स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
१८. पतिक अपमान सँ दुःखी भ’ सती के योगाग्नि सँ जरि गेनाय, दक्ष यज्ञ विध्वंस
हमरा लोकनि विगत अध्याय मे सतीजीक अपन पिता दक्ष ओतय यज्ञ मे हुनक पति देवाधिदेव महादेव केर रोकलो उपरान्त जायब आ ओहि ठाम माता छोड़ि बाकी सभक द्वारा उपहास करबाक स्थिति देखि चुकल छी। आगू देखू –
१. सती केँ शिवजीक अपमान सहल नहि गेलनि। एहि कारण हुनका हृदय मे कोनो प्रबोध नहि भेलनि जे कि करथि। तखन ओ समस्त सभा केँ हठपूर्वक डाँटैत क्रोध सँ भरल वचन कहलखिन – हे सभासद लोकनि, हे समस्त मुनीश्वर लोकनि! सुनू! जे सब एतय शिवजीक निन्दा कयलहुँ अथवा सुनलहुँ हुनका सब केँ एकर फल तुरन्त भेटत। हमर पिता दक्ष सेहो एहि लेल नीक जेकाँ पछतेता।
२. जतय संत, शिवजी और लक्ष्मीपति श्री विष्णु भगवान केर निन्दा सुनल जाय, ओतय एहेन मर्यादा अछि जे यदि अपन वश चलय त ओहि निन्दा करनिहारक जिह्वा काटि ली या नहि त कान मुन्दिकय ओतय सँ भागि जाय।
३. त्रिपुर दैत्य केँ मारयवला भगवान महेश्वर सम्पूर्ण जगत केर आत्मा थिकाह, ओ जगत्पिता और सभक हित करयवला छथि। हमर मंदबुद्धि पिता हुनकर निन्दा करैत छथि आर हमर ई शरीर दक्षहि केर वीर्य सँ उत्पन्न अछि। ताहि हेतु चन्द्रमा केँ ललाट पर धारण करयवला वृषकेतु शिवजी केँ हृदय मे धारण कय केँ हम एहि शरीर केँ तुरन्त त्यागि देब।
४. एतबा कहिकय सतीजी योगाग्नि मे अपन शरीर भस्म कय देलीह। सारा यज्ञशाला मे हाहाकार मचि गेल। सतीक मरण सुनिकय शिवजीक गण यज्ञ विध्वंस करय लागल। यज्ञ विध्वंस होइत देखि मुनीश्वर भृगुजी ओकर रक्षा कयलनि। ई सब समाचार शिवजी केँ भेटलनि त ओ क्रोधित भ’ कय वीरभद्र केँ पठेलनि। ओ वीरभद्र ओतय जाकय यज्ञ विध्वंस कय देलक आर सब देवता लोकनि केँ यथोचित फल (दंड) देलक।
५. दक्ष केँ जगत्प्रसिद्ध वैह गति भेल जे शिवद्रोही सभक भेल करैत अछि। ई इतिहास सारा संसार जनैत अछि ताहि लेल हम संक्षेप मे वर्णन कयलहुँ।
हरिः हरः!!