— पूजा कुमारी।
“मिथिलाक सुप्रसिद्ध पाबनि मधुश्रावणी”
मधुश्रावणी के अर्थे अछि जे मधुर साओन अर्थात नव कनिया सब लेल मधुर साओनक मास। मधुश्रावणी पाबैन नव कनिया सब लेल हर्षोउल्लासक पाबैन छियैन। अपन सब किछ बिसरिक ई पाबैन पुजय लेल बैस जाय छैथ।
ई पाबैन मुख्यतः पन्द्रह दिनक होईत अछि,एहिमे नव कनिया अर्थात नव विवाहित कनिया सब एक दिन पहिने से मधुश्रावणी पुजाक ओरियानमे लागि जैय छैथ।एक दिन पहिने फूल लोरहैय छथि जिहि -जुहि तोरैय छैथ आ एक दिन पहिने पाॅच टा वस्तुके जेना- धान,धन्नी,पान,कुसुम फुल,सिन्दूरके पिस के गौरी बनेल जाइए। आ पन्द्रह दिन धरि नव कनिया लहसुन प्याज, लाबा, साग नहि खाय छैथ।
मधुश्रावणी दिन भोरे उठिक स्नान कऽ नव साड़ी लहठी पहिर के पुजा करैय लेल बैयसैय छैथ। एहि पुजामे विभिन्न प्रकारक देवी -देवताक पुजा होय छैन जेना- सुर्य-चन्द्रमाॅ , नौ-नवग्रह, गौरी- साठि, विषहारारा ,चनाय इत्यादि अनेको देवी-देवताक पुजा होइत अछि। एहिमे नव कनियाक कथा आ बिन्नी सुनाइल जाइए। एहिमे एकटा बिन्नी जे होइत अछि से पव कनियाक अलावा सब दिन सब के सुयैत आ उठैय काल पढबाक चाहि जाहिसॅ कोनो भयानक स्वप्न नहि अबैये आ नाग देवताक कृपा बनल रहैथ अछि । एहि प्रकारे अछि-
“दीप दीपाहारा जागु हारा
मोती मानुष भरुधारा
नाग बरहुत नागीन बरहुत
पाॅच बहिन विषहारा बरहुत
वसुकी माय बरहुत वसुकी बाप बरहुत
खोना मोना माम बरहुत
असावरी पिसी बरहुत
दारही खोरही मौसी बरहुत
बाल-वसंत भैया बरहुत
राहि शब्द लय सुति
कासा शब्द लय ऊठी
ऊठीहोइत प्रात सोना कटोरामे दुध भात खाय
साँझ सुति प्रात ऊठी
ब्रह्ममा देल कोदारि
विष्णु चह चल बाट
भाग भाग रे कीड़ा मकोड़ा परे गरुरके ठाह
आस्तिक आस्तिक गरुड़ गरुड़ नारायण नारायण।”
ई सबके पढबाक चाहि। मधुश्रावणीमे सबसॅ बेसी खुशी होइत अछि भार के जे सासुर पक्ष के पुजाक सबटा सामग्री आ सब लेल वस्त्र अबैत अछि। ई पाबैन सम्पूर्ण मिथिलावासी के सब पाबैनमे से एक पाबैन अछि।