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“आदर्श शब्द जखन विवशतामे परिणत भ’ जाइत अछि…”

— कृति नारायण झा।           

आदर्श बिवाह केर अर्थ होइत छैक ओ बिवाह जकर समस्त आयोजन मे आदर्श बातावरण उपस्थित होअय। आदर्श केर अर्थ मात्र दहेजक पाइ नहि लेला सँ पूर्ण नहिं होइत अछि। बिवाह में एक पाइ नहिं लेब मुदा ५०१ बरियाती सँ कम में हमरा गुंजाइश नहिं होयत। बरियाती के स्वागत राजा महाराजा जकाँ होयवाक चाही। रसगुल्ला केर पथार लगवाक चाही। पाइ नहिं लेलहुँ अछि तऽ बरियाती के लऽ जयवाक लेल कम सँ कम १०० चारिपहिया केर इंतजाम होयवाक चाही आदि आदि। एकरा कोनो हालत में आदर्श बिवाह नहिं कहल जा सकैत अछि जाहि मे कन्या पक्ष के आदर्श बिवाह केर नाम पर ओतेक खर्च करवा दियैन जाहि सँ हुनका मोन में इ बात आबय लगैन जे हे भगवान। एहि सँ बढियां तऽ पाइ गानि कऽ बिवाह करितहुँ ओ उत्तम छल। बर पक्ष बला एहि बात केर अनुभव करैथि जे कनियाँ पक्ष के लोक अपन औकादि केर अनुसार अपन बेटी के बिवाह में जे उचित बुझाइन से खर्च करैथि। बर पक्ष बला के जँ बेसी आडम्बर पसारवाक होइन ओ अपनहि खर्च कऽ कऽ करैथि एहि के लेल ओ पूर्णरूपसँ स्वतंत्र छैथि तहिना कन्या पक्ष बला के सेहो इ अनुभव करय पड़तैन जे बर पक्ष बला अपन औकादि के मुताबिक कनियाँ के लेल गहना साड़ी इत्यादि अनलन्हि अछि ओ हुनकर सऽख मनोरथ छियन्हि, एहि पर कोनो टीका टिप्पणी नहिं होयवाक चाही। दुनू पक्ष में आपसी सामंजस्य बनेवाक एहि वातावरण केर नाम आदर्श सम्बन्ध अर्थात् आदर्श बिवाह केर संज्ञा देल जाइत अछि। ओना मिथिला में बिवाह में दुसवाक प्रथा आदिकाल सँ आबि रहल अछि जाहि सँ भगवान श्रीराम सेहो नहिं बचल छलाह। बिवाह में करोड़ों रूपैया के गहना साड़ी लऽ गेलाक उपरान्तो कोनो ने कोनो कमी मिथिलानी सभ अवश्य निकालि लैत छैथि आ एकरा दुनू पक्ष अन्यथा नहिं लैत हास्य विनोद केर रूप मे बुझि कऽ बिसरि जाइत छैथि। आदर्श बिवाह भेला पर दुनू पक्ष के एक दोसर सँ कोनो प्रकारक प्राप्ति केर अपेक्षा नहिं करैत त्याग केर भावना आ एक दोसर के प्रति मधुर सम्बन्ध सँ आदर्श बिवाह केर सम्पूर्ण परिकल्पना के साकार कयल जा सकैत अछि। हरेक माता पिता अपन धिया पूता के वास्ते बिवाह में खर्च करवाक लेल किछु पाइ एकत्रित कयने रहैत छैथि तदनुकूल हुनका बिवाह में खर्च करवाक चाही आ दुनू पक्ष केर बीच मधुर सम्बन्ध सँ एहि पर मोहर लगवाक चाही, हमरा हिसाबे यएह आदर्श बिवाह केर मूल परिभाषा होयवाक चाही नहिं कि एहि परिणय सम्बन्ध के लेल अपन स्थायी सम्पत्ति के बेचि कऽ दुनू पक्ष मे सँ कोनो पक्ष विवश होइथ एहि सँ परम्परा आहत होइत अछि आ आदर्श शब्द विवशता शब्द में परिणत होइत अछि, जे कथमपि नहिं होयवाक चाही

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