— अरुण कुमार मिश्र।
मिथिलाक सुप्रसिद्ध पाबनि मधुश्रावणी
मधुश्रावणी मुख्य रूप सँ मिथिलाक पारंपरिक पाबनि थिक।एहि पाबनि मे पवनैतिन (नवविवाहिता) अपन पतिक दीर्घायु हेेवाक लेेल माँ गौरी, महादेव आ विषहरक विधिवत पूजा करैत छथिन। साओन मासक कृष्ण पक्षक पंचमी तिथि सँ शुक्ल पक्षक तृतीया तिथि धरि, १४ दिनक एहि पाबनि मे मिथिलाक प्राकृतिक सौंदर्य आ अलौकिक परंपराक सम्मिश्रण देखवा मे अबैत अछि जाहि मे विभिन्न प्रकार के फूल, पात, फड़ लोढ़नाई, पूजा केनाई, गीत गेनाई, बिध व्यवहारक संपादन, नियम निष्ठाक पालन आ प्रति दिन कथाकेँ अनेक प्रसंगकेँ समूहमे बसि सुननाइ शामिल छैक। बरखा ऋतु हेवाक कारने एकर नाम मधुश्रावणी छैक। मिथिला मे मधुश्रावणी पाबनि असलमे नव विवाहित लेल हनीमून थिक। मधुमासमे जे आनन्द मिथिला मे छैक से अंंतह कतय!
मधुश्रावणी विशुद्ध प्रकृति आधारित पाबनि छैक जाहिमे लोक आ शास्त्र, पुरुष आ प्रकृति, मनुखकेँ प्रकृति केर अवयव आदिक बीच कोना साम्य बनबैत सबहक संगे कोना रही तकर शिक्षे टा नहि अपितु व्यवहारिक ज्ञान सेेहो देल जाइत छैक। मूलत: ई पाबनि मूलतः ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ आ किछुऐ सोनार जातिमे होइत छैक मुदा एकर विधान आ सामग्रीक जुटानमे अन्यो जातिक सहभागिता रहैत छैक। जेना सरबा, मङ्गल कलश कुम्हार सँ, डाला, बियनि, चंगेरा इत्यादि डोम सँ, लहठी चूड़ी इत्यादि लहेरनी सँ ल’ लेल जाइत छैक।
मधुश्रावणी के प्रति सबसँ बेसी उत्साह नवविवाहित मे देखल जाइछ। एहि मे महादेव, गौरी आ माटिक बनल नाग देवताक प्रस्थापित क’ पूजा करवाक विधान छैैक। पूजाक अंतिम दिन एहि सभ के पवित्र जलमे प्रवाहित काएल जाइत छैक। प्रकृति सँ जुड़ल ई विशुद्ध मिथिलाक पाबनि छैक जाहि मे माँ पार्वती आ देवाधिदेव महादेव नव विवाहिता रूप मे रहैत छैथ।
पवनैैतिन (नवविवाहिता) १४ दिन धरि दिन मे एके बेर सात्विक भोजन करैत छथिन्ह। एहि समयमे प्राय: पवनैैतिन नैहर मे रहैत छैथ आ सोलहो ऋंगार क’ नित साँझ मे संगी बहिनपाक संग भ’ गीत गबैैत फूल आ पात लोढ़ैत छैैथ आ डाला सजबैत छैथ जकरा फूललोढ़ी कहल जाइत छैक। एहि डालाक फूल सँ दोसर दिन विषहर के पूजा करैत छथिन। एहि पाबनिक विशेषता ई छैक जे बासी फूल पात सँ विषहर के पूजा कायल जाइत छैक। नव वस्त्र आ आभूषण सँ सुसज्जित भ’ पवनैतिन (नव विवाहिता) पूजा करैत छैथ। मधुश्रावणी पूजा मे पुरोहितक भूमिकामे स्त्रीगने होइत अछि। महिले पुरोहित लौकिक मंत्र द्वारा विधि-विधानक संग पूजा करवैत छैथ। पूजामे संस्कृत आ मैथिली केर अद्भुत मिश्रण शब्द आ मन्त्र रूपमे भेटैत छैक यद्यपि पुरोहित (पण्डित) केँ कोनो भूमिका एहिमे नहि रहैत छनि। सबटा बिधि बिधान सँ होइक तकर विशेष ध्यान राखल जाइत छैक। पहिल दिन भगवती के पातैर, विषहरा के दूध-लाबा चढ़ेेवाक संग एहि पाबैनक प्रारम्भ होइत अछि। विषहरा, भगवती, महादेव, ब्राह्मण, पाबनौती, कोबर, मुख्यतः याह सब गीत होइत छैक।
मधुश्रावणी कथामे दंतकथा आ पौराणिक दुनु के मिश्रण रहैैत छैक। लोककथामे सबसँ प्रमुख राजा श्रीकर आ हुनक बेटीक कथा अछि। कथा नित दिन चलैत रहैत छैक। पूजाक उपरान्त पवनैतिन अपने हाथ मे लाल कपड़ा मे धानक एक गोट पोटली, जकरा बिन्नी कहल जाइत छैक ओकरा बांधि कथा सुनैत अछि। एहि सम्पूर्ण पाबनि के दौरान सब दिनक भिन्न भिन्न कथा छैक। कथा सुनेवाक पश्चात पुरोहितिन बिन्नी नाम सँ एक विशेष प्रकार के पदक पाठ करैैत छैथ। पवनैतिन ठाढ़ भ’ विषहर के फूल-पात चढ़वैत छथिन। मधुस्वामी व्रतक अंतिम दिन टेमी दगवाक परंपरा छैक एहिमे पति अपन पत्नी के आंखि के पानक पात सँ झांपि दैत छैथ आ महिला लोकनि दीपक टेमी सँ नवविवाहिताक टेहुन दागि दैत छथिन जकरा टेमी दागब कहल जाइत छैक।
साओन मासक श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि के दिन एहि पर्वक समापन मधुश्रावणी रूप मे होइछ। ई मानब छैक जे साओन मास मे प्रतिदिन रात के सुतय बेर वाचो विन्नी के पाठ करवाक चाही, एहि सँ बिषहर सदैव प्रसन्न रहते छैथ आ कल्याण करैत छैथ। वाचो विन्नी:
“पुरैनिक पत्ता झिलमिल लत्ता, ताहि चढि बैसली विषहरि माता
हाथ सुपारी खोइंछा पान, बिसहरि करती शुभ कल्याण।
“बरसाइत बेर-बेर मधुश्रावणी एक बेर” ई फकरा मधुश्रावणीक महिमा परिलक्षित करैत अछि। पति-पत्नीक प्रेम स’ इतर ई समाजक लोक के बीच सेेहो प्रेम प्रदर्शित करैत अछि। आजुुक समयमे हम सभ अपन समाज आ संस्कृति सँ दूर भ’ रहल छी आ समाज हमरा सभके दूरे सँ अकानि रहल अछि मुदा फेेर जखन हम सभ समाज मे अबैत छी त’ ओ अपना मे हमरा सभके समाहित क’ लैत अछि। अत: ई मधुश्रावणी पाबनि हमरा सभके परिवार, समाज आ प्रकृति सँ मिलान करवैत अछि। मधुश्रावणी केर बिध-व्यवहार त’ आब बहुतों केँ स्त्रीगनकेँ शारीरिक आ मानसिक शोषण केर एकटा वीभत्स परंपरा बुझना जाइत छनि। समय बदलि रहल छैक तँ एहि पर सोच बदलब आवश्यक अछि। अतेक सुन्नर पाबनि मे मात्र ई बिध कनि कष्टकर लगैत अछि। हमरा जनैत एकरा छोड़ि देबाक चाही।
मधुश्रावणी सुख श्रृंगार आ आनंदक पाबनि छैक। कहल जाइत अछि जे टेमी दागक प्रथा मुगल कालमे आरंभ भेल। बाल विवाह, घुँघट प्रथा सेहो ओही कालक देन अछि ।मधुश्रावणी पूजा मे व्रतक मान्यता आ नाग पूजाक प्रधानता छैक। पवनैैतिन (नव विवाहिता) केँ टेमी सँ दगवाक धर्मशास्त्र मे कतौ वर्णन नहि भेटैैत अछि तेँ एहि परम्परा के छोड़ल जा सक़ैत अछि। सब परंपरा आ संस्कृति मे गुण दोष होइत छैक। मधुश्रावणी पाबनि महत्ता छैक आ रहतैक। बदलाव प्रकृतिक नियम छैक, परम्परा के निर्वहन समयक अनुसार होबाक चाही। अस्तु।
.