लेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
ऐतिहासिक-पौराणिक मिथिला वर्तमान समय दुइ सम्प्रभुतासम्पन्न राष्ट्र के हिस्सा बनि गेल अछि। केना? ठीक जेना बंगाल, पंजाब आ तमिल (सिलोन) केँ क्रमशः पूर्व, पश्चिम व दक्षिण मे अंग्रेज अलग-अलग देश निर्माण करैत विभाजित कय देलक, तहिना उत्तर मे मिथिला सहित भोजपुरा, अबध, गढ़वाल, बंगाल, सिक्किम आदि सँ जुड़ि रहल नेपाली सीमा केँ खन्डित कय केँ विभाजित कय देलक। बुझल होयत जे तत्कालीन भारत जे छोट-छोट रियासतक समूह वला सम्राज्य छल, जाहि पर लगभग ११वीं शताब्दी सँ विभिन्न आक्रान्ता द्वारा आक्रमण कय केँ जबरदस्ती अपन करक्षेत्र मे आनि सम्राज्य संचालनक सिलसिला शुरू भेल तेकरे अन्तिम चरण मे ब्रिटेनक राजपरिवारक आदेश पर अंग्रेजक आगमन व्यापारीक रूप मे होइत अन्ततः भारतीय सम्राज्य केँ सेहो अंग्रेज अपन उपनिवेश मे शामिल कय लेलक।
सर्वप्रथम वास्को डि गामा २० मई १४९८ ई. युरोप सँ भारत समुद्री मार्ग होइत आयल छल आ तेकर बादहि सँ भारत युरोपियन सभक लेल सब सँ बेसी आकर्षणक केन्द्र बनि गेल छल। मुख्यतया भारतक भोजन बनेबाक तौर-तरीका युरोपियन केँ बहुत पसिन पड़ल छलैक आर भोजन मे प्रयोग कयल जायवला मसाला के ट्रेडिंग मे मुख्य रुचि छलैक ओकरा सभक। २४ अगस्त १६०८ ई. सब सँ पहिल ब्रिटिश व्यापारीक खेप सुरत (भारत) के आसपास समुद्री मार्ग सँ प्रवेश कयलक। तेकर ७ साल बाद तत्कालिक ब्रिटिश राज परिवारक फरमान सँ पहिल कारखाना सुरत मे लगेबाक निर्णय भेल छलैक। पुनः दोसर कारखाना लगेबाक लेल विजयनगर राज परिवार द्वारा मसुलीपट्टनम मे लगेबाक मंजूरी भेटलैक। धीरे-धीरे ओ सब पूरे पूर्वी आ पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र मे अपन व्यापार विस्तार करैत कलकत्ता, मद्रास आ बम्बई मे अपन पैर पसारि लेलक। लगभग १४२ वर्ष धरि व्यापार करैत-करैत भारतक विभिन्न रियासत बीच आपसी तनाव आ मनमुटाव केर लाभ उठबैत अंग्रेज १७५० ई. सँ भारत के तत्कालीन परिस्थिति मे राजनीति मे रुचि लियए लागल। घर फूटे गँवार लूटे के तर्ज पर आखिरकार अंग्रेज भारतक विभिन्न रियासत धरि अपन पैठ बनाकय सब केँ अपन कोनो न कोनो हुकुमती फरमान सँ बान्हि लेलक। एहि तरहें भारत परतंत्र बनि गेल आ एहि बीच शुरू भेल अंग्रेजक अत्याचार जाहि लेल १८५७ ई. मे पहिल सिपाही विद्रोह आ फेर लगभग ९० वर्षक स्वाधीनता संग्राम उपरान्त १९४७ ई. मे भारत स्वतंत्र भेल। १८१४ ई. मे भारतक दरभंगा महाराज व तिरहुत (मिथिला क्षेत्रक) अन्य जमीन्दार सहित भारत-नेपालक सीमावर्ती क्षेत्रक अन्यान्य राजाक कोष व सैन्यबल के प्रयोग करैत गोरखा राजाक बढैत डेग (पूब मे सिक्किम धरि आ पश्चिम मे हिमाचल धरि) केँ रोकबाक लेल विभिन्न स्थान पर युद्धक मोर्चा खोलि गोरखा राजा केँ अपन सीमा मे रहबाक लेल मजबूर कयल गेल। संगहि काठमान्डू मे सेहो ब्रिटिश सरकार केर कैम्प प्रवेश कयलक लेकिन नेपालक राज परिवार सँ सत्ता अपना हाथ मे छीनि राणा शासन अंग्रेज संग मिलिकय भारत मे सैन्य संगठन मे सहयोगीक भूमिका निर्वाह करैत आखिरकार १८६०-६५ के बीच नेपाल-भारत के सीमा (डिमार्केशन) करबय मे सफल भ’ गेल।
एहि तरहें नेपालक पहाड़ी क्षेत्र के अतिरिक्त तराई भूभाग (मैदानी इलाका) मे किछु क्षेत्र नेपाल केँ धान फसल उपजेबाक वास्ते बुझू त अंग्रेज सरकार दान मे दय देलक, जाहि पर भारतीय क्षेत्रक राजा (जमीन्दार) लोकनि अंग्रेजक भय सँ कोनो खास जोर-जबरदस्ती नहि कयलनि आ मिथिला सहित सीमावर्ती सभ्यता-क्षेत्र केर विभाजन दुइ मुलुक मे भ’ गेल। एकरे सुगौली सन्धि कहल जाइत अछि। पुनः ई सन्धि भारत स्वतंत्र भेलाक बाद ३१ जुलाई १९५० केँ नेपालक काठमान्डू मे शान्ति आ मैत्री समझौता कय केँ पुरान सब सन्धि केँ मान्यता दैत आगामी समय सेहो द्विपक्षीय सम्बन्ध केँ मजबूत बनेबाक अवधारणा पर दिल्ली-काठमान्डू मे सहमति भेल। एतय सेहो मिथिला या अन्य कोनो क्षेत्रक लोकभावना आ भविष्य मे विरोध आदिक आकलन कएने बिना पूर्वक समझौता (सुगौली सन्धि) केँ मान्यता दय देलाक कारण आखिरकार मिथिला सेहो दुइ देशक हिस्सा बनय लेल बाध्य भ’ गेल।
एकर विरोध मिथिलावादक जनक डा. लक्ष्मण झा द्वारा ‘पाया तोड़ो आन्दोलन’ के रूप मे १९५१-५३ केर बीच मे कयल गेल जाहि पर आर गहींर अध्ययन-विश्लेषणक उपरान्ते सविस्तार किछु लिखि सकैत छी। लेकिन, स्वतंत्रता के तुरन्त बाद देशक भविष्य निर्माण मे सकारात्मक योगदान देबाक लेल ई सब आन्दोलन कोनो खास स्थान नहि बना सकल आ दिल्ली-काठमांडू के समझौताक बीच मिथिला सहित ओ सब मौलिक संस्कृति के लोक पिसा गेल जे दुइ देश मे बँटा गेल छल। निस्सन्देह एहि क्षेत्रक किछु मुंहगर लोक सब केँ पद-प्रतिष्ठा आ धन-दौलत केर लोभ मे काठमांडू-दिल्ली कीनि लेलक तेहनो किछु संकेत सब भेटि रहल अछि। लेकिन अन्ततोगत्वा बिना कोनो पैघ विद्रोहक मिथिला दुइ देशक भूगोल व सम्प्रभुता मे पड़ि अपन भूगोल आ सम्प्रभुता समाप्त कय लेलक। भारत मे बिहार-बिहारी आ नेपाल मे मधेश-मधेशी बनि अपन मिथिला-मैथिल केर पहिचान सँ वंचित रहि गेल।
एहि लेख के संग नेपाल व भारत मे भेल ओ ऐतिहासिक समझौता – शान्ति आ मैत्री समझौताक प्रतिलिपि राखि रहल छी। एकर अध्ययन सँ पता चलैत अछि जे ताहि दिन के परिस्थिति मे नेपालक शासक कोना हड़बड़ मे अपन देशक सीमा रक्षार्थ भारत के हर ओ बात मानि लेलनि जेकर आब खूब विरोध कयल जाइत अछि आ ‘असमान सन्धि’ कहिकय ‘समान सन्धि’ के वकालत कयल जाइत अछि। कनी गौर करूः
शांति तथा मित्रताक सन्धि
31 जुलाई 1950
भारत सरकार और नेपाल सरकार केर बीच शांति और मित्रताक सन्धि
काठमांडू,
31 जुलाई 1950
भारत सरकार और नेपाल सरकार, दुनू देशक बीच खुशी सँ मौजूद प्राचीन संबंध केँ मान्यता दैत; एहि संबंध केँ आर बेसी मजबूत करबाक और विकसित करबाक और दुनू देशक बीच शांति कायम रखबाक इच्छा रखैत; तेँ एक दोसराक संग शांति और मित्रताक सन्धि मे प्रवेश करबाक संकल्प लेल गेल अछि, आर एहि उद्देश्य लेल, निम्नलिखित व्यक्ति सब केँ पूर्णाधिकारीक रूप मे नियुक्त कयल गेल अछि, अर्थात्:
भारत सरकार
महामहिम श्री चंद्रेश्वर प्रसाद नारायण सिंह,
नेपाल मे भारतक राजदूत।
नेपाल सरकार
मोहन शमशेर जंग बहादुर राणा,
महाराजा, प्रधान मंत्री और नेपालक सर्वोच्च कमांडर-इन-चीफ,
जे एक-दोसरक साख केर जांच कयलनि आर नीक व उचित रूप मे पेलनि, ओ निम्नानुसार सहमत भेलाह अछि: –
अनुच्छेद 1
भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच चिरस्थायी शांति और मित्रता रहत। दुनू सरकार एक-दोसरक पूर्ण संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता केँ स्वीकार करय लेल आर तेकरा सम्मान करबाक लेल परस्पर सहमत अछि।
अनुच्छेद 2
एतद्द्वारा दुनू सरकार कोनो पड़ोसी राज्यक संग केहनो गंभीर टकराव या गलतफहमीक बारे मे एक-दोसर केँ सूचित करबाक वचन दैत अछि, जाहि सँ दुनू सरकारक बीच विद्यमान मैत्रीपूर्ण संबंध मे कोनो उल्लंघन भ’ सकैत छैक।
अनुच्छेद 3
Artiele 1 मे निर्दिष्ट संबंध केँ स्थापित करय और बनाकय रखबाक लेल, दुनू सरकार एहेन कर्मचारी लोकनिक संग प्रतिनिधि लोकनिक माध्यम सँ एक-दोसराक साथ राजनयिक संबंध जारी रखबाक लेल सहमत अछि जे ओकर कार्य केँ उचित प्रदर्शनक लेल आवश्यक छैक। प्रतिनिधि और ओकर ओहेन कर्मचारी, जाहि पर सहमति भ’ सकैत अछि, एहेन राजनयिक विशेषाधिकार और उन्मुक्तिक आनंद उठेता जे परंपरागत रूप सँ अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा पारस्परिक आधार पर प्रदान कयल जाइत अछि: बशर्ते कि ओ कोनो मामला मे कोनो सरकारक संग राजनयिक संबंध राखयवला कोनो आन राज्यक स्थिति मे समान व्यक्ति केँ देल गेला सँ कम नहि होयत।
अनुच्छेद 4
दुनू सरकार कॉन्सल-जनरल, कॉन्सल, वाइस-कंसल्स और अन्य कॉन्सुलर एजेंट केँ नियुक्त करबाक लेल सहमत अछि, जे एक-दोसरक क्षेत्र मे कस्बा, बंदरगाह और अन्य स्थान मे निवास करत, जेना कि सहमति भ’ सकैत अछि। कौंसल-जनरल, कॉन्सल, वाइस-कंसल्स और कॉन्सुलर एजेंटों केँ हुनका लोकनिक नियुक्ति लेल निष्पादक या अन्य वैध प्राधिकरण प्रदान कयल जायत। यदि आवश्यक बुझल जायत त एहि तरहक एक्ज़ीक्यूटर या प्राधिकरण केँ ओहि देश द्वारा वापस लेल जा सकैत अछि जे एकरा जारी कयने छल। जतय कतहु संभव हो, वापसीक कारण केर उल्लेख कयल जायत। ऊपर वर्णित व्यक्ति पारस्परिक आधार पर ओहि सब अधिकार, विशेषाधिकार, छूट आर उन्मुक्तिक आनंद लेत जे कोनो आन राज्य केर संबंधित स्थितिक व्यक्ति सब केँ प्रदान कयल जाइत अछि।
अनुच्छेद 5
नेपाल सरकार नेपाल केर सुरक्षाक लेल आवश्यक हथियार, गोला-बारूद या युद्ध जेहेन सामग्री और उपकरण, भारत केर क्षेत्र सँ या ओहि के माध्यम सँ आयात करबाक लेल स्वतंत्र होयत। एहि व्यवस्था केँ प्रभावी करबाक प्रक्रिया दुनू सरकार केर परामर्श सँ कार्य करत।
अनुच्छेद 6
प्रत्येक सरकार, भारत और नेपाल केर बीच पड़ोसी मित्रताक प्रतीक मे, अपन क्षेत्र मे दोसरक नागरिक केँ, एहेन क्षेत्र केर औद्योगिक और आर्थिक विकास मे भागीदारीक संबंध मे और रियायत और अनुबंधक अनुदान केर संबंध मे एहि तरहक विकासक संबंध मे राष्ट्रीय उपचार देबाक वचन दैत अछि।
अनुच्छेद 7
भारत और नेपालक सरकार पारस्परिक आधार पर, एक देश के नागरिक केँ अन्य क्षेत्र मे निवास, संपत्ति के स्वामित्व, व्यापार और वाणिज्य मे भागीदारी, आंदोलन और अन्य विशेषाधिकार केर मामला मे एक समान प्रकृति आ समान विशेषाधिकार प्रदान करबाक लेल सहमत अछि।
अनुच्छेद 8
जहां धरि एतय निपटायल गेल मामलाक संबंध अछि, ई संधि: ब्रिटिश सरकार और नेपाल सरकार के बीच भारत दिशि सँ कयल गेल समस्त पैछला सन्धि, समझौता और अनुबंध केँ रद्द कय दैत अछि।
अनुच्छेद 9
ई सन्धि दुनू सरकारक हस्ताक्षर केर तारीख सँ लागू होयत।
अनुच्छेद 10
ई सन्धि ताबत धरि लागू रहत जाबत धरि एकरा कोनो पक्ष द्वारा एक वर्षक नोटिस दय कय समाप्त नहि कयल जाइत अछि।
जुलाई 1950 केर आजुक 31म दिन काठमांडू मे दुइ प्रति मे कयल गेल।
(हस्ताक्षरित)
चंद्रेश्वर प्रसाद नारायण सिंह
भारत सरकार के लेल।
(हस्ताक्षरित)
मोहन शमशेर जंग बहादुर रन,
नेपाल सरकार के लेल।