स्त्रीक माथ पर सम्मानक प्रतीक ‘पाग’ – कहीं समलैंगिकता केर प्रोत्साहन त नहि?
(विचार, प्रवीण नारायण चौधरी)
आदरणीय स्त्री समाज हमर बातक अर्थ उल्टा नहि लगबथि, बल्कि एहि विन्दु पर मनन करथि जे प्रकृति द्वारा शक्ति आ शिव केर परिकल्पना, अर्थात् नारी ओ पुरुष केर रचना आ ताहि सँ सृष्टि सृजनक सिद्धान्तक निरूपण जे भेल अछि ताहि विरूद्ध कोनो आचरण आखिर कोन तरहक विस्फोटक परिणाम देत।
पुरुष-पुरुष आ नारी-नारी बीच सेहो वैवाहिक सम्बन्ध एहि धराधाम मे होबय लागल अछि। समलैंगिक सम्बन्ध पर बौद्धिक विमर्श आ मानवीय स्वतंत्रताक हवाला सँ अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय धरि बात पहुँचि गेल। लेकिन हम सब सामान्य मस्तिष्क आ सामान्य व्यवहार मे विश्वास रखनिहार लेल ई सब कोन तरहक कुत्सित, वीभत्स आ अवैज्ञानिक-अप्राकृतिक बुझि पड़ैत अछि, हमरा लोकनि एहि तरहक व्यवहार व आचरण सँ कतबा घृणा करैत छी से सभक लेल सोचनीय-मननीय अछिये।
हमर कहबाक तात्पर्य यैह अछि जे हमरा सभक बाप-पुरखा जाहि कोनो जीवन व्यवहार (दैनन्दिनी) केँ अपनौलनि ताहि पाछाँ बहुत रास सोचल-परखल आ प्रकृति मैत्री चिन्तन निहित अछि। हालहि उपनयन विषय पर श्रीमती रेखा झा दीदी पटना सँ कतेक बेहतरीन व्याख्यात्मक प्रस्तुति देने छलीह, केना-केना नारी-पुरुष केर गुणसूत्रक प्रकृति सँ जीवनसृष्टिक तुलना जनेऊ सुत काटय सँ बेरय तक केर तुलना कएने छलीह, तदोपरान्त विभिन्न विध-विधानक प्रस्तुति सँ केकरा लेल कोन सन्देश अछि, जेना माथ पर दीप बाड़ि मड़बाक चारूकात बैसले-बैसल घुमबाक विध मे माथ पर बड़ल दीप सँ बाबा-पुरखाजन (पितर) केँ गाबि-गाबि कय वंशक दीपक जरैत रहबाक संकेत, आदि विभिन्न महत्वपूर्ण तथ्य केँ उजागर कयलीह, ई सब बात हमरा सभक लेल चिन्तनीय-मननीय आ अनुकरणीय अछि से सब गोटे बेर-बेर सोचू।
एहने एक अनविहितक विहित वाली बात बड़ा तेजी सँ हमर-अहाँक समाज केँ प्रदूषित कय रहल अछि से थिक पाग केर दुरुपयोग।
पाग केर धार्मिक अनुष्ठान मे प्रयोग केर महत्व सँ इतर पुरुषवर्ग केँ ओहि तरहक सम्मानित हेबाक कारण सामान्य मंच पर सेहो पाग पहिरेबाक परम्परा जगजियार भ’ गेल अछि। लेकिन फैशन मे महिला सेहो पागहि पहिरि सम्मानित अनुभव करबाक किछु अप्राकृतिक आ भौतिकतावादी दृश्य सेहो दृष्टिगोचर होमय लागल अछि। पहिने शहर मे ई नियम भंग भेल, आब त गामहु मे एहि तरहक दुराचार केँ बढावा देल जाय लागल अछि।
पाग पुरुषक शिरस्त्राण थिकैक। महिला लेल अँचरीक प्रावधान अछि। गौर सँ देखू – महिला केँ माथ मे तेल आ विवाहित केँ सिन्दुर लगा हुनकर सोहाग-भाग केर वृद्धि हेबाक शुभकामना सामान्य व्यवहार मे अछि। अहु सँ बेसी साड़ी-चुनरी, ओढ़नी, आदि हस्तान्तरित करबाक संग हुनकर खोंइछा मे दुभि-धान-सगुनिया सिक्का, गहना, आदि देल जेबाक विधान अछिये। तखन फेर पुरुषक माथक श्रृंगार पर आजुक महिला समाजक लोभ अथवा आयोजक द्वारा एहि तरहक भ्रष्टाचार केर कि अर्थ भेलैक? एकर विस्फोटक परिणाम केहेन हेतैक? समलैंगिकता केँ बढावा त नहि दय रहल छी हमहुँ सब?
सम्मानक प्रतीक चिह्न शरीरक सर्वोच्च स्थान माथ पर पहिरेबाक विधान अछि। पुरुषक माथ पर पाग शोभा पबैत अछि। स्त्रीक माथ पर अँचरिये शोभा पबैत अछि।
आइ-काल्हि मैथिली-मिथिला मंच सँ लैत राजनीतिक दल सभक आयोजन सब मे सेहो ‘मिथिलाक पाग’ केर उपयोग बहुत बढ़ि गेल अछि। लेकिन आयोजक केँ स्त्री समाज केँ सम्मान देबाक लेल सुन्दर अँचरी जेना भगवती केँ चढ़बैत छथि से उपयोग करता त नीक लागत।
वाचस्पति भामती स्मृति समारोह ठाढ़ी मे संयोजक रत्नेश्वर बाबू व सम्पूर्ण विद्वान् आयोजक लोकनि ‘खोंइछ’ देबाक अद्भुत विधानक प्रयोग कएने रहथि।
कतेको स्थान पर महिला केँ केवल चादर ओढ़ाकय सम्मान कयल जाइत अछि।
शहर मे यदा-कदा हंसी-मसखरी मे कियो-कियो महिला स्वयं अपन इच्छा सँ पागहि पहिरि अपन माथक शोभा बढ़ैत बुझि बड़ा गर्व सँ सोशल मीडिया मे फोटो पोस्ट कयलथि। आब धीरे-धीरे ई प्रथा गाम-घर तक पहुँचि गेल अछि। पैघ-पैघ अभिभावक स्थिति-परिस्थिति केँ देखैत-बुझैत मोने-मोन कूढ़ितो देखबय लेल खिलखिलाइत रहैत छथि एहि सब अनविहितक विहित मे। हम सब स्वयं सोची, नीक आ अनुकरणीय काज मे ई विचित्र आ अनुपयोगी व्यवहार कतहु सँ प्रासंगिकता स्थापित नहि कय पबैत अछि।
ई हमर निजी विचार छी। एहि मे किनको आहत करबाक दृष्टि-दर्शन कदापि नहि अछि। लेकिन चर्चा आ ताहि सँ सजग समाज मे सचेतनाक प्रसार लक्ष्य अछि।
हरिः हरः!!