चराचर जगत्पति सहस्रशीर्ष पुरुष प्रति समर्पित: स्वाध्यायांश

स्वाध्याय (आध्यात्मिक वृत्तांत)

sahasra sheersha purushamपवित्र चतुर्मास मे पुरुष सूक्तक नित्य पाठ जरुर करबाक बात कैल गेल अछि। मैथिल हिन्दू जनमानस मे समस्त कर्म करबा मे पुरुष सूक्त केर उपयोगिता सर्वमान्य अछि।

ओना तऽ शौचादि सँ निवृत्त होइत स्नानादिक उपरान्त एकर विशेष लाभ होयत, लेकिन आजुक कलियुग आ खास कऽ के जखन लोक फेसबुक आदि लसैड़ सँ लस्सा-सटाइमे पडि गेल अछि, तखन एतहु एहि महत्त्वपूर्ण स्तोत्रकेर पाठ जरुर कय लेल करब।

टिप्पणी:

ऋग्वेद १०.९० सूक्त पुरुष सूक्त कहाइत अछि। एहि सूक्तकेर ऋषि नारायण छथि आ देवता पुरुष छथि। पुरुष वैह जे प्रकृतिकेँ प्रभावित कय सकय। पुरुष सूक्त के बुझबाक कुंजी हमरा लोकनिकेँ स्कन्द पुराण ६-२३९ सँ प्राप्त होइत अछि जतय पुरुष सूक्त केर विनियोग विष्णु केर मूर्तिक अर्चनाकेँ अनेको स्तर पर कैल गेल अछि।

प्रथम मन्त्र
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा अत्यतिष्ठद्दशांगुलम्।।

श्वेताश्वर उपनिषद ३.१४ में एहि मन्त्रक पूर्व निम्नलिखित मन्त्र प्रकट होइत अछि –

अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये संनिविष्टः।
हृदा मन्वीशो मनसाभिक्लृप्तो य एतद्विदुरमृतास्ते भवन्ति।।

श्वेताश्वरोपनिषदकेर एहि मन्त्र में अंगुष्ठमात्र पुरुष सँ अभिप्राय स्वयं नारायण ऋषि सँ भऽ सकैत अछि जे सहस्रशीर्षा आदि बनैत, ब्रह्मा बनिकय प्रकृतिकेँ प्रभावित करय लेल चाहैत छथि, जाहिमें सृष्टि करबाक चाहत अछि।

शतपथ ब्राह्मण १३.६.१.१ में पुरुषमेधकेर वर्णन अछि। एतय कहल गेल अछि जे नारायण पुरुष कामना केला जे वैह सब भूतक अतितिष्ठन करैथ। ओ एहि पुरुषमेध पंचरात्र यज्ञक्रतु देखाय और एकर यजन करैत सब भूतक अतितिष्ठन केलाह। एहि सँ संकेत भेटैत अछि जे पुरुष सहस्रशीर्षा जे पुरुष उत्पन्न हेता, हुनका आरो अधिक पवित्र करबाक संभावना आदि विद्यमान अछि। पुरुषकेर निरुक्ति पुरि शेते इति पुरुष रूप में कैल गेल अछि। अविकसित स्थितिमें कालपुरुष प्रकृतिकेर नियन्त्रण कय रहल छथि।

द्वितीय मन्त्र
पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।।

एहि मन्त्रक विनियोग आसन समर्पण हेतु अछि। एहि मन्त्र में भूत और भव्य केर उल्लेख अछि जेकरा पुरुष कहल गेल अछि। पुरुष वैह होइत अछि जे प्रकृतिकेँ प्रभावित कय सकय। भूतकालक कर्मक फल वर्तमानकेँ प्रभावित करैत अछि, अतः ओहो पुरुषै होइछ। भव्य या भविष्य वर्तमानकेँ प्रभावित करैछ या नहि, से विवादास्पद अछि।

तृतीय मन्त्र
एतावानस्य महिमाऽतो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।

एहि मन्त्रक विनियोग पाद्य जल अर्पित करबाक लेल अछि, ओ पाद्य जाहिमें गंगाकेर सेहो समावेश हो।

चतुर्थ मन्त्र
त्रिपादूर्ध्व उदैत् पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशने अभि।।

एहि मन्त्रक विनियोग अर्घ्य अर्पित करबाक लेल अछि। एहि मन्त्र केर दोसर पाद में कहल जा रहल अछि जे तीन पाद ऊपर उदय भेलाक बाद ओ पुरुषकेर एक पाद फेर नीचाँ तरफ आयल और फेर ओ पुरुष ओहि भूत सभक प्रदक्षिणा केलैन जे अशन(भूख) सँ ग्रस्त होइत अछि आ जे क्षुधारहित होइत अछि।

पंचम मन्त्र
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः।।

एहि मन्त्रकेर विनियोग आचमन हेतु अछि।

षष्ठम मन्त्र
यत् पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः।।

एहि मन्त्रक विनियोग स्नान हेतु अछि। एहि मन्त्रमें आज्यकेर प्रकट भेनाय के वसन्त कहल जा रहल अछि। साधारण भाषामें आज्य ओहि घृतकेँ कहल जाइछ जे दुग्धकेर ऊपर स्वाभाविक मन्थनक कारण प्रकट भऽ जाइत अछि। योगक भाषा में आज्यकेँ आ-ज्योति कहल जा सकैत अछि। एहि तरहें जखन आज्य प्रकट भऽ जाय, तखन वसन्तक प्रादुर्भाव मानबाक चाही। वसन्त में सूतल प्राण जागि जाइत छैक, अंकुर निकलय लगैत छैक। जखन सबटा शरीर इंधनकेर भांति तेजसँ जरय लगैछ, ओकरा ग्रीष्म बुझबाक चाही। शतपथ ब्राह्मण १३.६. में पांच गो ऋतुकेँ पंचरात्रक ५ अह में विभाजित कैल गेल छैक एवं लोक सभक रूप में सेहो विभाजन कैल गेल छैक। एहि लोककेँ वसन्त, अन्तरिक्ष व एहि लोक केर बीचक स्थितिकेँ ग्रीष्म, अन्तरिक्षकेँ वर्षा आ शरद, अन्तरिक्ष आ द्युलोक केर बीचक स्थितिकेँ हेमन्त तथा द्युलोककेँ शिशिर कहल गेल छैक। शिर शिशिर थीक जखन कि पाद या प्रतिष्ठा वसन्त थीक।

सप्तम मन्त्र
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये।।

एहि मन्त्रकेर विनियोग वस्त्र पहिरबाक लेल अछि।

अष्टम मन्त्र
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम्।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान् ग्राम्याश्च ये।।

एहि मन्त्रक विनियोग यज्ञोपवीत धारण करेबाक लेल अछि। पृषदाज्य केर अर्थ होइछ ओ आज्य जाहिमें आसुरी तत्त्व मिलल रहैछ। आरण्यक पशु हमरा लोकनिक ओ वृत्ति सभ भऽ सकैत अछि जेकर पर नियन्त्रण नहि कैल जा सकैत छैक। ग्राम्य पशु ओ वृत्ति सभ भऽ सकैत अछि जेकरा पर नियन्त्रण कैल जा सकैत अछि।

नवम मन्त्र
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत।।

एहि मन्त्रक विनियोग चन्दनादि के सुलेप हेतु अछि।

दशम मन्त्र
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता अजावयः।।

एहि मन्त्रक विनियोग पुष्प अर्पण हेतु अछि।

एकादश मन्त्र
यत् पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमिस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते।।

एहि मन्त्रक विनियोग धूपदान हेतु अछि।

द्वादश मन्त्र
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।

एहि मन्त्रक विनियोग दीपदान हेतु अछि।

त्रयोदश मन्त्र
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत।।

एहि मन्त्रक विनियोग अन्न निवेदन हेतु अछि।

चतुर्दश मन्त्र
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात् तथा लोकाँ अकल्पयन्।।

एहि मन्त्रक विनियोग नमस्कार हेतु अछि।

पंचदश मन्त्र
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्।।

एहि मन्त्रक विनियोग भ्रमण या प्रदक्षिणा हेतु अछि।

षोडश मन्त्र
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।

एहि मन्त्रक विनियोग देव सायुज्य हेतु अछि।

पुरुष सूक्त केर विनियोग प्रेत केँ पिण्डदान हेतु पिण्डनिर्माण करबाक समय सेहो होइत अछि। अतः ई विचारणीय अछि जे पिण्डनिर्माण में, ऊर्जाकेँ ठोस रूप प्रदान करबामें, ऊर्जाकेर अव्यवस्था या एण्ट्रांपी कम करबामें पुरुषसूक्त कोन तरहें सहायता कय सकैत अछि।

प्रथम लेखन – ७-४-२०११ ई.( चैत्र शुक्ल चतुर्थी, विक्रम संवत् २०६८)

हरि: हर:!!

स्रोत: http://puranastudy.freeoda.com/pur_index18/purushasukta.htm