स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
विश्वामित्र-यज्ञ केर रक्षा
पूर्वक अध्याय मे राजा दशरथ सँ हुनक प्राणो सँ बढिकय प्रिय पुत्र लोकनि राम व लक्ष्मण केँ विश्वामित्रजी अपना संग धर्म-यज्ञ आदिक रक्षा हेतु मांगिकय आनि लेलनि। ताड़का केर वध सेहो भ’ गेल। आब आगू….
१. सब अस्त्र-शस्त्र समर्पण कय केँ मुनि प्रभु श्री रामजी केँ अपन आश्रम मे लय अनलाह आर हुनका परम हितु जानि भक्तिपूर्वक कंद, मूल व फल केर भोजन करौलनि।
२. सबेरकाल श्री रघुनाथजी मुनि सँ कहलखिन – अपने जाउ आ निडर भ’ कय यज्ञ करू। ई सुनिकय सब मुनि लोकनि हवन करय लगलाह। श्री रामजी यज्ञक रखवाली पर डटल रहथि।
३. ई समाचार सुनिकर मुनि लोकनिक शत्रु कोरथी राक्षस मारीच अपन सहायक सभ केँ लय दौड़ुल। श्री रामजी बिना फल वला बाण ओकरा मारलनि जाहि सँ ओ सौ योजन के विस्तार वला समुद्र के दोसर पार जाय खसल। फेर सुबाहु केँ अग्निबाण मारलनि।
४. दोसर दिश छोट भाइ लक्ष्मणजी राक्षसक सेना केर संहार कय देलनि। एहि तरहें श्री रामजी राक्षस सबकेँ मारिकय ब्राह्मण लोकनि केँ निर्भय बना देलथि। तखन सब देवता आ मुनि लोकनि हुनक स्तुति करय लगलाह।
५. श्री रघुनाथजी ओतय किछु दिन रहिकय ब्राह्मण लोकनि पर दया कयलथि। भक्ति केर कारण ब्राह्मण लोकनि हुनका पुराण केर बहुतो रास कथा सब कहलखिन, हालांकि प्रभुजी सब जनैत रहथि। तदन्तर मुनि आदरपूर्वक बुझाकय कहलखिन – हे प्रभो! चलिकय एकटा चरित्र देखू। रघुकुल केर स्वामी श्री रामचन्द्रजी धनुषयज्ञ केर बात सुनिकय मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्रजीक संग प्रसन्न भ’ कय चलि देलाह।
हरिः हरः!!