साहित्य
– आर जे रौनक
आइ हमरो एकटा खिस्सा लिखबाक मोन भेल तैँ कने छोट एकटा खिस्सा लिखलौँ। मनुष्य केँ भगवान चाहे जतेक दय देथुन मुदा सभ गोटे तृप्त नै होइत अछि । वास्तवमे ई संसार बहुत पैघ स्वार्थी जेहन लगैया, एहने एकटा खिस्सा मोन पड़ल तैँ लिखिकय अपने सभक समक्ष परसलहुँ।
कोनो गाममे एकटा गरीब परीवार रहैत छल । ओ गरीबके तीन गोटेक परीवार छलैक, बुढा, बुढी आ एकटा बेटा । ओहि गरीब परीवारक जीवन आनक खेती-बारी आ घरक काज कय के जे किछु मजुरी भेटैत छलैक ताहि सँ गुजारा चलैत छलैक । मजुरी कय केँ जे किछु भेटैक ओहि सँ अपन भोजनक ब्यबस्था करैत छल आ बचा-खोचा कय बेटाकेँ सेहो पढाबय, दिन-राति मेहनत कय के भुखलो सुखलो रहिकय बेटाकेँ बड दुःख काटि कय कोहुना डाक्टरी पढा लेलक । भगवानक महिमा ओकरा सरकारी नौकरी सेहो भ’ गेलय । आब ओहि परिवारक दुःखक दिन घुरय लगलैक । तहन किछु दिन जे बितलैक त हुनकर एक गोट पड़ोसिन बुढी सँ जिज्ञासा करैत पुछलखिन जे, “काकी, आब कहौथ! बेटा त कमाय लगलैन्ह। आब खुशी छथि न?” त बुढी ओहि कनियाँ केँ जे उत्तर देलखिन्ह से सुनू, “दुर्र जाउ! यै कनिया! कि खुशी रहब। बेटाकेँ बड दुःख काटिकय डाक्टरी पढेलहुँ। ओ आब नोकरियो करैया। मुदा पहिने जेकाँ आब हैजा, मलेरीया कहाँ होइत छैक गाम मे जे नीक कमाइ होइतय आ हमर दिन नीक जेकाँ चलितय।”