रामचरितमानस मोतीः भरद्वाज-याज्ञवल्क्य संवाद एवं प्रयाग माहात्म्य

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

१४. याज्ञवल्क्य-भरद्वाज संवाद आ प्रयाग माहात्म्य

 

तुलसीकृत् रामचरितमानस मे रामायणक परिचय आ महत्व केर शुरुआती भाग पूरा कयलाक बाद आब श्री रामचन्द्र जीक लीला स्वरूप रामायण कथाक अवतरण दुइ महान ऋषिक आपसी संवाद सँ उतारबाक कार्य आरम्भ कयल जा रहल अछि।
 
१. भरद्वाज मुनि प्रयाग मे रहैत छथि। हुनका श्री रामजीक चरण मे अत्यधिक प्रेम छन्हि। ओ तपस्वी, निगृहीत चित्त, जितेन्द्रिय, दयाक निधान और परमार्थक मार्ग मे अत्यन्त प्रवीण छथि।
 
२. माघ मे जखन सूर्य मकर राशि पर जाइत छथि तखन लोक सब तीर्थराज प्रयाग अबैत अछि। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्य सभक समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी मे स्नान करैत छथि। श्री वेणीमाधवजीक चरणकमल केर पूजा करैत छथि आर अक्षयवट केर स्पर्श कय प्रसन्न होइत छथि।
 
३. भरद्वाजजी के आश्रम बहुते पवित्र, परम रमणीय और श्रेष्ठ मुनिजन लोकनिक मन केँ नीक लागयवला छन्हि। तीर्थराज प्रयाग मे जे स्नान करय जाइत छथि ओ सब ऋषि-मुनि लोकनिक समाज भरद्वाजजीक आश्रम मे जुटानी करैत छथि। प्रातःकाल सब उत्साहपूर्वक स्नान करैत छथि आर फेर परस्पर भगवान्‌ केर गुण सभक कथा कहैत-सुनैत छथि। ब्रह्म केर निरूपण, धर्म केर विधान और तत्त्व केर विभागक वर्णन करैत छथि तथा ज्ञान-वैराग्य सँ युक्त भगवान्‌ केर भक्तिक कथन करैत छथि। एहि प्रकारे माघ केर महीना भरि स्नान करैत छथि आर फेर सब अपन-अपन आश्रम दिश चलि जाइत छथि। हरेक साल एतय बड़ा आनन्द होइत अछि। मकर स्नान कय केँ मुनिगण चलि गेल करैत छथि।
 
 
४. एक बेर पूरा मकर भरि स्नान कय केँ सब मुनीश्वर अपन-अपन आश्रम वापस चलि गेलाह। परम ज्ञानी याज्ञवल्क्य मुनि केर चरण पकड़िकय भरद्वाजजी राखि लेलनि। आदरपूर्वक हुनक चरणकमल पखारिकय बड़ा पवित्र आसन पर बैसेलनि। पूजा कय केँ मुनि याज्ञवल्क्यजीक सुयश केर वर्णन कयलथि और फेर अत्यन्त पवित्र और कोमल वाणी सँ बजलाह – हे नाथ! हमर मोन मे एक पैघ संदेह अछि। वेद केर तत्त्व सब अहाँक मुट्ठी मे अछि, अपने वेद केर तत्त्व जाननिहार हेबाक कारण हमर संदेहक निवारण कय सकैत छी। लेकिन ओ संदेह कहैत हमरा बड़ा भारी भय और लाज भऽ रहल अछि, भय एहि लेल जे कहीं अहाँ ई नहि बुझि ली कि हमर परीक्षा लय रहल अछि, आ लाज एहि लेल जे एतेक आयु बीति गेल मुदा ज्ञान एखन तक नहि भेल और यदि नहि कहैत छी त बड़ पैघ हानि होइत अछि कारण हम अज्ञानिये बनल रहि जायब। हे प्रभो! संत लोकनि एहेन नीति कहैत छथि और वेद, पुराण तथा मुनिजन सेहो यैह बतबैत छथि जे गुरुक संग छिपाव कयला सँ हृदय मे निर्मल ज्ञान नहि होइत छैक। यैह सोचिकय हम अपन अज्ञान प्रकट करैत छी। हे नाथ! सेवक पर कृपा कय केँ एहि अज्ञानता केँ नाश करू। संत, पुराण और उपनिषद द्वारा राम नाम केर असीम प्रभावक गान कयल गेल अछि। कल्याण स्वरूप, ज्ञान और गुण केर राशि, अविनाशी भगवान्‌ शम्भु निरंतर राम नाम केर जप करैत रहैत छथि। संसार मे चारि जाति केर जीव अछि, काशी मे मरलो सँ सब परम पद केँ प्राप्त करैत अछि। हे मुनिराज! ओहो राम (नामे) के महिमा छी, कियैक तँ शिवजी महाराज दया कय केँ (काशी मे मरनिहार जीव केँ) राम नामे के उपदेश करैत छथि, एहि सँ हुनका हुनका लोकनि केँ परम पद भेट गेल करैत छन्हि। हे प्रभो! हम अहाँ सँ पुछैत छी जे ओ राम के छथि? हे कृपानिधान! हमरा बुझाकय कहू। एक राम त अवध नरेश दशरथजीक कुमार छथि, हुनकर चरित्र सारा संसार जनैत अछि। ओ स्त्रीक विरह मे अपार दुःख उठेलनि आर क्रोध एलापर युद्ध मे रावण केँ मारि देलनि। हे प्रभो! वैह राम छथि या आर कियो दोसर छथि जिनका शिवजी जपैत छथि? अपने सत्य केर धाम छी आर सब किछु जनैत छी, ज्ञान विचारिकय कहू। हे नाथ! जाहि सँ हमर ई भारी भ्रम मेटा जायत, अपने वैह कथा विस्तारपूर्वक कहू।
 
५. भरद्वाज जीक ई बात सब सुनिकय याज्ञवल्क्यजी विहुँसैत बजलाह, श्री रघुनाथजीक प्रभुता केँ अहाँ जनैत छी। अहाँ मन, वचन और कर्म सँ श्री रामजीक भक्त छी। अहाँक चतुराई केँ हम जानि लेलहुँ। अहाँ श्री रामजीक रहस्यमय गुण केँ सुनय चाहैत छी, ताहि द्वारे अहाँ एहेन प्रश्न कयलहुँ अछि मानू बड़ा मूर्ख होइ। हे तात! अहाँ आदरपूर्वक मोन लगाकय सुनू। हम श्री रामजीक सुन्दर कथा कहैत छी। बड़ा भारी अज्ञान विशाल महिषासुर थिक और श्री रामजीक कथा ओकरा सब केँ नाश करयवाली भयंकर कालीजी थिक।
 
(आर एहि तरहें रामचरितमानस केर कथा हमरा सब केँ भरद्वाजजी केँ याज्ञवल्क्यजी द्वारा वर्णन करैत प्राप्त भेल अछि।)
 
हरिः हरः!!