— कीर्ति नारायण झा
मिथिला केर पेट भरय बला पावैन चौरचन जाहि में पुरुकिया, ठकुआ इत्यादि पकवान केर ढेर लागल रहैत अछि। भादव मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी अर्थात चौठ तिथि में साँझ पङला पर चौठ चन्द्र केर पूजा होइत छैन्ह। पुराण केर अनुसार एहि दिन चन्द्रमा के कलंक लागल छलनि ताहि कारण सँ चन्द्रमा के दर्शन कयला सँ कलंक लगैत अछि। मिथिला मे एकर निवारण हेतु रोहिणी केर संग संग चतुर्थी चन्द्रक पूजा कयल जाइत अछि। स्कंद पुराण केर अनुसार एक बेर भगवान कृष्ण के मिथ्या कलंक लागल छलनि ओ एहि वाक्य सँ मुक्त भेलाह ब्रम्ह वैवर्त पुराण, अध्याय – ७८,”सिंहः प्रसेन मवधीत, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक! मा रोदीः, तव एष स्यमन्तकः।। अर्थात्” हे सुंदर राजकुमार। एहि मणि के लेल सिंह प्रसेन के मारलन्हि आ जाम्बवान् ओहि सिंह के संहार कयलनि। अहाँ जुनि कानू। आब एहि स्यमन्तक मणि पर मात्र अहीं केर अधिकार अछि” एकटा अन्य कथा केर अनुसार एक बेर गणेश भगवान के देखि चन्द्रमा हँसि देलखिन्ह। एहि पर गणेश जी तमशा क चन्द्रमा के श्राप देलखिन्ह जे, जे अहाँ के देखत ओ कलंकित भऽ जाएत। तखन चन्द्रमा गणेश जी केर पूजा कयलनि आ तखन प्रसन्न भऽ क गणेश जी कहलथिन्ह जे अहाँ निष्पाप छी। जे व्यक्ति भादव शुक्ल चतुर्थी कऽ अहाँक पूजा कऽ “सिंह प्रसेन वला मन्त्रक संग अहांक दर्शन करताह हुनका मिथ्या कलंक नहि लगतैन्ह आ हुनकर सभ मनोरथ पूर्ण हेतैन्ह। मंत्र पढैत दर्शन करवा काल हाथ में फल अवश्य रहवाक चाही ते अपना सभक ओहिठाम दर्शन करवा काल नारियल, टाभ नेवो, सेब संतोला इत्यादि हाथ में ल क लोक चन्द्रमा केर दर्शन करैत छथि। चन्द्रमा के देखवाक काल कोनो आवश्यक नहिं छैक जे मंत्र संस्कृत में पढी ओना संस्कृत देव भाषा थिकैक मुदा सभ संस्कृत मे मंत्रोच्चारण नहिं कऽ सकैत अछि तऽ हमरा मोन पड़ल जे हमरा घर लग छकौड़ी मंडल के घर रहैक, ओकर माय चन्द्रमा के डाली चढेबाक काल कहै जे हे चन्दा। नारियल लियअ। पुरुकिया लियअ, दैलपूरी लियअ इत्यादि।कहवाक तात्पर्य ई जे मंत्र सँ बेसी भाव केर महत्व होइत छैक।
स्कंद पुराण मे वर्णित तथ्य केर अनुसार एक दिन नारद जी पृथ्वी लोक के भ्रमण करैत जगतपति श्री कृष्ण सँ भेंट भ गेलैन्ह। चिन्ता मग्न भगवान श्रीकृष्ण के देखि नारद जी चिंताक कारण पूछलथिन्ह त कृष्ण उत्तर देलखिन्ह जे हम बेर बेर मिथ्या अपवाद सँ पीङित भ रहल छी ताहि पर नारद जी कहलथिन्ह जे प्रभु अपने निश्चित रूप स भादव मास के शुक्ल चतुर्थी दिन चन्द्रमा के देखने हेवैन्ह तेँ ई बेर बेर मिथ्या कलंक लागि रहल अछि। भगवान कृष्ण नारद सँ पूछलथिन्ह जे चन्द्र दर्शन सँ कियए दोष लगैत छैक। तखन नारद जी स्पष्ट कयलनि जे चन्द्रमा प्राचीन काल में भगवान गणेश जी द्वारा अभिशप्त भेलाह। कृष्ण पूछलथिन्ह जे गणेश जी किऐक श्राप देलखिन्ह तँ नारद जी कहलथिन्ह जे एक बेर त्रिदेव ब्रम्हा विष्णु महेश पत्नीक रुप मे अष्ट सिद्धि आओर नवनिधि के स्वामी श्री गणेश कें पुष्प अर्पण कऽ प्रार्थना कयलनि। गणेश प्रसन्न भऽ तीनू के सृजन, पालन आओर संहार कार्य के लेल आशीर्वाद देलथिन्ह। ओही समय मे चन्द्रमा अपन सुन्दरता के मद सँ चूर भऽ भगवान गणेश जी महाराज केर उपहास केलखिन। गणेश जी क्रोधित भय श्राप देलखिन्ह जे अहां जाहि सुन्दरता पर एतेक इतरा रहल छी। आई सँ जे कियो अहाँ के देखत ओ कलंकित भ जाएत। चन्द्रमा एहि कठोर श्राप सँ मलीन भऽ गेलाह। देवता लोकनि मे हाहाकार मचि गेल। सभ ब्रम्हा लग गेलाह। निर्णय भेल जे सभ मिलि गजानन केर पूजा करू। वेएह कोनो रास्ता देखताह। चन्द्रमा गणेश चतुर्थी दिन मंगलमूर्ति भगवान गणेश जी केर पूजा केलाह। गणेश बाल रूप दर्शन देलथिन्ह आ चन्द्रमा के कहलखिन्ह जे अहाँ बरदान माँगू आ चन्द्रमा शापमुक्त होयबाक बरदान मंगलखिन आ गणेश जी एवमस्तु कहि स्पष्ट केलखिन जे हमर श्राप व्यर्थ नहि जायत किन्तु शुक्ल पक्ष मे पहिल उदितकाल मे अहांक दर्शन शुभकारी होयत आ भादो शुक्ल पक्ष मे अहांक दर्शन जे करताह हुनका लान्छना लगतैन्ह परन्तु जँ ओ सिंह प्रसेन वला मन्त्र पढि कए जे दर्शन करताह आ ओहि दिन हमर पूजा करताह हुनका दोष नहि लगतैन्ह। श्री कृष्ण नारद के कथा सँ प्रेरित भऽ गणेश चतुर्थी व्रत के अनुष्ठान कयलाह तखन ओ कलंक मुक्त भेलाह आ ताहि दिन सँ समस्त मिथिला में चौरचन पावनि केर परम्परा आबि रहल अछि। जय मिथिला 🙏🙏🙏