रामचरिमानस मोतीः नारदक अभिमान आ मायाक प्रभाव

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

नारदक अभिमान और मायाक प्रभाव

पिछला अध्याय मे पढ़लहुँ जे शिवजी नारद द्वारा हुनक कामदेव केँ जीति लेबाक प्रकरण सुनेबाक विषय पर हुनका बुझबैत कहलखिन कि हमरा जेना कहि देलहुँ तेना श्री हरि केँ कहियो नहि कहबनि, चर्चो चलय त एहि बात केँ नुका लेब। लेकिन…..

 
१. शिवजी जे हित के शिक्षा देलखिन से नारदजी केँ नीक नहि लगलनि। हे भरद्वाज! आब तमाशा सुनू। हरिक इच्छा बड बलवान छन्हि। श्री रामचन्द्रजी जे करय चाहैत छथि वैह होइत छैक, एहेन कियो नहि जे हुनक विरूद्ध कय सकय। श्री शिवजीक वचन नारदजीक मोन केँ नीक नहि लगलनि, तखन ओ ओतय सँ ब्रह्मलोक चलि देलाह।
 
२. एक बेर गायनविद्या मे निपुण मुनिनाथ नारदजी हाथ मे सुन्दर वीणा लेने, हरिगुण गबैत क्षीरसागर पहुँचलाह, जतय वेदक मस्तकस्वरूप (मूर्तिमान वेदांतत्व) लक्ष्मी निवास भगवान नारायण रहैत छथि। रमानिवास भगवान उठिकय बड़ा आनन्द संग हुनका भेंट कयलनि। हुनका आसन पर बैसेलनि। चराचर के स्वामी भगवान हँसिकय बजलाह – हे मुनि! आइ अपने बहुत दिन पर दया कयल।
 
३. जखन कि श्री शिवजी हुनका पहिनहि सँ मना कय देने छलथि, तैयो नारदजी कामदेव केर सब चरित्र भगवान केँ कहि सुनेलनि। श्री रघुनाथजीक माया बड प्रबल अछि। जग मे एहेन के जन्मल अछि जेकरा ओ मोहित नहि कय सकैत छथि! भगवान रूख सन मुँह कय केँ कोमल वचन बजलाह – हे मुनिराज! अहाँक स्मरण कयला सँ दोसरक मोह, काम, मद आ अभिमान मेटा जाइत छैक, फेर अहाँक लेल त कहनाइये की! हे मुनि! सुनू। मोह त ओकर मोन मे होइत छैक जेकर हृदय मे ज्ञान-वैराग्य नहि रहैत छैक। अहाँ त ब्रह्मचर्यव्रत मे तत्पर और बड़ा धीर बुद्धि के छी। भले, कतहु अहाँ केँ सेहो कामदेव सता सकैत छथि?
 
४. नारदजी अभिमानक संग कहलखिन – भगवन! ई सब अपनहि केर कृपा थिक। करुणानिधान भगवान मोन मे विचारिकय देखलथि जे हिनकर मोन मे गर्व के भारी वृक्षक अंकुरा जन्म लय लेलक अछि। हम एकरा तुरन्त उखाड़ि फेकब, कियैक त सेवकक हित करनाइये हमर प्रण अछि। हम निश्चित ओहेन उपाय करब जाहि सँ मुनिक कल्याण होइन्ह, संगहि हमर लीला सेहो होयत, जे भविष्य मे दोसरहु लेल शिक्षादायक होयत।
 
५. कनिकाल मे नारदजी भगवानक चरण मे माथ नमाकय चलि देलाह। हुनक हृदय मे अभिमान आरो बेसी बढ़ि गेल छलन्हि। तखन लक्ष्मीपति भगवान अपन माया केँ प्रेरित कयलनि। आब ओहि मायाक कठिन करनी सुनू। ओ हरिमाया द्वारा रास्ता मे सौ योजन (चारि सौ कोस) केर एकटा नगरक रचना कयल गेल। ओहि नगर केर भाँति-भाँतिक रचना लक्ष्मीनिवास भगवान विष्णु केर नगर वैकुण्ठहु सँ बेसी सुन्दर छल। ओहि नगर मे एहेन सुन्दर नर-नारी सब रहैत छलथि मानू बहुतो रास कामदेव आ हुनक स्त्री रति स्वयं मनुष्य शरीर धारण कएने रहि रहल छलथि। ओहि नगर मे शीलनिधि नाम के राजा रहैत छलाह, जिनका ओतय असंख्य घोड़ा, हाथी और सेनाक समूह (टुकड़ी सब) छल।ओ समस्त वैभव और विलास सौ इन्द्र केर समान छलैक। ओ रूप, तेज, बल और नीति केर घर रहथि। हुनक विश्वमोहिनी नामक एक अत्यन्त रूपवती कन्या रहथि, जिनकर रूप केँ देखिकय लक्ष्मीजी सेहो मोहित भ’ जाइथ! ओ सब गुणक खान भगवान केर माये त छलीह। हुनक शोभा केर वर्णन कोना कयल जा सकैत अछि। ओ राजकुमारी स्वयंवर करय चाहैत छथि, ताहि सँ ओतय अगणित राजा सब आयल छथि।
 
६. खिलवाड़ी मुनि नारदजी ओहि नगर मे गेलाह आर नगरवासी सब सँ सब हाल पुछलनि। सब समाचार सुनलाक बाद ओ राजाक महल पहुँचलाह। राजा हुनक सत्कार-पूजा कय आसन पर बैसौलनि।
 
क्रमशः…. आगूक अध्याय मे!
 
हरिः हरः!!