जानकी राघवक विशेष स्मरण

केवल सीताराम सँ काज
 
आशा करैत छी जे सब कियो नीक सँ जानकी नवमी मनेलहुँ। जहिना रामनवमी मनबैत श्रीरामक पौरुष आ ईश्वरत्व प्रति नतमस्तक होइत छी तहिना जानकी जीक प्राकट्योत्सव पर जानकी जीक पौरुष आ मनुष्य रूप मे प्रस्तुत महान चरित्र केँ स्मरण करैत हम सब कामना करी जे एहि जीवन मे केहनो संकट आ तूफान आबि जायत, मुदा जानकी जी जेकाँ अडिग रहिकय सब परिस्थिति केर सामना करब।
 
जानकी जी हर रूप मे अपन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कयलीह –
 
१. जन्म लेबाक वास्ते पृथ्वी (धरा) केँ माताक रूप मे सम्मानित कयलीह।
 
२. कोनो सामान्य माताक गर्भ सँ उत्पन्न नहि भ’ भूमि सँ जन्म लेबाक कारण सेहो ओ अपन प्रियतम श्रीराम सँ भिन्न भेलीह। भूमिजा, अयोनिजा, आदि विशेष नाम जानकीक यैह कारण भेलनि।
 
३. किंवदन्ती अछि जे भूलोक सँ इन्द्रलोक धरि अपन बाहुबल सँ डंका बजेनिहार रावण जखन पृथ्वी पर विराजित संत, ऋषि, मुनि, सज्जन, साधु सभ केँ पर्यन्त अपन कठोर शासनक शिकार बनेलक, हुनका सब सँ कर संकलन लेल जबरदस्ती रक्त वसूली कयलक तखनहि ऋषि-मुनि लोकनि अपन कोप सँ ओकरा श्रापित कयलनि आ कहि देलनि जे यैह रक्त सँ रावणक अन्त करबाक कारकतत्त्व एहि धराधाम मे प्रकट हेतीह। रावण केँ ब्रह्मा सँ वरदान भेटल रहैक जे मनुष्यहि केर हाथ टा सँ ओ मृत्यु केँ प्राप्त करत…. आब रावण लेल मनुष्य आ बानरक गिनतिये कतेक रहैक तेँ ओ निर्भयता प्राप्ति लेल ब्रह्माजी सँ ई वरदान मंगने रहय। आर यैह मूल कारण छलैक जे भगवान् विष्णु केँ एहि धराधाम मे मनुष्य रूप मे एबाक संयोग बनलनि। ओ स्वयं मनु-अदिति केँ देल वचन केँ हुनका लोकनिक वर्तमान जीवन दशरथ-कौशल्याक रूप मे आ अन्य माता सँ अपन अंशरूप मे जन्म लेलनि। दोसर दिश रावणक संकलित ई साधु-संत समाजक रक्तकण केँ ऋषि-मुनिक विशेष प्रार्थना पर स्वयं लक्ष्मीजी सम्मान दैत धराधाम मे प्रकट भेलीह। रावण जखन अपन दूत सँ ओहि रक्तकण केर दर्शनहि सँ माथ फाटि जेबाक बात सुनलक त ओ विचलित भ’ ओहि रक्तकण केँ अपन राज्य सँ बहुत दूर मिथिला राज्य (जनकभूमि) मे गाड़ि देबाक आदेश देलक। मिथिला मे दुरूह अकाल पड़ि गेल। अनुसन्धान उपरान्त हलेष्ठि यज्ञ केर बात भेल। अकालक अवस्था सँ निजात पेबाक लेल राजा जनक स्वयं हर जोतथि एहि आचार्य-गुरुजनक आदेश केँ पालन करैत राजा जनक जखन हर जोतलनि त हरक फार जेकर अग्रभाग केँ ‘सीत’ कहल जाइछ, ताहि सँ गाड़ल गेल वैह घैल बाहर आयल, ओहि घैला मे सँ पराम्बा जानकी जीक अवतार भेलनि। राजा जनक केर पुत्रीक रूप मे सम्मानित भेलीह। यैह परम पवित्र दिवस छल ‘वैशाख मासक शुक्ल पक्ष केर नवमी’ अर्थात् जानकी नवमी।
 
४. अकाल भागल, हरियाली चहुँदिश उमड़ि पड़ल। आखिर जानकी समस्त ऋद्धि-सिद्धि केर दात्री स्वयं जे आबि गेल छलीह। बुझल होयत जे इन्द्रलोक सँ इन्द्र जखन रामजीक विवाह मे सहभागी बनय मिथिलालोक अयलाह त मिथिलाक डोमहु केर घर मे मणि-माणिक्यक अम्बार देखि राजमहल होयबाक भान कय लोक सब सँ जिज्ञासा मे ओकरे जनक-दरबार होयबाक प्रश्न कयलनि। अर्थात् मिथिलालोक जानकी जी केर प्रकट होइते एतेक सुखी-सम्पन्न भ’ गेल छल जेकर वर्णन करब शब्दक सामर्थ्य सँ बाहर अछि।
 
५. जानकी कुमारी अवस्था मे जनक केँ परशुराम सँ प्राप्त शिवधनुष उठाकय भगवती घर केँ निपबाक एकटा बहुत सुन्दर आख्यान अबैत अछि। माता सुनयना आ राजा जनक बेटी सीताक एहि अद्भुत लीला केँ देखियेकय सीता योग्य वर केहेन हो ताहि बातक चिन्तन आरम्भ कयने रहथि। आखिर जनक प्रण कइये लेलनि आ शिवधनुष भंग कयनिहार सँ सीताक विवाह करबाक निर्णय कय लेलनि। तदनुसार धनुषभंग लेल यज्ञक आयोजन भेल जाहि मे सौंसे संसार सँ राजा-महाराजा-राजकुमार लोकनि हिस्सा लेलनि, मुदा जीत केवल अयोध्या नरेश दशरथ केर ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार श्री रामचन्द्र केँ प्राप्त भेलनि। एहि तरहें सीता संग राम केर मिलन भेल।
 
६. आब शुरू होइत अछि सीताराम केर संयुक्त जीवनलीला जाहि मे सर्वप्रथम श्रीराम केर राज्याभिषेक मे उत्पन्न होइत छन्हि बाधा, माता कैकेयी अपन पुत्र भरत लेल राज्याभिषेक के मांग करैत पति दशरथ सँ प्राप्त वचनक दुरुपयोग कय बैसैत छथि आ श्रीराम लेल १४ वर्षक साधुवेश मे वनवास केर दुरूह आदेश पिता सँ दिया दैत छथि। दशरथ अपन प्राणो सँ बढिकय प्रिय पुत्र श्रीराम केँ स्वयं एहेन कठोर आदेश अपन वचन केँ पूरा करय लेल दय दैत छथि, लेकिन एकर तुरन्त बाद ओ अपन प्राण सेहो त्यागि दैत छथि शोके।
 
७. ई सब प्रपञ्च ओहि विधाता के थिकन्हि जे एहि संसार मे नीक आ बेजा दुनू केँ स्थान दय सृष्टिक रचना कएने छथि, जखन-जखन बेजा द्वारा नीक पर जबरदस्ती कब्जा करबाक घटना घटित होबय लगैत छैक त फेर अपन परमसत्ताक परमसत्य पक्ष ‘नीक’ केँ संरक्षण लेल भगवान् स्वयं अवतार लैत छथि। सीताराम केँ अपन अवतारक अभीष्ट पूरा करबाक छन्हि तेँ वनवास जेहेन कठोर आदेश अपना लेल शिरोधार्य कय लेलनि। एतय विलक्षणता देखू – सीता केँ वनवास नहि देल गेल छन्हि लेकिन ओ स्वयं अपन पतिक अनुगामिनी होयबाक आ पतिक चरण मात्र मे सम्पूर्ण जीवन सेवाभाव सँ रखबाक मूल लक्ष्मीचरित्रक रहस्य केँ प्रकट करैत वनगमन के जिद्द ठनैत छथि। ओहो पतिक संग साधुवेश मे वन जाइत छथि। आ तेकर बाद कि-कि होइत अछि १४ वर्षक वनवास मे से सब जनिते छी।
 
८. जानकी जी अपहृता बनि बैसैत छथि। ओ लक्ष्मण रेखाक ओहि पार जाय केँ कपटी साधु केँ भिक्षादान देबय लगैत छथि आ फेर कि छल…. रावण हुनक हरण कय बैसैत अछि। भगवती एतय अपन शक्ति देखा सकैत छलीह लेकिन श्रीराम केर हिस्साक कार्य हुनकहि लेल छोड़ि रावणक सम्पूर्ण प्रारब्धभोग धरि लेल स्वयं कष्ट सहैत छथि। पतिक वियोग मे निशाचर सभक बीच लंकाक अशोकवाटिका मे रहैत छथि। एम्हर श्रीराम आ लक्ष्मण ‘हा सीते – हा सीते’ केर विलाप करैत वन मे हुनकर खोज करैत छथि। ई चरित्र सब एहेन अछि जे केकरो सन्देह मे दय देल करैछ। स्वयं सती (शिवजी शक्तिरूपा धर्मपत्नी) भ्रमित भ’ एहि समय मे ब्रह्मतेज सँ सम्पन्न श्रीरामक परीक्षा लेबय जाइत छथि से बुझले होयत। हम सब तेँ बेसी दिमागीलाल नहि बनि अवतारक रहस्य आ संसार‍-सृष्टिक मूलतत्त्व केँ मनन करी, तदनुसार सदिखन स्वयं सत्य आ निष्ठाक मार्ग पर ईश्वरक भजन करैत जिबैत रही जीवन।
 
९. आखिरकार रावणक वध कय राजा रामचन्द्र सीताजी केँ लय कय अपन राज्य अयोध्या लौटैत छथि। एहि संग आर कतेको तरहक कथा-उपकथा सब अबैत अछि जे कि अवतारक मूलपक्ष सँ भिन्न आ सन्दर्भ सँ हंटल कहल-सुनल कथा सब मात्र बुझि पड़ैत अछि। हँ, रामराज्य आ प्रजासुख केर बात जे आइ धरि जन-जन के जिह्वा पर राज करैत अछि ओहो पूर्ण सत्य थिक। दुःखक बाद सुखक अनुभव करब शाश्वत सत्य थिकैक। लेकिन फेर सँ ओहि मे सीताक अग्नि परीक्षा, सीताक निर्वासन, सीता द्वारा परोक्ष मे लव-कुश केर जन्म आ पालन-पोषण संग शिक्षा-दीक्षा आ फेर श्रीराम द्वारा अश्वमेध यज्ञक घोषणा, लवकुश द्वारा श्रीरामक सेना केँ ललकारा आ परास्त करबाक दृश्य, पिता श्रीराम केर आगमन उपरान्त सीता द्वारा हुनका सब केँ रोकब, पुनः अयोध्या पहुँचि लवकुश द्वारा रामायणक वाचन आ पिता श्रीराम सहित समस्त अयोध्यावासी द्वारा युवराजद्वय केर रूप मे स्वीकार्यता, अन्त मे फेर सँ सीता केँ हुनक अखण्ड पातिव्रत्य धर्म केर परीक्षा, आर ताहि परीक्षा मे सीता द्वारा एहेन प्रमाण प्रस्तुत कयल गेल जे श्रीराम सहित सम्पूर्ण जन-गण-मन केँ भौंचक्क बना देलक… लेकिन सनातन धर्मक पौराणिक कथा मे सँ कय तरहक कुतर्क आ कुवचन बजबाक लेल कतेको कुटिल लोक केँ अधिकारसम्पन्न बना देलक, एहि लेल हम रामराज्य उपरान्तक श्रीराम किंवा श्रीसीताराम केर अस्तगामी कथा मे ओहि तरहें कदापि चिन्तन-मनन आ किछुओ सोचबाक तक केर पक्ष मे नहि छी।
 
जीवनक अभीष्ट ‘जीत’ बुझनिहार लेल श्रीसीताराम केर उपरोक्त चरित्र केर सब पक्ष सँ सकारात्मक सन्देश ग्रहण करय लेल कहबनि। जे निरपेक्ष सत्य मात्र केँ पूजक होइथ हुनको लेल परमसत्ताधारी ईश्वरक मानुसिक लीला मे अपन दृष्टि आ तर्कक पेंच घोंसियाबय सँ बचय लेल कहबनि। आर, अन्त मे ‘सीताराम सीताराम’ केर जप-कीर्तन-भजन लेल कहि एहि लेख केँ अन्त करब। ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!
नोटः रामायणक मर्मज्ञ आ विद्वान लोकनि केर अनेकों मत भ’ सकैत अछि, हमर न त किनको सँ कोनो आग्रह न कोनो विरोध। सब अपना-अपना तरहें ईशकार्य मे लागल रहू। हरिः हरः!!