स्त्री हृदय आ पुरुष संकल्प
स्त्री हृदय सुकोमल आ शरीरक बनावट सेहो पुरुषक अपेक्षा कमजोर भेल करैछ। आत्मशक्ति, संकल्पशक्ति आ दृढ़तापूर्वक अपन बात पर कायम रहबाक क्षमता सेहो कमजोर भेल करैत अछि। – ई बात कोनो पुरुषवादी मानसिकता सँ नहि बल्कि बहुतो रास आध्यात्मिक-पौराणिक कथा-गाथाक अध्ययन सँ हम लिखि रहल छी। स्त्री हृदय सही मे कोमल होइत छैक, कतेको बेर अपन कोमल भावनाक कारण दोसरक बात केँ कमजोर बुझि ओकरा छोड़ि अपनहि जिद्द केँ स्थापित करबाक कठिन डेग उठा लेल करैत अछि स्त्री।
ध्यानपूर्वक देखू – हिन्दू धर्मशास्त्र मे जतेक कथा-गाथाक जिकिर आयल अछि ताहि मे स्त्रीक मातृत्व केँ सर्वोपरि मानल गेल छैक, लेकिन जीवनलीला मे कोनो न कोनो एहेन प्रकरण स्त्रीक तरफ सँ होइछ जाहि सँ पैघ-पैघ घटना-दुर्घटना घटित भेल करैत अछि। द्रौपदी, सीता, तुलसी, सती, पार्वती आदि अनेकों पौराणिक लीलामयी चरित्र मार्फत हमरा सब केँ मनन करय योग्य अनेकों शिक्षाप्रद बात कहल गेल अछि।
रामायण मे एखन हम सती आ शिव केर प्रसंग पढि रहल छी। शिव धीर-गम्भीर आ प्रशान्त रूप मे छथि। सती माता केँ शिवजीक श्रीरामजी प्रति अद्भुत भक्ति आ श्रीरामजी केँ मनुष्य शरीर मे पत्नीक वियोग मे विलाप करैत दृश्य देखि हृदय मे उद्वेलन भेलनि। अपन पति शिवजी पर आँखि मुन्दिकय विश्वास करितथि त हुनका पति-परित्यागक बिछोह नहि भोगय पड़ितनि। पुनः पिता दक्ष ओतय यज्ञ मे सहभागिता बिना आमंत्रण के नहि दियए जाउ से बात बुझेलाक बादहु नहि बुझि अपन जिद्द मे गेलीह आ ओतय शिवजीक अपमान केँ बर्दाश्त नहि कय स्वयं केँ योगाग्नि मे भस्म कय देलीह।
ई सारा वृत्तान्त केँ पढि-बुझि आ मनन कय हमरो दिमाग उद्वेलित अछि। अपनहि जीवन चरित्र आ पत्नीक संग आचार-व्यवहार देखैत छी त फेर वैह बात सब भेटैत अछि। ई नहि जे पुरुषरूप मे हम स्वयं गलती नहि करैत छी, हमरा सँ अपराध नहि भेल करैत अछि, हम बड़ा परमज्ञानी या अद्भुत भक्तमान् छी – बल्कि अपन कमजोरी केँ मनन कएने बिना पत्नीक हड़बड़ी पर तुरन्त तमसा गेल करैत छी। जखन कि पत्नी एहेन शक्ति होइत छथि जिनका बिना कोनो पतिक जीवन पूरा नहि भऽ सकैत अछि, से सोचि केहनो झगड़ा आ रगड़ा केँ तुरन्त समाधान करब जरूरी बुझैत छी। कतबो तामस उठय आ कि दुःख पहुँचय कि असन्तोष हुअय, पत्नीक कयल गेल हजारों गलती केँ क्षमा करब पतिक मौलिक कर्तव्य बुझियेकय अपन समस्त कर्तव्य पूरा करैत छी। आर पत्नी सेहो तहिना हमर हजारों गलती केँ झेलिते छथि, पचबिते छथि आ जीवनक गाड़ी केँ आगू बढेबाक क्रम मे पुरान बात केँ बिसरिते छथि। एना उचित समायोजनक संग चलि पबैत अछि ‘गृहस्थी धर्म’ रूपी जीवन। एकभग्गू जिद्द सँ एतेक लम्बा जीवन केँ पुरा करब असम्भव छैक।
निष्कर्षतः आजुक पीढ़ी केँ एहि मूल मर्म केँ आत्मसात करय पड़त जे नारी आ पुरुष संयुक्त रूप मे ‘गृहस्थी धर्म’ केर संचालन करैत छथि। एहि मे कथमपि स्त्री आ पुरुष बीच के विभेद केँ अपनहि दृष्टि सँ नहि देखि पूर्ण निश्छल व निरपेक्ष दृष्टि सँ देखल करी। कखनहुँ मात्र पुरुष रूप मे स्त्री केँ देखब अथवा मात्र स्त्री रूप मे पुरुष केँ देखब – ई एकदम जरूरी नहि छैक। हमेशा निष्पक्ष भाव सँ सोचब त समाधान शीघ्र भेटत। जीवन सुखमय रहत। शास्त्र के निचोड़ सुभाषितानि आ नीतिश्लोका अवश्य पढ़ने होयब। ई श्लोक लगभग सब केँ याद होयत। आजुक पीढ़ी जे बेसी रास पढ़ाई केवल पेटहि लेल कय रहल छी हुनका लेल विशेष रूप सँ उल्लेख करय चाहबः
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च ।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्॥
हे गृहस्थ लोकनि! जाहि कुल मे भार्या (पत्नी) सँ प्रसन्न पति और पति सँ भार्या सदा प्रसन्न रहैत छथि ओहि कुल मे निश्चित कल्याण होइत अछि। और दुनू परस्पर अप्रसन्न रहता त ओहि कुल मे नित्य कलह वास करैत अछि।
हम त कहियो नहि चाहब जे केकरो जीवन मे अशान्ति, तनाव आ विवाद हुए! अस्तु!! सभक कल्याणार्थ भगवती सँ यैह प्रार्थना –
सर्वमंगल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
हरिः हरः!!