कम सँ कम पूर्वज के प्रति हमरा लोकनिक कर्तव्य आ संतान (पुत्र/पुत्री)प्राप्ति के सार्थकता के द्योतक छैक । किएक त जौ पुत्र जलदान के अधिकारी छथि त पुत्री से हो अन्नदान क सकैछ । एहि पक्षक अनुसार पितर के देहावसान के तिथि जे पड़ैत छन्हि ओहि तिथि के पितरक नाम पर अन्नदान (ब्राह्मण भोजन) के विधान छैक आ नवमी तिथि के मातृनवमी के नाम सँ जानल जाईछ , एहि दिन यथासंभव ज्ञाताज्ञात पितराईन (उभयपक्ष)सभक नामे अन्नदान होईछ। ई अन्नदान (ब्राह्मण भोजन)करेबाक लेल पुत्र पुत्री दूनूक अधिकार छन्हि। पितर पक्षक के संबंध में कहल जाईत छैक जे एहि में पितरक नाम पर कएल गेल दान शिघ्र पटि होईत छैक आ संतुष्ट पितर यश -किर्ति, धन समृद्ध वंश वृद्धिक आशिष दैत छथि। ताहि लेल यथा संभव अपन संबंधिक लेल से हो कर सकै छि ।मिथिला में एहि सारगर्भित मान्यता के उत्सवी रूप में मनाओल जाएत छैक । आई कतबो आधुनिकता के दौड़ में हमरा लोकनि मृत्यु भोज , श्राद्ध कर्म के विरोध में हाहाकार मचा दी । श्राद्धकर्म करौनिहार के हेय दृष्टिऐ देखि । मुदा जहन एहि तरहक बात सोझा अबैत छैक त कहा विमुख होईत छि । कतेक के हम व्यक्ति रूपे जनैत छि जे एहि सभ के आडम्बर के संज्ञा दैत छथि मुदा जहन समय अबैत छैक सभस पहिने कुश तील ल पोखरि पर पंडी जी के बाट तकैत भेट जेताह । आखिर किछु त पारंपरिक रहस्य छैक जे आदिकाल सँ आबि रहल परंपरा वर्तमान तक अक्षुण्ण छैक । इएह अक्षुण्णता त सनातन संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ बनाबैति छैक ।
सादर