कि भारतीय राज्य केँ भाषाई आधार पर विभाजित कयल जेबाक चाही?

लेख

– इन्दिरा बसु (अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)

स्रोतः https://www.thequint.com/news/india/linguistic-division-of-states-in-india-history

कि भारतीय राज्य केँ भाषाई आधार पर विभाजित कयल जेबाक चाही?

भाषाई राज्य केर मांग जारी अछि जेना कि गोरखालैंड के मांग,
मिथिला राज्य केर मांग उभरय सँ स्पष्ट अछि…..

वर्ष 1947 छल। भारत अधरतियाक बच्चा छल, जे हजारों क्रांतिकारी और आम लोकक संघर्ष सँ जन्म लेने छल, स्वतंत्रता और सम्मान केर जीवनक आशा मे। एकता केँ ध्यान मे रखैत हमरा सभक संवैधानिक पुरखा लोकनि तय कयने रहथि जे 571 रियासत केँ मिलाकय 27 राज्य बनायल जायत।

एहि निर्णय के आधार “भाषा और संस्कृति” नहि बल्कि बेसीतर “ऐतिहासिक और राजनीतिक” छल।

हालांकि ई कदम अस्थायी रहय, यावत काल धरि 1956 मे अंग्रेज सब द्वारा बनायल गेल राज्य केर राजनीतिक सीमा केँ फेर सँ बनेबाक पहल शुरू नहि भ गेल तावत काल लेल मात्र छल।
 

लेकिन राज्यक पुनर्गठन केर मुद्दा सब सँ पहिने कहिया उठायल गेल? 

भाषाई राज्य केर सवाल पर बंटल ‘युवा’ भारत

Gandhi, Sardar Patel and Pandit Nehru
गांधी, सरदार पटेल और पंडित नेहरू गांधी, सरदार पटेल और पंडित नेहरू (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)
राज्य केर भाषाई विभाजनक आह्वान बहुत पुरान अछि, जेना कि अंग्रेज द्वारा 1936 मे उड़िया बजनिहार लेल एक टा राज्य बनेबा सँ स्पष्ट अछि – उड़ीसा, बिहार और बंगाल राज्य सँ।
 
राज्य केर भाषाई विभाजनक आवश्यकता केँ पूरा करबाक लेल सरकार अंततः 1948 मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय केर न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसके धर* केर नेतृत्व मे एक आयोग केर गठन कयलक। हालांकि, समिति राज्यक पुनर्गठन वास्ते एहि आधार सँ सहमत नहि छल, बल्कि प्रशासनिक सुविधा लेल एना करबाक चाही कहलक।
 
एहि तरहें, दिसंबर 1948 मे, कांग्रेसी जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारामय्या एहि मुद्दा केँ संबोधित करबाक लेल जेवीपी समिति केर गठन कयलक, लेकिन अप्रैल 1949 मे एहि विचार केँ खारेज कय देलक, कियैक तँ हुनकर मान्यता ई छल जे भाषाई राज्य केवल एक नव राष्ट्र केर एकता केँ कमजोर करत।
 
तेलुगु स्वतंत्रता सेनानी और आंध्र समर्थक कार्यकर्ता पोट्टी श्रीरामुलु अपन मृत्यु तक उपवास रखलाह। हुनक मृत्युक बाद, आंध्र राज्य केर उदय भेल। (फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स)
स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्रीरामुलुक मृत्यु उपरान्त 1952 मे एक बेर फेर राजनीतिक सीमाक पुनर्गठनक आवश्यकता बुझल गेल। श्रीरामुलु केर 56 दिन के भूख-हड़ताल केर बाद मृत्यु भऽ गेल छलन्हि, एहि धरनाक मंचन ओ मद्रास केर तेलुगु भाषी क्षेत्रक लेल अलग राज्य दिश ध्यान आकर्षित करबाक लेल कएने रहथि।
 
एहि प्रकारे, 1953 मे, आंध्र – तेलुगु भाषी लोकक लेल पहिल राज्य जन्म लेलक। संगहि भाषाई आधार पर अन्य राज्य केर गठनक मांग उठल।
 

भाषाई राज्यक संग नेहरू केर ‘प्रयास’

अपन प्रतिष्ठित ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण देनिहार नेहरूक छवि, प्रतिनिधित्व उद्देश्य लेल केवल उपयोग कयल गेल अछि। (फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स)

एहि तरहें, नेहरू द्वारा एहि मांग केँ पूरा करबाक लेल 22 दिसंबर 1953 केँ न्यायमूर्ति फजल अली केर नेतृत्व मे एक आयोग के गठन कयल गेल। दू साल बाद, फ़ज़ल अली के नेतृत्व वाली समितिक रिपोर्ट निष्कर्ष निकाललक जे भारत केँ 16 राज्य मे विभाजित कयल जेबाक चाही। 

 
अंत मे, नवंबर 1956 मे राज्य पुनर्गठन अधिनियम (एसआरए) के पारित हेबाक साथे, भारत 14 राज्य और छह केंद्र शासित प्रदेश मे विभाजित भऽ गेल। नतीजतन, चारि नव दक्षिणी राज्य दोसरक बीच उभरल – आंध्र प्रदेश, केरल, मद्रास (1969 मे नाम बदलिकय तमिलनाडु कयल गेल) और मैसूर (1973 मे नाम बदलिकय कर्नाटक कयल गेल)।

जतय गांधी 1918 के शुरुआते सँ राज्य केँ भाषाई विभाजन के लगातार वकालत कएने रहथि, नेहरू 1950 के दशक के शुरुआत धरि एकर विरोध मे रहलाह।

जेना कि इतिहासकार रामचंद्र गुहा टीओआई (टाइम्स अफ इंडिया) मे 2003 के एहि लेख मे कहने छथि, गांधी 1921 मे होम रूल लीग सँ कहलनि, “लोकक जरूरत और राष्ट्रक हर घटक हिस्साक विकास पर तेजी सँ ध्यान देबाक लेल”, हुनका सबकेँ “भारत मे भाषाई विभाजन अनबाक प्रयास करबाक चाही”।

अम्बेडकर के एहि मामिला मे कि कहब रहनि?

डॉ बीआर अंबेडकर (फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स)

संविधान के संस्थापक डॉ बीआर अंबेडकर सेहो भाषाई राज्य केर प्रस्तावक रहथि, लेकिन चाहैत रहथि जे ई कदम उचित सीमा के भीतर हो। 23 अप्रैल 1953 केँ द टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख मे हुनकर यैह कहब रहनि:

 
एक भाषाई राज्य मे, छोट समुदाय सभक लेल कि-कि देखय के रहत? कि ओकरा सब केँ विधायिका लेल चुनल जेबाक उम्मीद कय सकैत छी? कि ओ सब राज्य सेवा मे स्थान बनेने रखबाक आशा कय सकैत अछि?
जाति और भाषाई अल्पसंख्यक सभक मुद्दा केँ संबोधित करैत अम्बेडकर ईहो कहलनि, “एकर मतलब ई नहि छैक जे भाषाई प्रांत केर लेल कोनो मामिला नहि छैक। एकर मतलब ई छैक जे ई देखबाक लेल निश्चित नियंत्रण आ संतुलन होयबाक चाही जे एक भाषाई राज्य केर आड़ि मे एक सांप्रदायिक बहुमत अपन शक्ति केर दुरुपयोग नहि करय। 
 
एहि खातिर, अंबेडकर 1948 केर कांग्रेस द्वारा स्थापित भाषाई प्रांत आयोग केँ अपन पत्र मे लिखलथि, जे महाराष्ट्र राज्य लेल एक मामिला बनल:
 
संविधान मे ई प्रावधान होयबाक चाही जे हर प्रांत के राजभाषा वैह होय के चाही जे केंद्र सरकार के राजभाषा थिक। एहि आधार पर हम भाषाई प्रांत केर मांग केँ स्वीकार करय लेल तैयार छी।
 

नव राज्य केर जन्म

संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के नेता केशव सीताराम ठाकरे। (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)
1956 मे एसआरए (State Reorganization Act) के पारित हेबाक साथ कइएक राज्य केर उदय के बावजूद, बॉम्बे, पंजाब और उत्तर पूर्वी राज्य केर राज्यक मांग केँ संबोधित नहि कयल गेल छल। जखन कि बॉम्बे मे मराठी और गुजराती भाषी समुदाय अलग राज्य केर दर्जा चाहैत रहय, कोनो पार्टी बॉम्बे शहर केँ आत्मसमर्पण करय लेल तैयार नहि छल।
 
अंततः, 1960 संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र और गुजरात के निर्माण भेल, जाहि मे पहिलुक (महाराष्ट्र) मे बंबई शहर पड़ल छल।
 
भाषाई और जातीय समुदाय के बीच एहि तरहक संघर्ष के कारण 1966 मे हरियाणा और पंजाब और 1971 मे हिमाचल प्रदेश के निर्माण भेल। उत्तर पूर्व मे, नागालैंड 1963 मे राज्य के दर्जा पाबयवला पहिल छल, ओकर बाद 1972 मे मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय के स्थान छल। तेकर एक दशक बाद, 1987 मे मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के जन्म भेल।
 

हमरा लोकनि भाषाई राज्य केँ पहिल स्थान पर कियैक चाहैत छलहुँ?

भाषा आधारित राजनीतिक सीमा बनेबाक मांग समुदाय के भागीदारी केँ बढ़ावा देबाक और स्थिर शासन सुनिश्चित करबाक आवश्यकता सँ उभरल। एकर अलावे, ई आशा कयल गेल छल जे अंग्रेज द्वारा नजरअंदाज कयल गेलाक बाद स्थानीय भाषा केँ अंततः महत्व भेटत।
 
एहि लेख मे इतिहासकार रामचंद्र गुहाक अनुसार, भाषाई राज्य एकता केँ मजबूत कयलक, नेहरू के एहि धारणाक विपरीत जे ई पहिने सँ विभाजित राष्ट्र केँ और खंडित करत और धर्मनिरपेक्षता के आदर्श केँ सेहो पालन (सम्मान) नहि करत। जेना कि गुहा अपन लेख मे दावा कयलनि अछि:
 

ई कन्नडिगा और भारतीय, बंगाली और भारतीय, तमिल और भारतीय, गुजराती और भारतीय होयबाक लेल पूर्ण रूप सँ सुसंगत साबित भेल अछि।

– रामचंद्र गुहा, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के इतिहासकार
भाषाक आधार पर राजनीतिक सीमा नहि बनेबाक संभावित प्रभाव दिश इशारा करैत गुहा तत्कालीन सीलोन (वर्तमान श्रीलंका) के उदाहरण देलनि। 1956 मे, सिंहल के सीलोन केँ एकमात्र आधिकारिक भाषा घोषित कयल गेल, जाहि सँ एक निश्चित तमिल गुट मे असंतोष उत्पन्न भऽ गेलैक। वास्तव मे, 1983 के बादे सँ, द्वीप राष्ट्र केँ तबाह करयवला गृह युद्ध ज्यादातर बहुसंख्यक भाषाई समूह द्वारा अल्पसंख्यकक अधिकार सँ इनकार करय सँ उपजल छल।
1971 के युद्ध अपराधीक लेल मृत्युदंड के सजाय के मांग करैत शाहबाग, ढाका, बांग्लादेश मे लोकक विद्रोह। छवि केर उपयोग प्रतिनिधित्वात्मक उद्देश्यक लेल कयल गेल अछि। (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

समीपक पड़ोसी राष्ट्र मे, 1971 केर बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, जाहिक कारण बांग्लादेश केर जन्म भेल, पश्चिम पाकिस्तान के पंजाबी और उर्दू बजनिहार आ पूर्व के बंगाली बजनिहारक बीचक संघर्ष सँ उत्पन्न भेल।

…और मांग जारी अछि

गोरखालैंड समर्थक विरोध। (फोटो: पीटीआई)
मांग पुरान रहलाक बावजूद, एना लगैत अछि जे भाषाई राज्य केर आवश्यकता आइयो धरि प्रचलित अछि। उदाहरण के लेल, ‘गोरखालैंड’ के मांगें केँ नैतिक-भाषाई आधार पर ली, जे हालहु मे दार्जिलिंग मे व्यापक हिंसा केँ जन्म देलक।
 
एकर अलावे, केवल तीन साल पहिने, 2 जून 2014 केँ, भारतक 29वां राज्य, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश सँ बनल छल। 1969 मे दुइ अलग-अलग तेलुगु राज्य केर आह्वान तहिया भेल जहिया आंध्र में हिंसक विरोध भेल, जेकर कारण अंततः 1972 मे राज्य मे राष्ट्रपति शासन लगायल गेल छल।
तेलंगाना के भीतर जिला केँ देखबयवला नक्शा। (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)
जखन कि भाषाई राज्य केर अपन फायदा छैक, दोसर तरफ, ई राज्य कहियो-कहियो एक-दोसरक संग युद्ध मे सेहो जा सकैत अछि, उदाहरण के लेल, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच “जल युद्ध” (कावेरी नदी पर)।
 
जेना कि गुहा भविष्यवाणी मे कहैत छथि, अगर हमर देश के राजनीतिक नेता लोकनि अलग-अलग राज्य केर वास्ते भाषा समूह केर मांग पर आंखि मुनि लेने रहितथि, त हमरा सभक पास “एक भाषा, लेकिन 14 या 15 राष्ट्र” भऽ सकैत छल।