आम आदमी – मैथिली कविता
– मीना मिश्रा “मुक्ता”
पटना, पटेल नगर।
” आम आदमी”
अभावक चौकी पर नृत्य करैत
भावनाक उछाह केँ के देखत?
गरीबीक धरातल पर चित्कार मारैत
मोनक आर्तनाद केँ के सुनत?
बीत जाइत अछि जीनगी
दालि -रोटीक जोगार करैत।
दम तोड़ि दैत अछि जवानी
जीनगीक पसीनाक धारक प्रवाह करैत।
कहाँ रहि पबैत अछि मनुख
मनुखक पहचान में।
भेटैत छै ओकरा रंग-बिरंगक नाम
अभावक तावा पर सेकल रोटी सन।
जीवनक झंझावात मे लेपटायल रहैत छै
एकटा आम आदमीक जीवन।
भोर-सांझक पेटक हिसाब मे
बीत जाइत छै आम आदमीक जीवन।
जखन पड़ैत छै खगताक डांग
भूख सं ब्याकुल ओकर शरीर पर।
तखने सबटा सेहन्ता जरि जाइत छै
बचै छै मात्र आवश्यकता।
और बिसर जाइत अछि मनुख, मनुखता
आ मनुख बनि जाइत अछि “हैवान”।
संघर्ष और सहनशीलताक डोरी
छुटि जाइत छै ओकरा हाथ सं।
साहस भ जाइत छै धराशायी
पेटक आगि मे आहूति दैत अछि मनुख,
अपन जिनगीक स्वर्णिम क्षणक,
और तखने पबैत अछि उपाधि “मनुखक झर” के।
अफसरशाही आ तानाशाही के
बेदना झेलब बनि जाइत छै मजबूरी।
नै भरि पबैत अछि परिवारक पेट
चाहे करैत अछि दुनू सांझ मजदूरी।
और कखनो-कखनो विरोधक आंधी
मारै छै जरल करेज मे हिलकोर।
आ ठाढ़ भ जाइत अछि अपन अधिकार लेल,
चाहे कतबो मर्दन कयल जाइ ओकर हिम्मत कें।
तखने होइत छै ओकर नामकरण “हेहर” के,
बृद्धावस्था पेंसन आ राहत के सामान लेल।
दौड़ैत-दौड़ैत घसैत अछि अपना एंड़ीक बेमाय,
कै बेरक किस्त, चलि जाइत छै,
मुखिया और नेताक फुललाहा पेट में
और आश्वासनक मरहम लगबैत रहैत अछि
अपन धीया-पूताक शरीर पर।
एहने मनुख भ जाइत अछि बेसी काल बहीर
आ चलैत-रहैत अछि अनबरत
हाकिमक दलान दिश।
और पबैत अछि एक दिन उपाधि “थेथ्थर” के
हम सब देखै छी जीनगी मे
रंग-बिरंगक मनुख।
हमरे अहां मे छथि
ओ “आम आदमी”
जकरा अंतरमन मे रहैत छै
कोनो ने कोनो दुःख।
मुदा, हम मात्र उपाधि दैत छी।
कहां मेटित कत पबैत छी ओकर भूख???