नेपाल मे नागरिकता विधेयक पर वाद-विवाद आ मिथिलाक सरोकार

नेपाल मे नागरिकता विधेयकः शंका, आशंका आ राजनीति

सर्वप्रथम नेपाल हाल धरि वितरित नागरिकता प्रमाणपत्र के तथ्य पर गौर करूः

साभारः Badrinath Jha

(Posted on Twitter: https://twitter.com/jhabadrinath/status/1559099124703989767 )

गृहमंत्रालय द्वारा २०७५ चैत्र ३ धरि देल गेल नागरिकता प्रमाणपत्र २,२१,५८,१३९ जाहि मे:

१) वंशज – २,१५,४१,४१९

२) जन्मसिद्ध – १,९०,७२६

३) वैवाहिक अंगीकृत – ४,१२,९०७

४) जन्मसिद्धक सन्तान केँ अंगीकृत – ४,७७०

५) विदेशी नागरिक केँ मानार्थ अंगीकृत – ८,१६४

नेपाल मे किछु समय सँ नागरिकता विधेयक चर्चा मे अछि। विगत किछु वर्ष मे राजनीतिक दल के आपसी गफलतबाजी मे लाखों लोक केँ अनागरिक बना सामान्य मानवीय सुविधा तक सँ वंचित राखल जेबाक वीभत्स घटना घटित होइत देखि रहल छी। चूँकि नागरिकता बिना एतय उच्च शिक्षा, बैंक खाता, नौकरी आदि नहि कय सकैत छी, नहिये एतय परिचय पत्र के अन्य कोनो विकल्प उपलब्ध अछि जाहि सँ आधारभूत मानवीय सुविधा प्राप्त कयल जा सकय, एहि तरहें लगभग ७ लाख लोक अनागरिक बनि विपन्न-असहाय जीवन जियय लेल बाध्य अछि। एहि अनागरिक लोक के हक-हित लेल आवाज सब उठबैत अछि, लेकिन समाधान दय बेर मे वैमनस्यतापूर्ण राजनीतिक झेल साफ देखल जा रहल छैक। एहि मे बेर-बेर भारत, भारतीय लोक, खुल्ला सीमा, आदिक कुतर्क राखि एहिठामक कथित राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञ आ हुनका लोकनिक अनुगामी आम जनता (बेसी पहाड़ी समुदायक लोक) नेपाल केँ फिजी आ सिक्किम के गति भेटबाक बात करैत देखल जाइत छथि।

जन्मसिद्ध नागरिकता प्राप्त नागरिकक सन्तान केँ नागरिकता सँ वंचित राखब, अथवा एतुका नागरिक सँ विवाहित भारतीय दुल्हिन या अन्य देशक दुल्हिन केँ वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता सँ वंचित राखब, ७ वर्ष नेपाल मे रहलाक बाद नागरिकता देबाक सूत्र के बात करब, राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करबाक बात करब धरि एहि सन्दर्भ मे निर्णय तक नहि करब, वैकल्पिक निदान तक नहि देब… सामान्य सुविधा सँ वंचित रखबाक घोर अमानवीय कृत्य सब देखल जा रहल अछि। एक दिश बड़का-बड़का दावी आ दोसर दिश एहि तरहक विपन्न अवस्था, सच मे अनागरिक बना अपनहि देश मे शरणार्थी बनेबाक समान देखि रहल छी।

सामाजिक संजाल मे जखन बहस देखैत छी त बुझाइत अछि जे नेपालक लोक केँ भारत संग खुलल सीमा आ भारतीय वधू किंवा अन्य भारतीय लोक द्वारा नागरिकता ग्रहण करैत जनसंख्या वृद्धि करैत आखिरकार भारतीय लोक के शासन नेपाल मे स्थापित होयबाक आन्तरिक भय के कारण नागरिकता विधेयक के विरोध भ’ रहल अछि। जखन कि श्री बद्रीनाथ झा ( @jhabadrinath ) जी द्वारा शेयर कयल गेल तथ्यांक जेकरा हम रिट्विट कयलहुँ अछि से कहि रहल अछि जे एखन धरिक वितरित नागरिकता मे एहि तरहक आशंका लेल कोनो स्थान नहि अछि। तथापि भारत आ भारतीय केँ शंकाक दृष्टि सँ देखि यथाभावी प्रतिक्रिया सब देब, नेपालक सेहत लेल कतेक उचित आ कतेक अनुचित एहि पर बेर-बेर मन्थन करब जरूरी अछि।

एहि अर्थयुग मे नेपालक अर्थतंत्र एहेन नहि जे भारत या अन्य देशक लोक एहिठाम आबि अपन रोजी-रोटी कमा सकैत अछि। ई देश एखन धीरे-धीरे विकासक पटरी पर आबिये रहल अछि। लेकिन अति-राजनीति मे विस्फोटक बात-विचार करय मे एतेक बेसी आगू देखैत छी एक निश्चित समुदाय केँ, ई सचमुच एहि क्षेत्र लेल उचित नहि बुझाइछ।

एहेन बात नहि छैक जे भारत सँ एतय लोक नहि आयल। लेकिन भारतक कोन क्षेत्र सँ बेसी आयल तेकर समीक्षा करब त मिथिला (भारत) सँ मिथिला (नेपाल) बेसी आयल देखाइत अछि। तहिना भोजपुर (भारत) सँ भोजपुर (नेपाल), अबध (भारत) सँ अबध (नेपाल), गोरखालैन्ड (भारत) सँ गोरखालैन्ड (नेपाल), अर्थात् वारी-पारी के लोक बेटी-रोटीक सम्बन्ध निर्वाह हेतु अवश्य आयल देखाइत अछि। एक विशिष्ट अन्तर्सम्बन्धक कारण नेपाल मे भारतक लोक आयल देखाइत अछि जेकर संख्या बामोस्किल २ सँ ३ लाख के अछि।

एकर अतिरिक्त राजस्थान, पंजाब, आदिक लोक केँ पूर्व राजा सभक कार्यकाल मे, राणा शासनकाल मे एतय बाकायदा आमंत्रित कय-कय केँ बसायल जेबाक कथा-गाथा सेहो भेटैत अछि। भारतक लोक एहिठामक विकास मे उल्लेखनीय योगदान देलनि आ दैत आबि रहल छथि।

वारी-पारी के लोक अपन सर-कुटुम्ब आ अपन मौलिक समाज बीच आबरजात करबे करत आ एकरा दुनियाक कोनो ताकत अलग नहि कय सकैत छैक। दमनपूर्वक शासन कयनिहार ब्रिटिश केँ जखन उखड़िकय भागय पड़ि गेलय त फेर लोकद्रोह के घटना एतय घटित नहि होयत से के कहत! वारी-पारी के बहुत पैघ क्षेत्रफल जेकरा नेपाल मे मधेश कहल जाइत छैक तेकर अन्तर्सम्बन्ध भारतक उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्र सँ समान भाषा, संस्कृति आ सभ्यताक आधार पर छैक। ‘सुगौली सन्धि’ के कारण दुइ देशक हिस्सा बना देल गेलय ब्रिटिश सरकार व तत्कालिक नेपाली राजा द्वारा।

एकर पीड़ा आ भविष्यक द्रोह के आशंका सब केँ ताख पर राखिकय एहि तरहें नागरिकताक नाम पर नेपाल मे किछु गैरसरोकारी लोकक ताण्डव आ गैर-वाजिब प्रतिक्रिया नहि केवल नेपाल-भारत के सम्बन्ध खराब कय रहल अछि, बल्कि दुइ पारक प्राकृतिक सम्बन्ध मे खलल दय बहुत भयावह विद्रोह केँ आमंत्रित कय रहल अछि। एकर प्रतिक्रिया जखन दु-तरफा होयब शुरू होयत त नेपाल जेहेन छोट अर्थतंत्र लेल कतेक नुकसानदेह साबित होयत से सोचू।

मुनासिब सँ बेसी जखन कोनो विन्दु पर राजनीति होयब शुरू भ’ जाय, अर्थात् अति होबय लागय त बुझू जल्दी कोनो अनिष्ट होयवला अछि। हम पुछैत छी जे मिथिला, भोजपुरा, अबध, उत्तराखंड, गोरखालैन्ड आदिक दुइतरफी अन्तर्सम्बन्ध केँ नेपालक राजनीति आ कूटनीति द्वारा इतिहास केँ खन्डित कय केँ व्यवस्थापन कयल जेबाक ओकादि अछि? कि लोकक प्राकृतिक जुड़ाव केँ आ नेपाल भारत बीच जनस्तरीय सम्बन्ध (people to people relations) केँ नेपाल या भारतक कानून आ सैन्यबल सँ तोड़ल जा सकैत अछि? लगभग २०० वर्ष पूर्व मे कयल गेल सुगौली सन्धि केँ भारत-नेपाल द्वारा १९५० मे मान्यता प्रदान करैत अपन-अपन सम्प्रभुताक सीमा केँ मान्यता दय देबाक समय ‘सीमा खुलल’ रखबाक कि उद्देश्य रहय से बिसरि गेलहुँ? एहेन-एहेन आरो कय टा महत्वपूर्ण प्रश्न वर्तमान सन्तति लेल सोचय योग्य अछि। मिथिलाक ऐतिहासिकता केँ खन्डित करैत एकर अस्तित्व केँ नकारबाक दुस्साहस नेपाल-भारत के हित मे नहि होयत। मित्रताक सेतु थिक मिथिला व अन्य सभ्यता जे दुनू देश केँ अटूट मैत्री मे बान्हि रहल अछि। अति-राजनीति सँ अराजकताक प्रवेश केँ रोकल जाय।

हरिः हरः!!