कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
मड़ौसी
गामपर भैर गामक लोक जुटि गेल छल। कारण छलैक जे धर्बेन्द्रा ११ वर्षक अवस्था सँ जे गाम छोड़ि भागि गेल छल से केना न केना आइ गाम घुरि आयल छल। बीच अंगना मे खटिया पर ओ बैसल आ दियाद-बाद सँ लैत टोल-पड़ोसक सब लोक ओतय जमा। कियो कहय, कि रौ धर्बेन्दर, लोक एना अपन गाम बिसरैत अछि रौ…., कियो परिवार मे के सब छौक…, कियो मसोमात माय के बिलटाकय चलि गेल छल ई, आब ई कि करय आयल गाम…!
धर्बेन्द्रा के २ बहिन, १ टा त सासुर बसैत अछि आ दोसर बेचारी अपन माय-बाबूक मड़ौसी केँ देखभाल करय लेल सासुर आ पति सँ झगड़ा कय केँ अपन नैहरे मे रहि गेल अछि। आइ ओकरो खुशीक ठेकाना नहि छैक, जेठ भाइ जे गाम घुरि आयल छैक।
धर्बेन्द्रा कनिकाल त लोकक बात सब केँ आल-टाल करैत किछु-किछु जबाब हिन्दी मे गिटिर-पिटिर बाजिकय दैत रहलैक, मुदा बाद मे ओ कहलकैक जे ‘मेरेको अपना जमीन, घर-बार ये सब बेचना है, इसलिये गाँव आया हूँ। आगे बेटी की शादी है। हाथ पे उतने पैसे नहीं हैं।’ ई बात सुनिते ओकर दियाद-बाद सब मार-मार करब शुरू कय देलकैक…!
बहिनक आँखि मे नोर भरि गेलैक… ओकरा अपन भाइ के इच्छा सुनिते अपन जीवनक आगूक अवस्था कि होयत से सोचियेकय चिन्ता मे पड़ि गेल… लेकिन गामक लोक एतबो चण्डाल त नहि छैक जे ओकर भाइ के एहि तरहक इच्छा केँ पूरा कय देतैक…. लेकिन कहीं कियो दुष्ट प्रकृतिक लोक ओकर भाइ सँ कागत-पत्तर बनबा लेतैक तखन…?
ओ बहुत परेशान भ’ गेल छल। अपन जीवनक संघर्ष जे ओ आइ धरि खबासनीक काज कय केँ गुजारा करैत अपन मायक स्मृतिशेष केँ बचबैत जियैत रहल से कि आब मटियामेट भ’ जेतैक? ओ बहुत चिन्तित आ दुःखी छल। आइ ३० वर्ष बाद ओकर भाइ गाम घुरल लेकिन कथी लेल? अपन मड़ौसी बेचय लेल।
मड़ौसी पर बेटे के अधिकार हेबाक बात जे समाज मे स्थापित छैक! बस एकरे गलत फायदा उठाकय ओ फेर वैह अन्जान शहर दिश घुरि जायत। बेटीक ब्याह के नाम पर मड़ौसी बेचय लेल गाम आयल अछि।
एकहु टा दियाद-बाद एहि लेल तैयार नहि, कारण ओ अपन मसोमात माय के मरलापर श्राद्ध तक नहि कएने अछि, आब ओ कथी के बेटा आ ओकर मड़ौसी पर कोन अधिकार…! लेकिन गाम मे नीति-अनीति के बात आब शहरी पैरामीटर पर द्विपक्षीय भेल करैत छैक। पुलिस-थाना आ कोर्ट-कचहरी के दरबज्जा गामक लोक लेल खुजल छैक। ई सब मिथिला वला समाजिकता या नैतिकता केँ नहि मानैत छैक। दियाद-बाद के कहने कि हेतैक? कानूनी हक बेटे के बनैत छैक।
ओ बेटा जे अपन मसोमात माय के मुंह मे ऊको नहि देलक…, श्राद्ध आ अन्नदान तक नहि कयलक… ओहो काज ओ एकटा बेटिये कयलकैक। बुढिया अपन जीवन मे संघर्ष त करनहिये छल, ओकर ई बेटी सेहो संघर्ष सँ जीवन जीबि रहल अछि… बस अपन मायक पदचिह्न पर पुत्रधर्म केँ निभेबाक काज ई बेटिये कयलक। लेकिन धर्बेन्द्रा ई सब नहि मनतैक। ओकरा मड़ौसी बेचबाक छैक।
हाय रे मिथिलाक वर्तमान समाज! धर्बेन्द्राक ढिठाई के के इलाज करतैक? कि मिथिलाक अपन कोनो कानून नहि चलतैक?
ओकर बहिनक आँखि सँ अश्रुधारा बहल जा रहल छैक… ओ गुम अछि, बाजत त कि बाजत… बस अपन भैयाक मुंह दिश ताकिकय कनने जा रहल अछि। धर्बेन्द्रा परदेशे मे कोनो जाट कि बक्खो के बेटी सँ ब्याह कय लेने छैक… से सब बात धीरे-धीरे खुजि रहल छैक। ओकर १ बेटा १ बेटी छैक। झुग्गी मे रहैत अछि फरीदाबाद मे। फैक्टरी मे काज करैत अछि दरबानी के। तनखा बेसी नहि छैक। बेटीक ब्याह करतैक त कम स कम ५ लाख टका चाही। मड़ौसी नहि बेचतैक त बेटीक ब्याह केना हेतैक!
बहिन किछु सोचि लेलक… अपन आँखिक नोर पोछलक। अपन दियाद-बाद केँ कहलकैक जे एकरा सबटा जमीन बेचय दहक। हमरा खाली रहय लेल एहि बासडीह मे ५ धूर छोड़िकय सबटा बेचय। हम अपन मायक स्मृतिशेष केँ अपन जीवन भरि जीबय चाहि रहल छी। ई अपन संसार केँ आबाद करय! मड़ौसी पर धर्बेन्द्राक अधिकार छोड़ि देलकैक। धर्बेन्द्रा सब बेचिकय किछुए दिन मे परदेश घुरि गेल। आइ ओकर कोनो नामोनिशान नहि छैक।
बहिन धरि अपन ५ धूर के भाग सँ अपन मातृअस्मिता केँ जगजियार कएने अछि। आब ओकरो धियापुता पैघ भेलय। सुनय छी जे ५ कट्ठा जमीन सेहो कीनि लेलक। ओकरो धियापुताक ब्याह आब होइवला छैक, बासडीह सेहो कीनत, ई सब सुनैत छी। लोकक विश्वास बहिनहि पर छैक। एहि लोक सँ परलोक धरि वैह जीतत। वैह आबाद रहत। ओकरे जिन्दाबाद हेतैक।
हरिः हरः!!