— अरुण कुमार मिश्र।
बेमेल विवाह बर आ कान्याक शारीरिक, आर्थिक वा सामाजिक प्रतिष्ठामे अंतर के दृष्टिए देखल जाइत अछि। आई सँ पचास बरस पुर्व विवाहक प्राथमिकतामे दु टा परिवार होइत छलैक। ओहि समयमे कम बसि मे विवाह होइत छलैक। कान्या प्राय: अशिक्षित रहैत छलखिन्ह तँ ओहि समयक विवाह मे बर आ कान्याक राय विचार लेवाक कुनु औचित्य नै बुझल जाइत छलैक। सभागाछी वा घर कथा सँ विवाह ठीक भेला उपरान्त बर कान्या वैवाहिक गठबंधनमे बन्हा जाइत छलखिन्ह। बेमेल विवाह ओहु समयमे होइत छलैक मुुदा ओकरा विधना के लिखलाहा बुझि निभाएल जाइत छलैक। बरागत या कन्यागत ठकाये कियैक नहि गेल होय, विवाह विच्छेदक संख्या नहि के बराबर छल।
बेमेल विवाह ताहि दिन बेसी वयसक बर आ कम बयक कान्या वा दुुनु के रंग रूप मे विशेष अंतरक आधार पर कहल जाइत छलैक। कहवाक तात्पर्य ई जे बेमेल विवाहक बड सिमित आधार छलैक। सनातन धर्म मे विवाह एक गोट प्रमुुख संस्कार थिक आ मैथिलक विवाह त’ आर विशुद्ध वैदिक विधि विधान सँ होइत छैक। कहलो जाइत छैक जे जोड़ी भगवाने बनबैत छथिन। मुदा आब एहि सोच मे बड बदलाव आबि गेलैक अछि। आजुक पीढी शिक्षित अछि आ पाश्चात्य संस्कृति सँ प्रभावित अछि। पाश्चात्य सांस्कृति मे विवाह एक टा संविदा (करार) अछि जकरा निभेनाई अनिवार्य नै छैक तँ तलाकक केस आब बेसी देेखवा मे अबैत अछि। बेमेल विवाहक बदलैत रूपमे उम्र, छोट, नम्हर, रंग, रूप, शिक्षा, आय, पद आ पारिवारिक स्टेटस इत्यादिक समाबेस भेलैक अछि। आब शिक्षा आ रोजगारमे महिला पुरूष सँ कनियो पाछु नै अछि तँ चयन प्रक्रिया जटिल भेल जा रहल छैक।
एक टा आर परिवर्तन लक्षित भेलैक अछि जे अधिकांश लोक रोजी-रोटीक जोगाड़ मे प्रवासी होइत गेलाह । गामक-गाम खाली होब’ लागल। फेर गाम अयबाक नाम पर उदासीन-भाव अँकुरित सेहो होब’ लागल। तें अंततः कमौआ सभ सपरिवार शहर ‘शिफ्ट’ होब’ लगलाह। एहन जे बदलल परिस्थिति बनलै, प्रवासी-जीवन सोचक स्तर पर स्वतः सेहो तेज गति मे आबि गेल। फेर तँ विवाह-दान संबंधी अधिकांश प्रक्रिया प्रवासे मे स्थिर होयब सुभितगर बूझल जाय लगलै ।
समयक गति आर तेजी धयलक । नवतूरिया अपन अर्जित नवसंस्कृति ओ नवसमाज मे घुलैत चलल गेल, आ संगहि अपना कें बिसर’ सेहो लागल । फेर तँ ओकरा सभ लग कोनोटा अतीत नहि छलै । फेर तँ अभिभावक सेहो अपनाकें उनटि ताकब निरर्थक बुझलनि । बिसरब नीक बुझयलनि…
आइ सभक-सभ एही परिवर्तन संग चलि रहल छी । स्थिति साफ उनटल अछि । विवाहक संग-संग अनेक प्रसंगमे संतति अपन अभिभावककें निश्चिन्त कर’ लागल छथि । तें विवाह-दानमे सेहो आब जाति कोनो बंधन नहि रहि गेल, आ ई कुल-गोत्र-मूल तँ कहिया ने शिथिल पड़ि गेल । रुझान समक्ष अछि । एहि ग्लोबल समाज मे अन्तर्जातीय विवाह जायज बुझल जाय लागल अछि। तें आब जे समाज समक्ष अछि, ओ अपन सभ्यता-संस्कृति, परंपरा आदि सभ किछु सँ मुक्त भ’ चुकल अछि। फल बहुत भयावह छै। विवाह-संस्थापर संकट छै ! आइ विवाह गौण, कैरियर प्रमुख छै। कैरियरक निर्धारणमे बर कान्या के ततेक समय लागि जाइत छैक जे विवाहक प्रति हुनक संवेदनशीलता समाप्त भ’ जाइत छैक।
किछु आर आगू बढ़ि क’ देखी तँ नबतूर लोकनि कैरियर स्थिर भेलाक बाद सेहो विवाह करब झंझटिक घर बुझैत छथि। विवाह-दर्शन जीवनानंद मे बाधक लगैत छनि ! प्रायः तकरहि कुप्रभाव अछि लीव इन रिलेशनशिप। अन्तर्जातीय विवाह के कहय, आब अनान्य वर्गादि वा धर्म मे विवाह होमय लगलैक अछि। अस्तु।
………….अरुण कुमार मिश्र