जितिया पाबनि आ नव परम्परा मे जितिया पाबनि महोत्सव

विराटनगर केर टोल-टोल सँ कलश यात्रा सहितक जीतिया महोत्सव पूरा भेल

जितिया पर्व महोत्सव

विराटनगर मे काल्हि आयोजित होयत

विराटनगर केर टोल-टोल सँ कलश यात्रा सहितक जीतिया महोत्सव के दृश्य – फाइल फोटो

महेन्द्र मोरंग कैम्पस के हाता मे सब साल जेकाँ अहु बेर वृहत् स्तर पर जितिया पर्व महोत्सव केर आयोजन ‘अपन विराटगढ़ परोपकार समाज’ एवं सामाजिक नेतृ वसुन्धरा झाक अगुवाई मे कयल जायत। एहि बेर नेपालक पूर्व प्रधानमंत्री श्री के पी ओली एहि महोत्सवक मुख्य अतिथि हेताह। जन-जन मे उत्साह संग उत्कंठा सेहो अछि जे बहुचर्चित नेता के पी ओली एहि महोत्सव सँ आम मधेशी जनसमुदाय केँ कि सन्देश देता। एक दिश जतय नागरिकताविहीन समाज पैछला सात वर्ष सँ हाय-हाय कय रहल अछि, जेकरा स्वयं प्रधानमंत्री रहैत अध्यादेश जारी कय केँ ओ समाधान करबाक चेष्टा कयलनि लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश सँ रोकि देल गेल, पुनः एखुनका सरकार सदन सँ पास कयलक बिल लेकिन ओली जीक पार्टी एकर विरोध करैत अन्ततोगत्वा राष्ट्रपतिक दुआरि मे फँसौने अछि…. एहेन चिन्ताजनक अवस्था मे ओली जीक पार्टी सँ क्रुद्ध-विरूद्ध आम मधेशी जनता लेल किछु सार्थक सन्देश लय कय अओता से उम्मीद कयल जा रहल अछि।

जितिया पाबनि के आध्यात्मिकता

मिथिलाक जीवन परम्परा वेदविहित निर्देशन अनुसार संचालित होयबाक यथार्थ सँ सब कियो परिचिते छी। याज्ञवल्क्य, गौतम, शतानन्द आदि जेहेन महान ऋषिगण आ स्वयं राजा जनक जेहेन महान विद्वान लोकनि ई जीवन-पद्धति निर्माण कयलनि। आइयो धरि मिथिला पद्धति केँ माननिहार सामान्यजन यैह निर्देशन अनुसार अपन-अपन जीवनचर्या, व्रत, उपवास आर पूजा-पाठ केर धर्माचरण संग गृहस्थ जीवन जिबैत छथि। जितिया पाबनि एहने पौराणिक कथा मे आधारित एक गोट कठिन व्रत धारण कय सन्तान सभ दीर्घायु हुए आर ओकरा लोकनिक सब मनोकामना पूर्ण होय एहि कामनाक संग मनायल जाइत अछि।

मनुष्य जीवन मे सन्तानक महत्व कतेक पैघ होइछ आर सभक इच्छा सन्तानप्रति केहेन उच्चभावक होइत छैक से केकरो सँ नुकायल विषय नहि अछि। एहि मर्म केँ मानव जीवन मे व्रत साधनाक माध्यम सँ स्थापित करबाक कार्य मिथिला सभ्यताक एक अनूठा आर अत्यधिक महत्वपूर्ण पर्व थिक जितिया।

एकर दोसर पक्ष अछि मानव-मानव बीच सामुहिकता (संगठन) निर्माण करबाक सुन्दर वैधानिक संकल्प केर। जितिया व्रत करनिहाइर गाम भरिक माय लोकनि समूहहि टा मे नहाइत छथि, घाट पर सरिसोतेल-खइर घेरा-झुंगनी के पात पर चढ़बैत छथि, आर सब मिलिजुलि समूह मे सबटा विध-विधान पूरा करैत राजा शालिवाहनक पुत्र जिमुतवाहन केर कुशक मूर्ति बनाय जल सँ भरल कलश मे हुनका स्थापित कय केँ पूजा करैत छथि आर पौराणिक जितिया व्रत कथा सुनैत छथि। मानव जीवन मे समूह आर समाजक कतेक पैघ महत्व होइछ आर सब कियो मिलिजुलि बसला सँ केहेन सभ्य व सुसंस्कृत समरस समाज केर निर्माण होइत अछि से सन्देश देल करैत अछि ई जितिया पाबनि।

ई सामान्यतया तीन दिनक व्रत होइत छैक, कखनहुँ काल ई चारिम दिन धरि सेहो चलि जाइत छैक। तिथि आ काल केर गणना मे आधारित रहिकय नहाय-खाय सँ आरम्भ भ’ आसिन मासक कृष्ण पक्ष केर अष्टमी तिथि केँ निर्जला – अर्थात् जलो तक बिना ग्रहण कएने व्रत करैत छथि सधवा या विधवा माय आर एहि अवस्था मे ओ सब सन्तानक आयु व सुख-समृद्धिक देवता जिमुतवाहन देव केँ बेर-बेर स्मरण करैत अपन-अपन सन्तान सभक दीर्घायु होयबाक संग-संग अन्य विभिन्न सुन्दर-सुखद कामना सब करैत रहैत छथि।

विगत एक दशक सँ जितिया पर्व महोत्सव के शुरुआत

मानव समाज केँ सुसभ्य बनेबाक एहेन महत्वपूर्ण पाबनि सभक बड पैघ भुमिका रहल देखल जाइछ। आ, जितिया पाबनि केँ आरो प्रभावकारी, सशक्त बनेबाक लेल व मानव‍-मानव बीच परस्पर प्रेम एवं सद्भावना बढेबाक लेल, भाषा-संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन संग सामाजिक-राजनीतिक विषय सब पर सेहो चिन्तन करबाक लेल आइ-काल्हि जितिया व्रत आ पाबनि सँ पूर्वहि ‘जितिया पर्व महोत्सव’ मनेबाक परम्परा के शुरुआत भेल अछि। ई शुरुआत एहि ऐतिहासिक मोरंग केर भूमि विराटनगर सँ हमरा लोकनिक सामाजिक नेतृ वसुन्धरा झा केर अगुवाई मे एगारह वर्ष पहिनहि सँ भेल। आब ई जितिया महोत्सव सम्पूर्ण नेपाल राष्ट्र मे मनायल जाय लागल अछि। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर मे सेहो महोत्सवक रूप मे मनायल जेबाक तथ्य भेटय लागल अछि।

हरिः हरः!!