बहुत किछु बाकी अछि…..
एखनहिं किसलय कृष्ण जी एक दुर्लभ तस्वीर साझा करैत जानकारी देलनि – ओ लिखने छथिः “इएह अछि मैथिली मंचक प्रसिद्ध तिजोड़ी… बाम सँ महेन्द्र (भेलाही, सुपौल), जयराम खाँ (बनगाँव, सहरसा) आ धीर (घोंघरडीहा, मधुबनी)।”
एहि फोटो केँ देखि आ सूचना केँ पढि फेर भितर के मैथिल पुरुषार्थ ललकारा देलक आ पुछलक – “तोहर मिथिला के असल आधुनिक इतिहास लिखनिहार कियो नहि छौक?”
सच कही? पिछला १० वर्ष मे एहिना जखन-जखन मैथिली साहित्य के कोनो पैघ गाछ खसि पड़ैत छथि तखन अनेरुआ विलाप चालू भ’ गेल करैत अछि। फेसबुक पर दुर्लभ जानकारी सब भेटय लगैत अछि। सरकार आ वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ओहिना हमरा सब केँ अपन भाषाक पढाई करय सँ वंचित कइये देलक…. जेहो अनिवार्यता कायम छल स्कूल स्तर धरि सेहो सुनय छी जे आब ‘ऐच्छिक’ विषय के रूप मे मात्र प्रावधान कय केँ ‘मैथिली’ जेहेन संविधानक मानल ‘राष्ट्रभाषा’ केँ समाप्त करबाक कुचक्र रचिये देलक। आ, ओनाहू प्रसिद्ध विद्वान् डा. लक्ष्मण झा के उक्ति मोन पड़ैत अछि जे हमरा लोकनि सिर्फ गोलायसी दय मे माहिर, अपन बौद्धिक सम्पदा, मौलिक इतिहास आ ऐश्वर्यक गाथा सब केँ नहि बचा पाबि रहल छी। सुआइत एकटा विद्यापति मात्र पूज्य रहलथि एतय!!
चलू, कहियो त ओहो दिन आओत जखन लोकक स्वाभिमान जगतैक आ अपन इतिहास केँ ताकि-ताकिकय लोक लिखत। एखन त बस मृत्युशैय्या पर छटपटाइत अवस्था मे देखल जाइछ मैथिली, धरि डीजे पर बाजि रहल अछि फूहड़ गीत जे लिखलथि वर्तमान मैथिली गीतकार, माइये-बहिनिये गरियेनाय जेकरा पूर्व मे कहल जाइक से बनि गेल अछि आजुक संगीत। ब्याहोदान मे अपन पारम्परिक गीत सब केँ बिसरिकय बाजि रहल अछि वैह ‘रात दिया जलाके पिया क्या-क्या किया’! हा सीताराम!!
हरिः हरः!!