अद्भुत गणितज्ञ रामानुजन

गणितमे भारतीय गणितज्ञक योगदान अद्भुत आ अविस्मरणीय अछि। प्राचीनकालसँ संख्या पद्धति, शून्य आ दशमलव आदि महत्वपूर्ण खोज यैहसब कयलथि। एक महान भारतीय गणितज्ञ भेलाह रामानुजन। ‘गणितज्ञहुके गणितज्ञ’ तथा ‘संख्याके जादूगर’ आदि कतेको लोकचर्चित उपाधि हिनका भेटलन्हि। ३३ वर्षक जीवनकालमे हिनकाद्वारा लगभग ५००० प्रमेयक सूत्रपात भेल अछि। हिनक शोधकाजकेँ पूर्ण व्याख्यामे पैघ-पैघ गणितज्ञ लोकनि एखनधरि जुटल छथि। हिनकर पूरा नाम श्रीनिवास रमानुजन इयंगर छलन्हि। हिनक जन्म २२ दिसम्बर १८८७ ई. दक्षिण भारतक कोयम्बटुर समीप इरोडमे भेलन्हि। हिनकर बाल्यकाल कुम्भकोणममे बितलन्हि। रामानुजन पूर्ण आध्यात्मिक आ अपन समस्त खोजकेर मूलकारक कुलदेवी ‘नामगिरी देवी’ केँ मानैथ।

रामानुजनक संघर्षक गाथा

गणितमे रुचि आ लगन एतेक बेसी रहनि जे सुतलो समय हिसाबे जोड़ल करथि। पहिने स्लेट, फेर रजिस्टर – हिसाब जोड़बाक गज्जब आ प्रभावी तरीका छलन्हि। बालरूपमे अद्भुत प्रतिभासँ चारूदिश चर्चित भ’ गेलाह। संख्याक खेल आ अकल्पनीय प्रश्न पुछबाक प्रतिभा, व्यवहारमे सौम्यता, देखयमे स्थूल शरीरधारी, जिज्ञासासँ चमकैत आँखि – हिनकर अलगे पहिचान छल। गणितक अलावा दोसर विषयमे कम रुचि रहनि। इतिहास, जीव विज्ञान आदिक कक्षामे सेहो गणितहिके हिसाब बनबैथ। ११मींमे गणित छोड़ि आर विषयमे अनुत्तीर्ण भ’ गेलाह। पूर्वसँ भेटि रहल छात्रवृत्ति सेहो बन्द भ’ गेलनि। आर्थिक निर्बल परिवारक छात्रकेँ बिना छात्रवृत्ति आगूक पढाईमे बहुत परेशानी भेलनि। गणितके ट्यूशन पढा आ खाताबहीक काज कयकेँ पढाई जारी रखलनि। १९०७ ई.मे दोबारा १२मींक परीक्षा देलनि, तैयो गणित छोड़ि आर विषयमे फेल भ’ गेलाह। पारम्परिक शिक्षाक एतहि इतिश्री भ’ गेलनि।

संकल्प अटल हो त’ संघर्ष सँ मंजिल भेटिते टा छैक। ईश्वरकृपामे अटूट आस्थाक बलसँ रामानुजन संघर्ष करैत अपन आगूक शोधकार्य निरन्तरतामे रखलनि। मात्र पाँचटकाक आय सँ काज चलालेल करथि। १९०८मे हुनक विवाह जानकीसंग भेलनि। विवाहोपरान्त नौकरी खोजय मद्रास गेलाह। १२मीं अनुत्तीर्ण हेबाक कारण नौकरियो नहि भेटनि। कतहु जाइथ त’ डिग्रीक बदला गणितक संकलित प्रमेयक रजिस्टर देखबथि। एहिक्रममे कतेकोदिन भुखले रहि जाइथ। अस्वस्थ सेहो भ’ गेलाह। चिकित्सकक परामर्शपर कुम्भकोणम वापस जाय पड़लन्हि। स्वास्थ्यलाभक बाद फेर मद्रास आबि संघर्ष कयलाह। कियो शुभेच्छुक मद्रासक डिप्टी कलक्टर वी. रमास्वामी अय्यरसँ भेंट करबाक सलाह देलखिन। डिप्टी कलक्टर हुनकर गणितक रजिस्टर देखि बहुत प्रभावित भेलथि। ओ रामानुजनकेँ जिलाधिकारी रामचंद्र रावसँ कहिकय २५टका मासिक छात्रवृत्ति दियेलथि। एहि वृत्ति पर रामानुजन मद्रासमे एक साल रहिकय अपन पहिल शोधपत्र प्रकाशित कयलनि। शोधपत्रक शीर्षक छल “बरनौली संख्याक किछ गुण” जे “जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी” मे प्रकाशित भेल। पुनः हुनका मद्रास पोर्ट ट्रस्टमे किरानीक नौकरी भेट गेलनि। ई हुनकालेल वरदान सिद्ध भेल। काजक भार कम हेबाक कारण शोधकार्यमे तेजी अनलाह। रातिराति भरि जागि ओ गणितीय शोध स्लेटपर खड़िआसँ लिखल करथि। परिणाम प्राप्तिकबाद रजिस्टर मे उतारल करथि। किछुए कालक आराम आ पुनः कार्यालयलेल प्रस्थान कयल करथि।

रमानुजनक भाग्योदय

किछु प्रशंसक हिनकर शोधकार्य तत्कालिक विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञसबकेँ पठौलनि। तैयो शुरूमे कोनो विशेषलाभ हासिल नहि भ’ सकलनि। तखन मद्रासहिके एक प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर शेषू अय्यरकेँ संख्या सिद्धान्तक किछु सूत्र देखेलखिन। हिनका मार्फत अन्य प्रसिद्ध गणितज्ञधरि पहुँचबाक शुभकार्य सम्भव भेलनि। ताहिसमय परतंत्र भारतक विद्वत् कार्यकेँ पश्चिमी विद्वानक सहमतिक ठप्पा बिना विश्वपटलपर आनब संभव नहि छल। एहि क्रममे हिनकर परिचय प्रोफेसर हार्डीसंग भेलनि। ब्रिटेनके प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डीक अनुत्तरित प्रश्नक जवाब खोजि लेबाक दावी सेहो ई कयलनि। संगहि अपन शोध कार्य सेहो पत्राचार मार्फत हुनका पास पहुँचेलनि। सौभाग्यवश प्रोफेसर हार्डी हिनकर कार्यकेँ समुचित ढंगसँ मनन कयलथि। एतहिसँ रामानुजनक जीवनमे नव युगकेर सूत्रपात भेल।

प्रोफेसर हार्डी ताहि समयक चर्चित गणितज्ञ लोकनि बीच किनको १००मे ३५, किनको १००मे ६०, लेकिन रामानुजनकेँ १००मे १०० अंक देलथि। प्रोफेसर हार्डी आ रामानुजनक मित्रता एक-दोसरकलेल पुरकके काज केलक। गणितीय शोधक्षेत्रमे विश्व समुदायकेँ सेहो ई जोड़ी बहुत किछु प्रदान कयलक। प्रोफेसर हार्डीक प्रयासक चलते रामानुजनक शोधकार्यकेँ आर नीकसँ व्याख्या करबाक निमित्त कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयमे आमंत्रित कयलनि। मुदा अर्थाभावक कारण रामानुजनलेल विदेशगमन सहज नहि छल। तखन प्रोफेसर हार्डीक प्रयाससँ मद्रास विश्वविद्यालयसँ शोधवृत्ति प्राप्त करैत ओ बेलायत गेलाह। बेलायत पहुँचि ओ उच्चकोटिक शोधपत्रसब प्रकाशित कयलथि। हुनक क्षमतासँ प्रभावित भ’ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय हुनका बी.ए.के उपाधि सेहो प्रदान कयलक।

अत्यन्त सात्विक आ सौम्य विचारधाराक धनी रामानुजन इंग्लैन्ड प्रवासमे स्वपाकी बनिकय सादगी जीवन जियैत रहलथि। मुदा ओहिठामक जलवायु व वातावरण हिनक अनुकूल नहि होयबाक कारण ई काफी बीमार रहय लगलाह। चिकित्सक हिनका क्षयरोग हेबाक बात कहलकनि जेकर ताहि समय इलाज नहि छलैक। लगभग ५ वर्ष धरि इंग्लैन्डमे रहि संख्या सिद्धान्तपर सूत्र प्रतिपादनक कार्य ई कयलनि। बादमे भारत वापस आबय पड़लन्हि। हिनका मद्रास विश्वविद्यालयमे प्रोफेसरके पद पर नियुक्ति सेहो भेटलनि। लेकिन अल्पायु मे ई बीमारी सँ संघर्ष करैत एहिलोक सँ २६ अप्रैल १९२० केँ परलोक गमन कय गेलाह।

आयु भले हिनकर छोट भेलनि लेकिन उपलब्धिक शिखरपर पहुँचि गेलाह। हजारों प्रमेयक प्रतिपादक आ संख्या सिद्धान्तमे अद्भुत खोज कयनिहार गणितज्ञक रूपमे ई विश्व प्रसिद्ध भ’ गेलाह। भारत संग विश्व भरिक कइएक देशमे हिनकर कयल काज आइ धरि अर्चित आ चर्चित अछि। रॉयल सोसाइटी केर फेलो मेम्बरशिप समान बहुत पैघ गौरव भेटलनि। पूरे इतिहासमे एहिसँ कम आयुक कोनो सदस्य आइधरि नहि भेल अछि। ट्रिनीटी कॉलेजके फेलोशिप प्राप्त कयनिहार पहिल भारतीय भेलाह। बीमारीक दशा मे सेहो ई मॉक थीटा फंक्शनपर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र लिखलनि। भारतमे प्रत्येकवर्ष हिनकर जन्मदिवस २२ दिसम्बर केँ राष्ट्रीय गणित दिवसके रूपमे मनायल जाइछ।