स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
२०. श्री रामजी केर शिवजी सँ विवाह हेतु अनुरोध
एहि सँ पूर्वक अध्याय मे पढ़ि चुकल छी – सती माता केर पार्वतीक रूप मे जन्म, हिमाचल-मैनाक घर मे जन्म लैत चारूकात ऋद्धि-सिद्धिक अम्बार आ सुखमय वातावरण, हिमाचलक राज मे ऋषि-मुनि समाजक आगमन-निवास-सम्मान, हिमाचल राजा ओतय नारदजीक आयब आ हुनकर भविष्यक बारे मे बतायब, पतिक रूप केर भयावहताक वर्णन आ संगहि एहेन भयावहता केवल शिव मे भेलो पर ओ समस्त ब्रह्माण्ड मे प्रशंसा-प्रतिष्ठाक दृष्टि सँ देखल जेबाक रहस्योद्घाटन करैत पार्वती सँ शिव केँ पतिक रूप मे प्राप्त करबाक लेल कठोर व्रत आ तप लेल उपदेश-आशीर्वाद, दोसर दिश शिवजी द्वारा सतीक वियोग मे वैराग्यक धारण, जहाँ-तहाँ भ्रमण आ श्री राम केर कथा आदिक वाचन। पार्वतीक तपस्या पूर्णता पर ब्रह्माजी द्वारा आकाशवाणी आ तपस्या पूर्ण होयबाक आ शिव केँ प्राप्ति सुनिश्चित होयबाक घोषणा, एम्हर शिवजी सँ भेंट करबाक लेल स्वयं श्री राम जी पहुँचि गेल छथि। आब आगू देखूः
१. श्री राम जी कहलखिन – हे शिवजी! जँ हमरा उपर अहाँक स्नेह अछि त आब हमर बात मानू आ हमरा वचन दिय जे अहाँ पार्वतीक संग विवाह करब।
२. शिवजी कहलखिन – यद्यपि हमर विवाह करबाक औचित्य त आब नहि छल, मुदा स्वामीक बात केँ काटल-मेटल नहि जा सकैत अछि। हमर परम धर्म थिक जे हम अपनेक आज्ञा केँ प्राथमिकताक संग पालन करी। माता, पिता, गुरु और स्वामी केर बात केँ बिना विचारने शुभ बुझैत मानि लेबाक चाही। फेर अपने तँ हर तरहें हमर परम हितकारी छी। अपनेक आज्ञा हमर माथ पर अछि।
३. शिवजीक भक्ति, ज्ञान और धर्म सँ युक्त वचन रचना सुनिकय प्रभु रामचन्द्रजी संतुष्ट भ गेलाह आ कहलाह – हे हर! अहाँक प्रतिज्ञा पूरा भ’ गेल। आब हम जे कहलहुँ से हृदय मे राखू। एतेक कहिकय श्री रामचन्द्रजी अन्तर्धान भ’ गेलाह।
४. शिवजी हुनक दर्शनक वैह मूर्ति केँ अपना हृदय मे राखि बेर-बेर स्मरण करैत आह्लादित-पुलकित होइत रहलाह। ताहि समय सप्तर्षि शिवजी लग अयलाह। प्रभु महादेवजी हुनका लोकनि सँ सुहाओन वचन कहलखिन – अपने सब पार्वती लग जाकय हुनकर प्रेमक परीक्षा लिअ और हिमाचल केँ कहिकय हुनका पार्वती केँ आनय लेल पठाउ, पार्वती केँ घर पठाउ और हुनकर सन्देह केँ दूर करू।
हरिः हरः!!