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” अतिथि आ आतिथेय केर मर्यादा”

— आभा झा।                     

अपन मिथिला के लोक पाहुन सत्कार लेल प्रसिद्ध अछि।अतिथि सत्कार पारिवारिक जीवन के एक महत्वपूर्ण व्यवहार छैक। परिवार में पाहुन के एनाइ या स्वयं पाहुन बनि कऽ जाइ के प्रसंग अबैत रहैत छैक। तखने दुनू के आपस में मधुर संबंध बनल रहैत छैक। ताहि दुवारे दुनू पक्ष के किछ मर्यादा के ध्यान में रखनाइ तथा निभेनाइ आवश्यक अछि।आतिथेय के भूमिका पाहुन के एला पर ही प्रारंभ होइत छैक।अतः सर्वप्रथम पाहुन के व्यवहार पर विचार आवश्यक छैक। बिना आमंत्रण के कतौ पहुँचनाइ उचित नहीं,भले ही संबंधिक के घर हो या मित्र के।पहिने लोक के एतेक सुविधा नहिं छल तैं अचानक कखनो राति बिराति पाहुन सब पहुँच जाइत छलाह। माँ के देखियै पुछैत कि खेनाइ बना दिय ने।माँ ओतेक राति में पाहुन के सत्कार लेल खाना बनबैत छल।आब तऽ लोक के मोबाइल फोन भेला सँ बहुत सुविधा भऽ गेल छैक। पाहुन पहिने घरवैया के खबरि कऽ दैत छथिन कि हम आबि रहल छी।घरवैयो ओहि हिसाब सँ अपन तैयारी केने रहैत छथि।हुनकर खाइ पीबै के पूरा इंतजाम रहैत छनि।कोनो- कोनो पाहुन तऽ अबैत छलाह तऽ जाइ के नामे नहिं लैत छलाह। एहेन पाहुन के लोक बिकट पाहुन कहैत छथिन। एहेन पाहुन के दू-चारि दिन तऽ घरवैया सब झेल लैत छथि मुदा ओकर बाद हुनका संगे घरवैये जेकां व्यवहार कैल जाइत छनि।तैं बिकट पाहुन बनि कऽ कतौ नहिं जा धमकी।चाहे कतबो करीबी संबंध हो या घनिष्ठ मैत्री हो देवी सती के कथा एहि संदर्भ में स्मरण करि लेबाक चाही।ओ अपन पिता दक्ष प्रजापति कतऽ बिकट पाहुन के रूप में पहुँच गेलीह।एहि कारण ओतऽ उपेक्षा भरल वातावरण के कचोट सँ हुनका पश्चाताप के अग्नि में जरय पड़लनि।जतऽ अतिथि बनि कऽ रहि रहल छी,हुनका सँ घनिष्ठता – सद्भावना भेनाइ ही पर्याप्त नहीं।ई आर्थिक संकट के युग छैक। इहो भऽ सकैत अछि कि निश्छल सद्भाव भेला पर आतिथेय आर्थिक विवशता के कारण आतिथ्य सत्कार में असमर्थ होइथ।अतः एहि सब बात के विचार केला के बाद ही कतौ पाहुन बनि कऽ जेबाक तैयारी करबाक चाही।यदि स्थिति अनुकूल हो और बहुत घनिष्ठता हो तखन अपन पहुँचै के सूचना दैत गाड़ी आदि के समय सेहो लिखा देबाक चाही,ताकि घरवैया स्वागत लेल पहुँचि सकैथ। घरवैया के सेहो एहि संदर्भ में समान जिम्मेदारी छैक। जखन पाहुन आबैथ ओहि समय यदि भऽ सकै तऽ स्टेशन , बस स्टैंड पहुँचबाक चाही।एहि सँ घरवैया के प्रसन्नता और उत्साह प्रकट होयत तथा पाहुन अपन आबै के अनुकूल प्रतिक्रिया देखि कऽ आनंदित हेता।स्वागत-सत्कार जेहेन अपन स्थिति अछि,ओहने सत्कार करबाक चाही।अपन हैसियत के हिसाब सँ घरवैया हुनकर सत्कार करैत छथि।कतेक पाहुन के ई आदत होइत छैक अहाँ कतबो नीक आदर-सत्कार करबै तइयो नुख्स निकालै के।घरवैया के कार्यक्रम में अव्यवस्था पैदा करय वाला पाहुन भार जेकां प्रतीत होइत छैक।घरवैया के घरेलु कार्य में पूरा हाथ बंटेबाक चाही।आवश्यकता सँ बेसी कखनो नहिं रूकबाक चाही।पाहुन जतेक कम समय रहता और जतेक उत्तम व्यवहार करता,परस्पर आकर्षण और मधुर संबंध ओतेक बनल रहत।अपन घरक दुखड़ा लऽ कऽ नहिं बइस जेबाक चाही।जिनकर बीच अति प्रगाढ़ संबंध अछि,हुनके सँ एहेन चर्चा ठीक रहैत छैक। अन्यथा बेसी निजी व्यथा कथा दोसर पक्ष के उकता दैत छैक।” रहिमन
निज मन की व्यथा , मन ही राखो गोप “।एहि दोहा के सदा स्मरण रखबाक चाही।बिकट पाहुन कहैत छलखिन काल्हि चलि जायब लेकिन हुनकर काल्हि अबैत -अबैत दस दिन भऽ जाइत छलनि।तरूआ बघरूआ खा-खा कऽ पेट सेहो खराब कऽ लैत छलाह फेर घरवैया के हुनकर इलाज सेहो करबै पड़ैत छलनि।तैं बिकट पाहुन बनि कतौ नहिं जाइ ई पाहुन संग घरवैया लेल सेहो उचित छैक।जय मिथिला जय मैथिली ।

आभा झा( गाजियाबाद)

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