— कीर्ति नारायण झा
पितृपक्ष।अर्थात पितृ के समर्पित पक्ष अर्थात् १५ दिन। इ पक्ष भादव मास के शुक्ल पक्ष में आरम्भ होइत अछि आ एहि में अगस्त मुनि द्वारा तर्पण करवाक शास्त्रीय विधान मानल जाइत अछि। पितृ के तर्पण कयला सँ हुनकर आशीर्वाद प्राप्त होइत छैक आ पारिवारिक कलह, विद्वेष आ अन्य परेशानी सभ समाप्त भऽ जाइत छैक।
भारतीय धर्म शास्त्र आ कर्मकांड केर अनुसार पितर देवता स्वरूप होइत छैथि। एहि पक्ष में पितर के निमित्त दान, तर्पण, श्राद्ध के रूप में श्रद्धापूर्वक करवाक चाही कारण पितृपक्ष में कयल गेल श्राद्ध कर्म सांसारिक जीवन के सुखमय बनवैत वंश वृद्धि करैत अछि। एतवे नहिं, पितृपक्ष में कयल गेल श्राद्ध कर्म श्राद्ध के फल प्रदान करैत अछि – “पितृपक्ष पितर श्राद्ध कृतम येन स गया श्राद्धकृतं भवेत।”
हिन्दू धर्म में भगवानक पूजा सँ पहिले पितर सभ के स्मरण आ आह्वान कयल जाइत छैन्ह। पितर के प्रसन्न करवाक लेल एहि मंत्र के पाठ कयल जाइत अछि “ॐ पितृगणाय विद्वहे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पवित्रो प्रचोदयात्, ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः, ॐ आद्य – भूताय विद्वहे सर्व सेवाव्य धीमहि”। पितर के पूजा करवाक बहुत महत्व छैक कारण मान्यता छैक जे पितर के प्रसन्न भेला पर पूजा करवाक फल अवश्य भेटैत छैक आ पूजा सफल मानल जाइत छैक। श्राद्ध कयला सँ पितर के मुक्ति प्राप्त होइत छैन्ह, एहेन मान्यता छैक जे पितर के विधि विधान सँ पूजा कयला सँ पितर के आत्मा के शान्ति भेटैत छैन्ह आ श्राद्ध कयलाक उपरान्त पितर के प्रेत योनिं सँ मुक्ति भेटि जाइत छैन्ह अन्यथा पितर केर आत्मा मृत्यु लोक में भटकैत रहैत छैन्ह जकरा हमरा लोकनि भूत प्रेत के रूप में कथा सुनैत छी। ज्योतिष शास्त्रक अनुसार पितृ दोष बहुत घातक मानल जाइत छैक। पितृ दोष जकर कुंडली में पाओल जाइत छैक ओकर जिनगी दुखसँ आ संकट सँ भरल रहैत छैक। धन हानि, रोग, कलह आ परेशानी में आदमी फँसि जाइत अछि तेँ पितृ के पूजा करवाक प्रावधान छैक। पितृपक्ष के अवधि मे कोनो शुभ कार्य नहिं कयल जाइत छैक। कोनो नव काज केर आरम्भ नहि कयल जाइत छैक।
एकटा धार्मिक मान्यता के अनुसार पितर एहि समय में कौआ के रूप धारण कऽ कऽ पृथ्वी पर अबैत छैथि तें कौआ के भोजन करेवाक परम्परा विख्यात अछि। गया स्थित फलगू नदी मे पिंडदान श्राद्ध तर्पण इत्यादि कयल जाइत अछि आ तकर बाद ओहिठाम सटले विष्णुपद मंदिर में विशेष पूजा अर्चना कयल जाइत अछि। पितृपक्ष में शुद्ध साकाहारी भोजन करवाक प्रावधान होइत अछि एकर अतिरिक्त एहि अवधि मे प्याज, लहसून, चना, जीर, काला नमक, कारी सरशो, खीरा, भांटा, मौसरी के दालि के जहां धरि संभव होअय खयवा सँ वर्जित करवाक प्रयास करी तऽ सर्वथा उत्तम, ओना सभ सँ बेसी महत्व छैक जे पितर के लेल श्रद्धा आ सहृदय भक्ति….