रामचरितमानस मोतीः सतीक अपन पिता दक्ष ओतय यज्ञ देखय लेल गेनाय

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

१७. सती केर दक्ष यज्ञ मे गेनाय

 

पूर्वक अध्याय मे पढ़लहुँ जे ब्रह्माजी द्वारा सतीक पिता दक्ष केँ प्रजापति बनायल गेल, प्रभुता पाबि दक्ष प्रजापति मद मे चूर कि करैत छथि ताहि पर आइ गौर करू। ओम्हर पति द्वारा पत्नीक रूप मे मौन परित्याग आ सतासी हजार वर्षक महादेवक समाधि टुटलाक बाद सतीक अपार दुःख केँ महादेव विभिन्न कथा कहिकय बिसरेबाक बहलेबाक अवस्था रहबे करय। आब आगू गौर करूः
१. दक्ष सब मुनि लोकनि केँ बजाकय बड़ पैघ यज्ञ करय लगलाह। जे देवता यज्ञ केर भाग पबैत छथि तिनका सब केँ आदर सहित निमन्त्रित कयल गेल। किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सब देवता अपन-अपन स्त्रिगण सहित चलि देलाह। विष्णु, ब्रह्मा और महादेवजी केँ छोड़िकय सब देवता अपन-अपन विमान सजाकय चलि देलाह।
 
२. सतीजी देखलीह जे अनेकों प्रकारक सुन्दर विमान आकाश मे चलल जा रहल अछि, देव-सुन्दरी लोकनि मधुर गान कय रहली अछि, जे सुनिकय मुनियो लोकनिक ध्यान छुटि जाइत छन्हि। सतीजी एहि विमान सब मे देवता लोकनिक जेबाक कारण पुछलथि त शिवजी हुनका सब बात बतेलाह।
 
३. पिता द्वारा यज्ञक बात सुनिकय सती किछु प्रसन्न त भेलीह मुदा सोचय लगलीह जे जँ महादेवजी हमरा आज्ञा देथि त एहि बहन्ने किछु दिन पिताक घर जाय कय रहब। कियैक त हुनकर हृदय मे पति द्वारा त्यागल जेबाक बड़ा भारी दुःख रहनि मुदा अपनहि अपराध बुझि ओ किछु बजैत नहि छथि। आखिरकार सतीजी भय, संकोच और प्रेमरस सँ सनल मनोहर वाणी मे बजलीह – हे प्रभो! हमर पिताक घर बहुत पैघ उत्सव अछि। जँ अहाँक आज्ञा हुए त हे कृपाधाम! हम आदर सहित ओतय देखय लेल जाइ।
 
४. शिवजी कहलखिन – अहाँ बात त नीके कहलहुँ, हमरो मोन केँ ई बहुत पसिन पड़ल, मुदा ओ निमन्त्रण नहि पठेने छथि से अनुचित भेल। दक्ष अपन सब बेटी सब केँ बजेलथि लेकिन हमरा संग बैरीभाव के कारण ओ अहाँ केँ बिसरा देलाह। एक बेर ब्रह्माक सभा मे हमरा सँ अप्रसन्न भ गेल रहथि ताहि सँ ओ आइयो धरि हमर अपमान करैत छथि। हे भवानी! जँ अहाँ बिन बजेने जायब त नहिये शील-स्नेहे रहत आ नहिये मान-मर्यदे रहत। हालांकि एहि मे कोनो सन्देह नहि जे मित्र, स्वामी, पिता और गुरुक घर बिनु बजेनहियो जेबाक चाही, तथापि जँ कियो विरोध मानैत हो त ओकर घर गेला सँ कल्याण नहि होइत अछि।
 
५. शिवजी बहुतो प्रकार सँ बुझेलाह मुदा होनहारवश सतीक हृदय मे बोध नहि भेलनि। फेर शिवजी कहलखिन जे जँ बिनु बजेनहिये जायब त हमरा हिसाब सँ नीक बात नहि होयत। शिवजी बहुतो प्रकार सँ कहिकय देखि लेलाह लेकिन जखन सती कोनो प्रकारे नहि रुकलीह तखन त्रिपुरारि महादेवजी अपन मुख्य गण लोकनि केँ संग दय कय हुनका बिदाह कय देलथि।
 
६. भवानी जखन पिता (दक्ष) केर घर पहुँचलीह त दक्ष केर डर के मारे कियो हुनकर आवभगत नहि कयलक, सिर्फ माय टा आदर सँ भेटलीह। बहिन सब हँसैते भेटलीह। दक्ष त हुनका सँ कोनो कुशलतो तक नहि पुछलनि, सतीजी केँ देखिकय उलटे हुनका भारी जलन भ’ उठलनि। तखन सती जा कय यज्ञ देखलीत ओतय कतहु शिवजीक भाग नहि देखाय पड़लनि। आब हुनका शिवजी जे कहने रहथि से सब बात बुझय मे आबि गेलनि।
 
७. स्वामीक अपमान बुझिकय सतीक हृदय मे भारी जलन भेलनि। पैछला पति परित्याग केर दुःख हुनकर हृदय मे ओतेक नहि प्रभाव कएने रहनि जतेक महान्‌ दुःख एहि समय पति अपमान केर कारण भेलनि।
 
८. यद्यपि जग भरि मे कतेको तरहक दारुण दुःख छैक तैयो जाति अपमान सबसँ पैघ आ कठिन होइत छैक। ई बुझिते सतीजी केँ बड़ा भारी क्रोध भ’ गेलनि। माय हुनका बहुतो ढंग सँ समझेली-बुझेली, लेकिन हुनकर क्रोध शान्त नहि भेलनि।
 
हरिः हरः!!