रामचरितमानस मोतीः मानस केर रूप आर माहात्म्य

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

१३. मानस केर रूप और माहात्म्य

 

ई रामचरितमानस जेहेन अछि, जाहि प्रकारे बनल अछि और जाहि हेतु सँ जग भरि मे एकर प्रचार भेल, ओ सब कथा हम (तुलसीदास) श्री उमा-महेश्वर केँ स्मरण कय केँ कहैत छी। श्री शिवजीक कृपा सँ हुनकहि हृदय मे सुन्दर बुद्धि केर विकास भेल जाहि सँ ई श्री रामचरित मानस केर कवि भेलाह। अपन बुद्धि केर अनुसार त ओ एकरा मनोहरे बनबैत छथि, मुदा तैयो हे सज्जनवृन्द! सुन्दर चित्त सँ सुनिकय एकरा अहाँ सुधारि लेब से कवि विनम्रता सँ अनुरोध करैत छथि।
 
१. सुन्दर (सात्त्विक) बुद्धि भूमि थिक, हृदय एकमात्र ओहि भूमिक गहींर स्थान थिक, वेद-पुराण समुद्र थिक और साधु-संत मेघ थिकाह। ओ (साधु रूपी मेघ) श्री रामजीक सुयश रूपी सुन्दर, मधुर, मनोहर और मंगलकारी जल केर वर्षा करैत अछि। सगुण लीलाक जे विस्तार सँ वर्णन करैत अछि वैह राम सुयश रूपी जल केर निर्मलता अछि, जे मल-गन्दगी आदिक नाश करैत अछि आर जाहि प्रेमाभक्तिक वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि ओ एहि जल केर मधुरता आ सुन्दर शीतलता थिक।
 
२. ओ (राम सुयश रूपी) जल सत्कर्म रूपी धान केर लेल हितकर अछि और श्री रामजीक भक्त लोकनिक त जीवनहि अछि।
 
३. ओ पवित्र जल बुद्धि रूपी पृथ्वी पर खसल आर समेटिकय सुहाओन कानरूपी मार्ग सँ चलल आर मानस – हृदयरूपी श्रेष्ठ स्थान मे भरिकय ओतहि स्थिर भऽ गेल। सैह पुरान भऽ कय सुन्दर, रुचिकर, शीतल और सुखदाई भऽ गेल।
 
४. एहि कथा मे बुद्धि सँ विचारिकय जे चारि अत्यन्त सुन्दर और उत्तम संवाद (भुशुण्डि-गरुड़, शिव-पार्वती, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास और संत) रचल अछि, वैह एहि पवित्र और सुन्दर सरोवर केर चारि गोट मनोहर घाट थिक। सात काण्ड एहि मानस सरोवर केर सुन्दर सात सीढ़ी सब थिक, जेकरा ज्ञानरूपी नेत्र सँ देखिते देरी मोन प्रसन्न भऽ जाइत अछि।
 
५. श्री रघुनाथजीक निर्गुण (प्राकृतिक गुण सँ अतीत) और निर्बाध (एकरस) महिमा केर जे वर्णन कयल जाइत अछि से एहि सुन्दर जलक अथाह गहींरता थिक। श्री रामचन्द्रजी और सीताजी केर यश अमृत समान जल थिक।
 
६. एहि मे जे उपमा सब देल गेल अछि से तरंग सभक मनोहर विलास थिक। सुन्दर चौपाइ सब एहि मे पसरल घनगर पुरइन (कमलिनी) केर गाछ थिक आर कविताक युक्ति सब सुन्दर मणि (मोती) उत्पन्न करयवला सुहाओन खुरचैन (सीपि) थिक।
 
७. जे सुन्दर छन्द, सोरठा और दोहा सब अछि ओ एहि मे बहुरंगा कमल फूल केर समूह सुशोभित अछि। अनुपम अर्थ, ऊँच भाव और सुन्दर भाषा एकर पराग (पुष्परज), मकरंद (पुष्परस) और सुगंध थिक। सत्कर्म (पुण्य) केर पुंज भौंराक सुन्दर पंक्ति थिक, ज्ञान, वैराग्य और विचार हंस थिक। कविताक ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति विभिन्न तरहक मनोहर मछरी सब थिक।
 
८. अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष – ई चारू, ज्ञान-विज्ञान केर विचार केर कहनाय, काव्य केर नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य केर प्रसंग – ई सब एहि सरोवर केर सुन्दर जलचर जीव सब थिक।
 
९. सुकृती (पुण्यात्मा) लोकनि केर, साधु लोकनि केर और श्री रामनाम केर गुण सभक गाने एकर विचित्र जल पक्षी सभक समान अछि।
 
१०. संत लोकनिक सभा एहि सरोवर केर चारू दिश पसरल अमराई (आमक गाछी) थिक आर श्रद्धा वसन्त ऋतु केर समान कहल गेल अछि। नाना प्रकार सँ भक्ति केर निरूपण और क्षमा, दया तथा दम (इन्द्रिय निग्रह) लता आदि केर मण्डप अछि।
 
११. मोनक निग्रह, यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह), नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधाने एकर फूल अछि, ज्ञान फल अछि और श्री हरि केर चरण मे प्रेम होयब एहि ज्ञानरूपी फल केर रस अछि। ई सब बात वेद कहने अछि।
 
१२. एहि (रामचरित मानस) मे आरो जे विभिन्न प्रसंगक कथा सब अछि ओ एहि मे सुग्गा, कोयली आदि रंग-बिरंगक पक्षी सब थिक। कथा मे जे रोमांच होइत अछि वैह वाटिका, बाग और वन थिक तथा जे सुख होइत अछि ओ सुन्दर पक्षी विहार थिक।
 
१३. निर्मल मन माली छी जे प्रेमरूपी जल सँ सुन्दर नेत्र द्वारा ओकर सींचन करैत अछि।
 
१४. जे लोक एहि चरित्र केँ सावधानी सँ गबैत अछि वैह एहि तालाब केर चतुर रखवाला थिक आर जे स्त्री-पुरुष सदा आदरपूर्वक एकरा सुनैत अछि वैह एहि सुन्दर मानस केर अधिकारी उत्तम देवता लोकनि थिकाह।
 
१५. जे अति दुष्ट और विषयी छथि, से अभागल सब बगुला और कौआ सब छथि जे एहि सरोवरक समीप नहि जाइत छथि, कियैक तँ एतय (एहि मानस सरोवर मे) डोकी (घोंघी), बेंग आर समार (सेवार) समान विषय रस केर नाना कथा सब एहि मे नहि भेटैत अछि।
 
१६. यैह कारण बेचारे कौआ और बगुलारूपी विषयी लोक एतय अबैत अबैत हृदय मे हारि मानि लैत छथि, कियैक तऽ एहि सरोवर तक आबय मे बहुते कठिनाई होइत छन्हि। श्री रामजी केर कृपा बिना एतय नहि आयल होइत अछि किनको।
 
१७. घोर कुसंग टा भयानक खराब रास्ता थिक, ओहि कुसंगी सभक वचन बाघ, सिंह और साँप होइछ। घर केर कामकाज और गृहस्थी सभक भाँति-भाँति केर जंजाले अत्यन्त दुर्गम बड़का-बड़का पहाड़ थिक। मोह, मद और माने सब बहुते रास बीहड़ वन थिक और नाना प्रकार केर कुतर्के भयानक नदी सब थिक।
 
१८. जिनका पास श्रद्धा रूपी बटखर्चा नहि अछि आर संत लोकनिक संगत नहि अछि, संगहि जिनका श्री रघुनाथ जी प्रिय नहि छथि, हुनका लेल ई मानस अत्यन्त अगम अछि। अर्थात् श्रद्धा, सत्संग और भगवत्प्रेम केर बिना कियो एकरा नहि पाबि सकैत अछि।
 
१९. यदि कोनो मनुष्य कष्ट उठाकय ओतय धरि पहुँचियो जाइथ त ओतय अबिते देरी तेहेन नीन (नींद) रूपी जूड़ी आबि जाइत छन्हि। हृदय मे मूर्खतारूपी बड़ा कड़गर जाड़ लागय लगैत छन्हि जाहि सँ ओतय जाइयोकय ओ अभागल स्नान नहि कय पबैत छथि। ओहि सँ ओहि सरोवर मे स्नान आर ओकर जलपान त कयल नहि जाइत छन्हि, त उन्टे अपन अभिमान मे ओतय सँ घुरि जाइत छथि। फेर जँ कियो हुनका सँ ओहिठामक हालचाल पुछय अबैत छन्हि त ओ अपन अभाग्य केर बात नहि कहिकय ओहि (रामचरितमानसरूपी) सरोवर केर निन्दा कय केँ हुनका लोकनि केँ बुझबैत छथि।
 
२०. ई सारा विघ्न ओहेन लोक केँ नहि होइत छैक जेकरा श्री रामचंद्रजी सुंदर कृपाक दृष्टि सँ देखैत छथि। वैह आदरपूर्वक एहि सरोवर मे स्नान करैत अछि और महान्‌ भयानक त्रिताप सँ (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक ताप सँ) नहि जरैत अछि।
 
२१. जेकर मोन मे श्री रामचंद्रजीक चरण मे सुन्दर प्रेम छैक ओ एहि सरोवर केँ कहियो नहि छोड़ैत अछि। हे भाइ! जे एहि सरोवर मे स्नान करय चाहि रहल छी से खूब मोन लगाकय सत्संग करू।
 
२२. एहिना मानस सरोवर केँ हृदयक आँखि सँ देखिकय और ओहिमे गुरकनियाँ मारिकय कविक बुद्धि निर्मल भऽ गेलनि, हृदय मे आनंद और उत्साह भरि गेलनि आर प्रेम तथा आनंद केर प्रवाह उमड़ि पड़लनि। ताहि सँ ओ सुन्दर कवितारूपी नदी बहि निकलल, जाहि मे श्री रामजीक निर्मल यश रूपी जल भरल अछि।
 
२३. एहि कवितारूपिणी नदीक नाम सरयू थिक, जे संपूर्ण सुन्दर मंगल केर जड़ि थिक। लोकमत और वेदमत एकर दुइ किनारा थिक। एहि सुन्दर मानस सरोवर केर कन्या सरयू नदी बड़ा पवित्र अछि और कलियुग केर छोट-पैघ सब पापरूपी तिनका आ वृक्ष केँ जड़ि सँ उखाड़ि फेकयवाली अछि।
 
२४. तीनू प्रकार के श्रोता लोकनिक समाजे एहि नदीक दुनू कंछैर पर बसल रहल पुरवा, गाम आ नगर मे रहैत छथि आर संत लोकनिक सभा टा सब सुन्दर मंगल केर जड़ि अयोध्याजी छथि। सुन्दर कीर्तिरूपी सुहाओन सरयूजी रामभक्तिरूपी गंगाजी मे जा मिलली।
 
२५. छोट भाइ लक्ष्मण सहित श्री रामजीक युद्ध केर पवित्र यशरूपी सुहाओन महानद सोन ओहि मे आबि मिलल। दुनूक बीच मे भक्तिरूपी गंगाजीक धारा ज्ञान और वैराग्य सहित शोभित भऽ रहल छथि। एहि तरहें तीनू ताप केँ डरबयवाली ई तिमुहानी नदी रामस्वरूपरूपी समुद्र दिश जा रहल छथि।
 

२६. एहि (कीर्ति रूपी सरयू) केर मूल मानस (श्री रामचरित) थिक आर ई (रामभक्ति रूपी) गंगाजी मे मिलैत अछि, ताहि लेल ई सुनयवला सज्जन लोकनिक मन केँ पवित्र कय देत। एकर बीच-बीच मे जे भिन्न-भिन्न प्रकार के विचित्र कथा सब छैक वैह मानू नदी तट केर आसपास रहल वन आ उपवन सब थिक।

२७. श्री पार्वतीजी और शिवजीक विवाह केर बरियाती एहि नदी मे बहुत प्रकारक असंख्य जलचर जीव थिक।

२८. श्री रघुनाथजीक जन्म केर आनंद-बधाइये एहि नदीक भँवर और तरंग केर मनोहरता थिक।

२९. चारू भाइ लोकनिक जे बालचरित अछि से एहि मे फुलायल रंग-बिरंगक कमल फूल थिक।

३०. महाराज श्री दशरथजी तथा हुनकर रानी लोकनि तथा कुटुम्ब लोकनिक सत्कर्म (पुण्य) भ्रमर और जल पक्षी थिक।

३१. श्री सीताजीक स्वयंवर केर जे सुन्दर कथा अछि से एहि नदीक सुहाओन छवि थिक।

३२. अनेकों सुन्दर विचारपूर्ण प्रश्न एहि नदी केर नाव थिक आर ओकर विवेकयुक्त उत्तर बुझू जे चतुर केवट थिक।

३३. एहि कथा केँ सुनिकय पाछू जे आपस मे चर्चा होइत छैक से एहि नदीक सहारे-सहारे चलयवला यात्री लोकनिक समाज जेकाँ शोभा पाबि रहल अछि।

३४. परशुरामजीक क्रोध एहि नदीक भयानक धारा थिक आर श्री रामचंद्रजीक श्रेष्ठ वचन सुन्दर घाट थिक।

 
३५. भाइ सहित श्री रामचंद्रजीक विवाह केर उत्साहे एहि कथारूपी नदीक कल्याणकारिणी बाढ़ि थिक जे सब केँ सुख दयवला अछि। 
३६. ई कहय-सुनय मे जे हर्षित और पुलकित होइत अछि वैह पुण्यात्मा पुरुष थिक, जे प्रसन्न मन सँ एहि नदी मे नहाइत अछि।
३७. श्री रामचंद्रजी के राजतिलक लेल जे मंगल साज सजायल गेल वैह मानू पाबनिक समय एहि नदी पर एकत्रित यात्री लोकनिक समूह थिक।
३८. कैकेयी केर कुबुद्धि एहि नदीक काई थिक, जेकर फलस्वरूप बड भारी विपत्ति आबि गेल।
३९. संपूर्ण अनगिनत उत्पात सब केँ शांत करयवला भरतजीक चरित्र नदी तट पर कयल जायवला जपयज्ञ थिक।
४०. कलियुग केर पाप आर दुष्ट लोकनिक अवगुण सभक जे वर्णन सब अछि से एहि नदीक जल केर थाल (कीचड़) आ बगुला-कौआ सब थिक।  
४१. ई कीर्तिरूपिणी नदी छहो ऋतु मे सुन्दर अछि। सब समय ई परम सुहाओन आर अत्यन्त पवित्र अछि। एहि मे शिव‍-पार्वतीक विवाह हेमंत ऋतु अछि। श्री रामचंद्रजीक जन्म केर उत्सव सुखदायी शिशिर ऋतु अछि। श्री रामचंद्रजीक विवाह समाजक वर्णने आनंद-मंगलमय ऋतुराज वसंत थिक। श्री रामजी के वनगमन दुःसह ग्रीष्म ऋतु अछि और मार्ग केर कथा कड़गर रौद तथा लू अछि। राक्षस सभक संग घोर युद्धे वर्षा ऋतु अछि, जे देवकुल रूपी धान वास्ते सुन्दर कल्याण करयवाली अछि। रामचंद्रजीक राज्यकाल केर जे सुख, विनम्रता और बड़ाई अछि वैह निर्मल सुख दयवाली सुहाओन शरद् ऋतु थिक।
 
४२. सती-शिरोमणि श्री सीताजीक गुण केर जे कथा अछि से एहि जल केर निर्मल आ अनुपम गुण थिक। श्री भरतजी केर स्वभाव एहि नदीक सुन्दर शीतलता थिक जे सदा एक रंग रहैत अछि आर जेकर वर्णन नहि कयल जा सकैछ। चारू भाइ लोकनिक एक-दोसर केँ देखनाय, बजनाय, मिलनाय, एक-दोसर सँ प्रेम कयनाय, हँसनाय और सुन्दर भ्रातृत्व एहि जल केर मधुरता और सुगन्ध थिक।
 
४३. हमर आर्तभाव, विनय और दीनता एहि सुन्दर और निर्मल जल के हलकापन अत्यन्त कम अछि। यैह जल बहुत सुन्दर अछि जे सुनय टा सँ गुण कयल करैत अछि आर आशारूपी प्यास केँ तथा मनक मैल केँ दूर कय देल करैत अछि। यैह जल श्री रामचंद्रजीक सुन्दर प्रेम केँ पुष्ट करैत अछि, कलियुगक सब पाप और ओहि सँ होयवला ग्लानि केँ हरण करैत अछि। संसारक जन्म-मृत्यु रूप श्रम केँ सोखि लैत अछि, संतोष केँ सेहो संतुष्ट करैत अछि और पाप, दरिद्रता तथा दोष केँ नष्ट कय दैत अछि। यैह जल काम, क्रोध, मद और मोह केँ नाश करयवला आर निर्मल ज्ञान तथा वैराग्य केँ बढ़ाबयवला होइत अछि। एहि मे आदरपूर्वक स्नान कयला सँ आर एकरा पिला सँ हृदय मे रहयवला सब पाप-ताप मेटा गेल करैत अछि।
४४. जे एहि राम सुयश रूपी जल सँ अपन हृदय केँ नहि पखारलक ओ कायर कलिकाल द्वारा ठकल गेल बुझू। जेना प्यासा हरिन सूर्यक किरण केँ रेत पर पड़िते ओहि सँ उत्पन्न भेल जल केर भ्रम केँ वास्तविक जल बुझिकय पियय लेल दौड़ैत अछि आर जल नहि पाबिकय दुःखी भेल करैत अछि, तहिना ओ कलियुग सँ ठकायल लोक विषय सभक पाछाँ भटकिकय दुःखी होयत।

४५. अपन बुद्धिक अनुसार एहि सुन्दर जलक गुण सब केँ विचारिकय ओहि मे अपन मन केँ स्नान कराकय आ श्री भवानी-शंकर केँ स्मरण कय केँ कवि (तुलसीदास) सुन्दर कथा कहैत छथि।

हरिः हरः!!