हरेक मैथिलीभाषी लेल आत्ममंथनक आवश्यकता अछि

हम सब नेपाल मे दोसर दर्जाक नागरिक कोना?

जाहि नेपालदेशक सर्वथा प्राचीन भाषा मैथिली रहल ताहि ठाम आइ मैथिलीभाषी दोसर दर्जाक नागरिक हेबाक दुर्दिन अवस्था मे संघर्ष कय रहल अछि। दुरावस्थाक यैह हाल छैक जे मैथिलीभाषी लोक नेपाली भाषा बजबाक आ लिखबाक भरपूर चेष्टा करैत अपना केँ क्षणिक एक नम्बर के नागरिक हेबाक अन्तरभान करय मे राहत अनुभव करैत अछि, तथापि ओकर सम्मान आ महत्व नेपालीभाषी के समान नहि भ’ पबैत छैक आ ओकरा संग तरह-तरह के विभेद हेबाक अवस्था बनले रहैत छैक।

विदिते अछि जे अपन निजता केँ दुत्कारि कोनो मनुष्य आत्मसम्मान नहि पाबि सकैत अछि, तहिना मैथिलीभाषी केँ मैथिली भाषा बजैत-लिखैत देखि शुरू-शुरू मे गारि, मारि, दुत्कार, फटकार दैत-दैत एकल भाषा नीति केँ बदतर ढंग सँ लादि देलकैक… आ आब लगभग ६ दशक बाद गारि-मारि वला स्थिति मे बदलाव अबैत नेपाल एकटा संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र बनलाक बादो धरि छुपल एजेन्डा ‘एकल भाषा नीति’ लदबाक दुष्चक्र मे फँसि जेबाक कारण मैथिलीभाषी जनमानस मे गुलामी मानसिकता सँ ऊपर उठबाक कोनो खास ऊर्जा तक बचल नहि देखाय पड़ैछ। यैह कारण छैक जे नेपाल मे नेपालीभाषी के अतिरिक्त एखनहुँ धरि अन्य भाषाभाषी अपना केँ दोसर दर्जाक नागरिक बुझि दोसरहि के भाषा बाजय-लिखय-पढय लेल मजबूर अछि। जाबत ईमानदारी सँ सभक भाषा केँ सम्मान व्यवहारिक तौर पर नहि भेटतैक, ई गुलामी मानसिकता आ दोसर दर्जाक नागरिक होयबाक अन्तरभान आ प्रत्यक्ष विभेदक स्थिति नहि समाप्त होयत। कहबी सहिये छैक जे अपन भाषा बाजयवला कौआ स्वतंत्र चिड़ैया थिक, जखन कि सुग्गा जेकाँ दोसरक सिखेलहा भाषा बाजयवला पिंजड़बद्ध चिड़ैया थिक। अतः हरेक भाषाभाषी केँ अपन भाषाक व्यवहार करब आ आगू बढ़ब अत्यावश्यक अछि, नहि त पीढ़ी-दर-पीढ़ी अहाँ दोसरक गुलाम रहब से बुझि जाउ। जाहि नेपालक मल्लकालीन राजाक राज्यकाल धरि मैथिली राजकाजक भाषा काठमाण्डू धरि छल, ताहि ठाम आइ मैथिलीक हैसियत कि रहि गेल से गये दिन कयल जा रहल व्यवहार सँ स्पष्टे अछि।

मैथिल संचारकर्मी संघ केर पदाधिकारी लोकनि बीच आइ यैह प्रवृत्ति दोहरबैत देखि ई लेख लिखल अछि। एकरा सकारात्मक तौर पर स्वीकार करब।

हरिः हरः!!