राजनीति मे नैतिकताक मापदंड
कहय लेल लोकतंत्र, लोकक चयनित सरकार द्वारा विधि अनुसार शासन; लेकिन यथार्थतः छक्कल-बक्कल सँ शासन तंत्रक संचालन वर्तमान राजनीति के ‘सामान्य बात’ बनि गेल अछि। कलिकाल के बड नीक चर्चा तुलसीकृत् रामचरितमानस मे कहल गेल अछि –
सो कलिकाल कठिन उरगारी। पाप परायन सब नर नारी॥
कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥९७ क॥
भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म।
सब कियो पाप मे लिप्त अछि। ई पाप सब धर्म केँ अपन भोजन बना लेलक। सदग्रंथ लुप्त भ’ गेल अछि। दम्भी सब अपन-अपन मति सँ कल्पना कय-कय केँ अनेकों पंथ प्रकट कय देलक अछि। सब कियो मोह केर वशीभूत भ’ गेल अछि। लोभ सारा शुभ कर्म केँ अपन आहार बना चुकल अछि।
एहेन स्थिति मे राजनीति मे शुचिता के अपेक्षा करब व्यर्थ मात्र सिद्ध होयत।
प्रजातंत्र के स्वरूप पर सवाल
सब नाम लैत अछि प्रजा के, लेकिन तंत्र एहेन बनेने अछि जाहि मे बहुमत जुटेबाक लेल अनेकों तरहक दुर्भावना आ आपसी अन्तर्विभाजन के खेल मात्र हावी अछि।
भारत जेहेन पैघ लोकतांत्रिक देशक इतिहास पर नजरि देला सँ पता चलैत अछि जे एहि ठाम आजादी प्राप्ति सँ देश केँ टुकड़ा करय सँ लैत सत्ता-शासनक बागडोर पर हावी रहबाक लेल ‘नीति व नैतिकता’ केँ अनेकों बेर ताख पर राखि अपन मनमर्जी सँ काज कयल गेल अछि।
कहय लेल ‘गणराज्य’, यानि ‘विधि द्वारा शासित’ राष्ट्र – आ विधि के व्याख्या मे अपन पेंच फँसायब, अपन शैली सँ जनादेशक दुरुपयोग करब, आ फेर दुष्परिणामक जिम्मेदारी सेहो वैह निरीह जनता पर थोपि देब…. सत्तापक्ष आ विपक्ष दुनू नाम लेब जनता के आ काज करब अपन मनमौजी वला।
गठबंधन के राजनीति के शुरुआत तखन मजबूरी बनि गेल जखन देश मे लगातार त्रिशंकु संसद बनबाक जनमत भेटय लागल। एहेन अवस्था मे विभिन्न राजनीतिक दल अपन निजी सिद्धान्त व विचारधारा अलग-अलग रहितो जनादेश प्राप्त करबाक लेल आपस मे सहमति सँ संसदीय सीट पर चुनाव लड़बाक तालमेल करय लगलाह आ जनता मे भरोसा देलाह जे आगामी सरकार बना जनताक सब हित आ देशक हित करब। जनता ताहि आधार पर अपन मतदान कयलक, कोनो एक गठबंधन केँ बहुमत देलक। लेकिन ‘खेला’ शुरू होइत अछि सत्ता प्राप्ति मे पद के होड़ मे। यदि केकरो ओकर मोन लायक पदवी प्राप्त नहि भेल त ओ जोड़-तोड़ के गणित मे लागि जाइत अछि। बिसरि जाइत अछि नीति आ नैतिकता आ ओकर अपनहि द्वारा कयल ओ वादा जे जनहित-देशहित के कार्य करबाक लेल राजनीति करब। एखन एहि तरहक अराजकता मे लगभग सब राजनीतिक दल बेतरतीब ढंग सँ लागल देखा रहल अछि।
जनताक देल जनमत सँ एना सरेआम बलात्कार लोकतंत्र आ एकर मूल्य-मान्यता पर सवाल ठाढ़ कय रहल अछि। जनता निरीह, मजबूर आ मूक बनिकय एहि राजनीतिक खिलाड़ी सभक तमाशा देखय लेल बाध्य रहैत अछि। विधि-विधान आ संविधान प्रति राजनीतिक दल या व्यक्ति के सम्मान सेहो उपद्रव करैत, छल-प्रपंच आ ‘सेटिंग’ करैत धज्जी उड़बैत मात्र देखल जाइत अछि। एना लागि रहल अछि मानू ई प्रजातंत्र कोनो काजक नहि हो, एहि सँ बहुत नीक ‘तानाशाही प्रवृत्ति’ जे कम सँ कम एकटा निश्चित निष्ठा आ नियम पर चलत, जेकरा निरीह जनता कोहुना भोगि लेबाक आदति बना लेत।
कल्पना करू, एकर वीभत्स रूप कि सब होयत। जे सत्ता मे रहत ओ सत्ताक दुरुपयोग कय केँ विरोधी केँ समाप्त करबाक प्रयास करबाक यत्न करत। आर एहि तरहें देश मे अराजकताक प्रवेश सुनिश्चित अछि। कखन देश मे गृहयुद्ध के माहौल बनत आ कखन कि होयत से कियो नहि जनैत अछि।
तखन त भारतीय लोकतंत्र मे न्यायपालिका आ सैन्य सुरक्षा प्रणालीक एकटा मजबूत सपोर्ट अछि जेकर समुचित उपयोग सँ बेथिति केँ थिति पर आनल जाइत अछि। विधान मे प्रि-पोल एलायन्स आ जनता मे कयल वादा केँ पछाति काल कोनो हाल मे भंग नहि करबाक नियम-कानून बनेला सँ कम सँ कम एक कार्यकाल लेल आपस मे समन्वय लेल ई सब बाध्य होयत। संगहि लोभ-प्रलोभन आ मोह-अहंता मे देशहित-जनहित केँ चोट नहि पहुँचायत, एतेक नैतिकता केँ मानय लेल बाध्य होयत राजनीति।
हरिः हरः!!