संख्या १ सँ १० केर विलक्षण दर्शनः कठोपनिषद् सँ प्राप्त मननीय जानकारी

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

संख्या 1 सँ 10 केर ई विलक्षण दर्शन

(Excellent Philosophy of Number From 1 To 10)

आजुक स्वाध्याय मे एकटा बहुत विलक्षण दर्शन केर प्राप्ति भेल अछि। अपने लोकनि संग साझा करैत बहुत प्रसन्नता भेटि रहल अछि।

शरीर 1 गाछ छी।

एहि पर 2 गोट चिड़ै बैसैत अछि। एकटा एहि गाछक फर खाइत अछि, दोसर केवल साक्षी रूप में देखैत अछि।

एहि गाछक जैड़ 3 दिशा में पसरल अछि। सत्व, राजस आ तामस। जेना गाछक जैड़ के विस्तार अनेकों शाखा-प्रशाखा में होइत छैक, तहिना शरीर रूपी गाछक जैड़क ई तीन मूल शाखा प्रकृति केर गुण (सतोगुण, रजोगुण आ तमोगुण) अनुसारक संसर्ग सँ मनुष्य अपन जीवन-अवधि बढ़बैत अछि।

एहि तीन गुण केर संग विभिन्न प्रकार के संसर्ग सँ जीव 4 प्रकार के पुरुषार्थ केर प्राप्ति करैत अछि। धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष केर स्वाद लैत अछि।

एहि भौतिक फर के स्वाद 5 इन्द्रिय द्वारा ग्रहण कयल जाइछ।

पाँच इन्द्रिय जे ज्ञान अर्जित करैत अछि से 6 प्रकार केर कीड़ा (दोष) सँ प्रभावित होइत अछि। शोक, मोह, दुर्बलता, मृत्यु, भूख आ प्यास।

ई भौतिक शरीर 7 कोशा (आवरण) सँ झाँपल अछि। त्वचा, पेशी, मांस, मज्जा, अस्थि, वसा आ वीर्य।

गाछ में 8 गोट ठाढ़ि अछि। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, शून्य (आकाश), मन, बुद्धि तथा अहंकार।

शरीर मे 9 गोट दरबज्जा अछि। 2 आँखि, 2 नथुना, 2 कान, 1 मुँह, 1 शिश्न आ 1 गुदा।

शरीर के अन्दर 10 तरहक आन्तरिक वायु (प्राण) अछि। प्राण, अपान, उदान, व्यान, समान, नागा, कूर्म, देवदत्त, कृकला आ धनन्जय।

2 पक्षी में 1 जीवात्मा आ 2 अन्तर्यामी भगवान!😊
– कठोपनिषद

(आजुक स्वाध्याय सँ संग्रहित)

हरिः हरः!!