— उग्रनाथ झा।
सावित्रि सत्यवान कथा एक निष्ठावान आ पतिव्रता स्त्री के अंदर समाहित अद्वितीय शक्ति के तरफ इशारा करैत अछि ।आदर्श नारि आपन स्वामी भक्ति आ नारित्व ख गरिमा के बल पर देवत्व सं ऊपर उठिए सकैत अछि । जेकर अनेकों दृष्टांत छैक सावित्री , आनसुईया आदि। सनातन धर्म में वैवाहिक बंधन सिर्फ एकटा शारिरीक और मानसिक बंधन नहि अपितु त्याग तपस्या समर्पण के द्योतक अछि । पंचतत्व के साक्षि मानि एक दोसरा संग यथा स्थिती जीवन निर्वाहक वचन लेलाक वाद दाम्पत्य जीवन में उभय पक्षक भरोस कायम रहक चाहि । सत्यवान जतय समय के चक्र के मारल पदच्युत राजा के पुत्र छलाह और सावित्री पिताक आज्ञा पालनार्थ योग्य पति के खोज में निकली सत्यवान के पति रूप में हृदय सं मानि चुकल छलीह तत्पश्चात नारद मुनिजिनकर वाणी मिथ्या हेबा पर जीव मात्र के शंका नहि के श्री मुख सं सत्यवान के एक वर्ष मात्र आयु छैक ई सुनलाक उपरांतो आपन वचन पर कायम रहली । किएक त जहन एक बेर सत्यवान के पति रुप में चयन क हृदय में बसा लेलिह त हुनका लेल आब दोसर के ध्यान धरब महापाप छल । सब किछु बुझितो ओ आपन निर्णय पर अडिग छली । सावित्रि के एहि पतिव्रत धर्म और चातुर्य के प्रतिफल जे दूनू प्राणी अनंत काल त अमरत्व के प्राप्त केलैथ । नारि के दोसर विशिष्ट गुण जे विपरीत काल में अदम्य साहस तीक्ष्ण बुद्धी सं समस्याक पार केनाय । से सावित्र के बिषम परिस्थिति सन्निकट आबैत जाईन मुदा ओ अपन धर्म आ चातुर्य से अपना के दृढ़ करैत रहलीह । जकर परिणाम स्वरुप जखन सत्यवान के प्राणांत भेल सावित्रि पतिव्रत धर्मक व्रत ल बैसल छली जे धर्मराज के बल पुर्वक सत्यवान के आत्मा(प्राण) के कैद करबा स रोकि देलक आ पतिव्रता नारि के धर्म पालन और कर्तव्यनिष्ठा सं जहन खुश भय वरदान याचना के एक अवसर देलन्हि त सावित्री आपन दूनू कुल के ताईर देलन्हि । वरदान गौर करय वाला छल – हमर पुत्र के हमर ससुर सिंहासन पर बैस मामा संगे खेलाएत देखै ।यानी पुत्र होएत जौ पति जीवित होएताह ससुर सिंहासन पर बैसता यदि राज्य वापस है होएत बच्चा के देखता जखन आंखि सं सुझय लगतनि ओर जखन हमरा भाई जन्म लेत तखने हमरा बच्चा के मामा संग खेलेबाक अवसर भेटत । एहि लेल कहल गेल छैक बेटी के हाथ में दूनू कुल के पाग । और धर्मराज के वरदान सं आभिष्ट चारु वरदान एक तथास्तु सं प्राप्त भेल ।
धर्मराज आ सावित्री के बीचक ई प्रकरण जेठ मासक अमावस्या तिथि क बड़गाछ तर भेल छल। एकर प्रत्यक्ष दर्शी गवाह स्वरूप चीरकाल तक रहल ।
एहि कथा सँ नारिक पतीव्रत धर्म पालन के महत्व आ कर्तव्यक बोध होईत अछि । एकर उपलक्ष्य में आहिवाती जनानी जेठ मासक अमावस्या तिथि क बटवृक्ष जे चिरकाल तक जीवित रहैत छै के एकनिष्ठ पतिव्रत धर्म के साक्षी मानि पति के चिरायु होएबाक कामना स विविध विधि विधान सं पूजा करै छथि कथा सुनै छथि दिन भरि एकनिष्ठता पतिभक्ति व्रत रखै छथि ।
(एहन एहन महत्वपूर्ण जे सनातन व्रत पूजा ओहू में आब हृास हृदय विदारक भेल जा रहल अछि । पहिने नव विवाहिता सब साल भरि पाबनि पुजै छली हर पाबनि विधान आ महत्व बुढ़ पुरान सं सुनै छली आत्मसात करै छली । जीवन एकनिष्ठ आ शीतल रहै छलन्हि । मुदा आब सब किछु प्रतिकात्मक भेल जा रहल आछि । तहीना जीनगीयो में फेरबदल आ उत्तेजना आबि गेल आछि । नै जानी कतय सं जा क लौटत ई सनातन पऱपरा ।