रामचरितमानस मोतीः श्री नाम वन्दना तथा नाम महिमा

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

रामचरितमानस मोतीः नाम वन्दना आ नाम महिमा

१. श्री रघुनाथजीक नाम ‘राम’ केर वंदना करैत छी जे कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) केर हेतु अर्थात्‌ ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ रूप सँ बीज छथि।

२. ओ ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप छथि।

३. ओ वेद केर प्राण छथि, निर्गुण, उपमारहित और गुण सभक भंडार छथि।

४. जे महामंत्र अछि,

५. जेकरा महेश्वर श्री शिवजी जपैत छथि आर हुनका द्वारा जेकर उपदेश काशी मे मुक्ति केर कारण थिक

६. जिनकर महिमा केँ गणेशजी जनैत छथि, जे एहि ‘राम’ नाम केर प्रभाव सँ मात्र सबसँ पहिने पूजल जाइत छथि,

७. आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम केर प्रताप केँ जनैत छथि, जे उल्टा नाम (‘मरा’, ‘मरा’) जपिकय पवित्र भ’ गेलाह,

८. श्री शिवजीक एहि वचन केँ सुनिकय जे एक राम-नाम सहस्र नाम केर समान अछि, पार्वतीजी सदा अपन पति (श्री शिवजी) केर संग राम-नाम केर जप करैत रहैत छथि, नाम के प्रति पार्वतीजीक हृदयक एहेन प्रीति देखिकय श्री शिवजी हर्षित भ’ गेलाह आर ओ स्त्रीगण मे भूषण रूप (पतिव्रता सब मे शिरोमणि) पार्वतीजी केँ अपन भूषण बना लेलनि। अर्थात्‌ हुनका अपन अंग मे धारण कय केँ अर्धांगिनी बना लेलनि।

९. नाम केर प्रभाव केँ श्री शिवजी नीक सँ जनैत छथि, जेकर प्रभाव केर कारण कालकूट जहर सेहो हुनका अमृत केर फल देलकनि।

१०. श्री रघुनाथजीक भक्ति वर्षा ऋतु थिक, तुलसीदासजी कहैत छथि जे उत्तम सेवकगण धान छथि और ‘राम’ नाम केर दुइ सुन्दर अक्षर सावन-भादव केर महीना थिक।

११. दुनू अक्षर मधुर और मनोहर अछि, जे वर्णमाला रूपी शरीर केर नेत्र थिक, भक्त लोकनिक जीवन थिक तथा स्मरण करय मे सभक लेल सुलभ और सुख दयवला अछि और जे एहि लोक मे लाभ और परलोक मे निर्वाह करैत अछि – यानि भगवानक दिव्य धाम मे दिव्य देह सँ सदा भगवत्सेवा मे नियुक्त रखैत अछि, जे कहय, सुनय और स्मरण करय मे बहुते सुन्दर और मधुर अछि,

१२. तुलसीदास केँ त श्री राम-लक्ष्मणक समान प्रिय अछि। एहि नाम ‘राम’ (‘र’ और ‘म’ केर) अलग-अलग वर्णन करय मे प्रेम उमड़ि रहल अछि, यानी बीज मंत्र केर दृष्टि सँ एकर उच्चारण, अर्थ और फल मे भिन्नता देखाय दैत अछि लेकिन ई जीव और ब्रह्म केर समान स्वभाव सँ मात्र साथ रहयवला सदा एकरूप और एकरस ई दुनू अक्षर नर-नारायण केर समान सुन्दर भाइ थिक।

१३. ई जगत केर पालन और विशेष रूप सँ भक्त लोकनिक रक्षा करयवला अछि।

१४. ई भक्तिरूपिणी सुन्दर स्त्रीक कानक सुन्दर आभूषण (कर्णफूल) थिक और जगत केर हित लेल निर्मल चन्द्रमा और सूर्य थिक।

१५. ई सुन्दर गति (मोक्ष) रूपी अमृतक स्वाद और तृप्तिक समान थिक।

१६. कच्छप और शेषजीक समान पृथ्वी केँ धारण करयवला थिक।

१७. भक्त लोकनिक मनरूपी सुन्दर कमल मे विहार करयवला भौंराक समान थिक आर

१८. जीभरूपी यशोदाजीक लेल श्री कृष्ण और बलरामजी के समान आनंद दयवला अछि।

१९. श्री रघुनाथजी केर नाम के दुनू अक्षर बहुते शोभैत अछि जाहि मे सँ एक (रकार) छत्ररूप (रेफ र्) सँ और दोसर (मकार) मुकुटमणि (अनुस्वार) रूप सँ सब अक्षर केर उपर रहल करैत अछि।

२०. बुझय लेल नाम और नामी दुनू एक्के जेकाँ लागैत छैक मुदा दुनू मे परस्पर स्वामी आ सेवक जेकाँ प्रीति होइत छैक। अर्थात्‌ नाम और नामी मे पूर्ण एकता भेलो पर जेना स्वामीक पाछू सेवक चलैत अछि ठीक तहिना नाम के पाछाँ नामी चलल करैत अछि। प्रभु श्री रामजी सेहो अपन ‘राम’ नामहि केर अनुगमन करैत छथि, नाम लैत देरी ओ ओहि ठाम पहुँचि गेल करैत छथि।

२१. नाम और रूप दुनू ईश्वरक उपाधि थिक। ई भगवानक नाम आ रूप दुनू अनिर्वचनीय अछि, अनादि अछि और सुन्दर शुद्ध भक्तियुक्त बुद्धि टा सँ मात्र एकर दिव्य अविनाशी स्वरूप केर ज्ञान होइत छैक।

२२. एहि नाम और रूप मे के पैघ आ के छोट अछि से कहब अपराध होयत। एकर गुणक तारतम्य सब केँ कम या बेसी सुनिकय साधु पुरुष लोकनि अपनहि बुझि गेल रैत थि।

२३. रूप नामक अधीन देखल जाइत अछि। नाम के बिना रूप के ज्ञान नहि भ’ सकैत अछि। जेना कोनो विशेष रूप, बिना ओकर नाम जनने हथेली पर रखलो सँ नहि चिन्हल जा सकैत अछि। ओतहि रूप केँ बिना देखनहियो नाम केर स्मरण मात्र कयला सँ विशेष प्रेम केर संग ओकर रूप हृदय मे स्वतः आबि गेल करैत छैक।

२४. नाम आ रूपक गति केर विशेषताक कथा अकथनीय अछि। ओ बुझय मे सुखदायक होइछ लेकिन ओकर वर्णन नहि कयल जा सकैत अछि।

२५. निर्गुण और सगुण केर बीच मे नाम सुंदर साक्षी थिक और दुनूक यथार्थ ज्ञान कराबयवला चतुर दुभाषिया थिक।

२६. यदि अहाँ भीतर और बाहर दुनू दिश उजाला चाहैत छी तँ मुखरूपी द्वार केर जीभ रूपी देहरि पर रामनाम रूपी मणि-दीपक केँ राखू।

२७. ब्रह्माजीक बनायल एहि प्रपंच (दृश्य जगत) सँ नीक जेकाँ छूटल वैराग्यवान् मुक्त योगी पुरुष एहि नाम केँ मात्र जिह्वा सँ जपैत तत्वज्ञान रूपी दिन मे जागैत छथि और नाम तथा रूप सँ रहित अनुपम, अनिर्वचनीय, अनामय ब्रह्मसुख केर अनुभव करैत छथि।

२८. जे परमात्माक गूढ़ रहस्य केँ यानि यथार्थ महिमा केँ जानय चाहैत अछि, ओ (जिज्ञासु) सेहो नामहि केँ जिह्वा सँ जपिकय से जानि लैत अछि। लौकिक सिद्धि केँ चाहनिहार अर्थार्थी साधक दीप जराकय नामक जप करैत अछि आ अणिमादि (आठो) सिद्धि केँ पाबिकय सिद्ध भ’ गेल करैत अछि। संकट सँ घबरायल आर्त भक्त नाम जप करैत अछि त’ ओकरा बड़का-बड़का संकट सँ स्वतः मुक्ति भेट गेल करैत छैक आ ओ सुखी भ’ जाइत अछि।

२९. जगत मे चारि प्रकार केरः १ – अर्थार्थी – धनादि केर चाहत राखिकय नाम भजनिहार, २ – आर्त संकट केर निवृत्तिक लेल नाम भजनिहार, ३ – जिज्ञासु – भगवान केँ जनबाक इच्छा सँ नाम भजनिहार, ४ – ज्ञानी – भगवान केँ तत्व सँ जानिकय स्वाभाविकहि प्रेम सँ नाम भजनिहार – ई चारि तरहक रामभक्त होइत अछि आर चारू पुण्यात्मा, पापरहित आ उदार मानल जाइत अछि।

३०. चारू तरहक लोक (चतुर भक्त) केँ नाम टा के आधार होइत छैक। एहि मे ज्ञानी भक्त प्रभु लेल विशेष रूप सँ प्रिय होइत छथि।

३१. ओना त चारू युग मे और चारू वेद मे नामक प्रभाव छैक, मुदा कलियुग मे विशेष रूप सँ एकर प्रभाव छैक। एहि मे त नाम केँ छोड़िकय दोसर कोनो उपाइये नहि छैक।

३२. जे सब प्रकारक भोग और मोक्ष पर्यन्तक कामना सँ रहित और श्री रामभक्ति केर रस मे लीन अछि, ओकरा सेहो नाम केर सुन्दर प्रेम रूपी अमृतक सरोवर मे अपन मोन केँ माछ जेकाँ बनाकय रखैत अछि, यानि ओ नाम रूपी सुधा केर निरंतर आस्वादन करैत रहैत अछि, क्षणहु भरि लेल ओहि सँ अलग नहि होबय चाहैत अछि।

३३. निर्गुण और सगुण – ब्रह्म केर दुइ स्वरूप छैक। ई दुनू अकथनीय, अथाह, अनादि और अनुपम अछि। हमरा बुझने नाम एहि दुनू सँ पैघ अछि, जे अपन बल सँ एहि दुनू केँ अपना वश मे कएने अछि।

३४. सज्जन व्यक्ति एहि बात केँ हमरा सन दास केर धृष्टता या कल्पना नहि बुझथि, हम अपन मनक विश्वास, प्रेम और रूचि केर बात कहैत छी। निर्गुण ब्रह्म केर ज्ञान ओहि अप्रकट अग्निक समान अछि जे लकड़ीक अंदर छैक मुदा देखाय नहि पड़ैत छैक आ सगुण ब्रह्म ओहि प्रकट अग्नि केर समान अछि जे प्रत्यक्षे देखाय पड़ैत छैक।

३५. निर्गुण और सगुण ब्रह्म दुनू जनबा मे सुगम नहि छैक लेकिन नाम जप सँ दुनू केँ आसानी सँ जानल जा सकैत अछि। ताहि कारण हम राम नाम केँ निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म ‘राम’ सँ पैघ कहल अछि। जखन कि ब्रह्म एक्के टा छथि जे कि व्यापक, अविनाशी, सत्य, चेतन और आनंद केर खान छथि।

३६. एहेन विकाररहित प्रभु केर हृदय मे रहितो जग भरिक समस्त जीव दीन और दुःखी अछि। नाम केर निरूपण कय केँ – नाम केर यथार्थ स्वरूप, महिमा, रहस्य और प्रभाव केँ जानिकय नामक जतन कयला सँ – श्रद्धापूर्वक नाम जप रूपी साधन अपनेला सँ वैह ब्रह्म एना प्रकट भ’ जाइत छथि जेना रत्न केँ चिन्हला सँ ओकर मूल्य।
३७. एहि प्रकारे निर्गुण सँ नाम केर प्रभाव अत्यन्त पैघ अछि। नाम (सगुण) रामहु सँ पैघ अछि।
३८. श्री रामचन्द्रजी भक्त सभक हित के वास्ते मनुष्य शरीर धारण कय केँ स्वयं कष्ट सहियोकय साधु लोकनि केँ सुखी कयलनि, मुदा भक्तगण प्रेम सहित नाम केर जप करिते सहजहि आनन्द और कल्याण केर घर भ’ जाइत छथि।
३९. श्री रामजी त एक तपस्वी केर स्त्री (अहिल्या) मात्र केँ तारलनि, मुदा हुनक नाम त करोड़ों दुष्ट केर बिगड़ल बुद्धि केँ सुधारि देलक।
४०. श्री रामजी द्वारा ऋषि विश्वामिश्र केर हित वास्ते एक सुकेतु यक्ष केर कन्या ताड़का केर सेना और पुत्र (सुबाहु) सहित समाप्त कयलनि, मुदा नाम अपन भक्त सभक दोष, दुःख और दुराशा सब केँ एना नाश कय दैत अछि जेना सूर्य राति केँ नाश करैछ।
४१. श्री रामजी त स्वयं शिवजी केर धनुष केँ तोड़लनि, मुदा नामहि केर प्रताप संसारक सब भय केर नाश करयवला भेल।
४२. प्रभु श्री रामजी भयानक दण्डक वन केँ सुहाओन बनेलनि, मुदा नाम द्वारा असंख्य मनुष्य लोकनिक मन केँ पवित्र कय देल गेल अछि।
४३. श्री रघुनाथजी द्वारा राक्षस सभक समूह केँ मारल गेल, लेकिन नाम त कलियुगक सारा पाप केर जड़ि उखाड़यवला अछि। 
४४. श्री रघुनाथजी त शबरी, जटायु आदि उत्तम सेवक टा केँ मुक्ति देलनि, मुदा नाम अगनित दुष्ट केर उद्धार कय देलक। नाम केर गुण केर कथा वेद मे प्रसिद्ध अछि।
४५. श्री रामजी सुग्रीव और विभीषण दुनू केँ अपना शरण मे रखलनि, से सब कियो जनैत अछि, लेकिन नाम अनेकों गरीब पर कृपा कयलक। नाम केर ई सुन्दर माहात्म्य लोक और वेद मे विशेष रूप सँ प्रकाशित अछि।
४६. श्री रामजी त भालू आ बानर केर सेना बटोरलनि आ तखन समुद्र पर पुल बनेबाक लेल कोनो खास परिश्रमहु नहि कयलनि, मुदा नाम लैत देरी संसार समुद्र सुखा जाइत अछि। आब सज्जनगण स्वयं मोन मे विचार करथि जे राम आ हुनक नाम मे कोन पैघ अछि।
४७. श्री रामचन्द्रजी कुटुम्ब सहित रावण केँ युद्ध मे मारलथि, तखन सीता सहित ओ अपन नगर (अयोध्या) मे प्रवेश कयलथि। राम राजा भेलाह, अवध हुनकर राजधानी बनल, देवता और मुनि सुंदर वाणी सँ जिनकर गुण गबैत छथि, लेकिन सेवक (भक्त) प्रेमपूर्वक नाम केर स्मरण मात्र सँ बिना परिश्रम के मोह केर प्रबल सेना केँ जीतिकय प्रेम मे मग्न भऽ अलगे सुख मे विचरण करैत छथि, नाम केर प्रसाद सँ हुनका लोकनि केँ सपनहु मे कोनो चिन्ता नहि सतबैत छन्हि।
४८. एहि तरहें, नाम निर्गुण ब्रह्म तथा सगुण राम, दुनू सँ पैघ अछि। ई वरदान दयवला केँ सेहो वर दयवला अछि। श्री शिवजी अपन हृदय मे यैह बुझिकय सौ करोड़ राम चरित्र मे सँ ई ‘राम’ नाम केँ साररूप मे चुनिकय ग्रहण कयलनि अछि। 
 
४९. नामहि केर प्रसाद सँ शिवजी अविनाशी छथि और अमंगल वेषवला होइतो ओ मंगल केर राशि छथि।
५०. शुकदेवजी और सनकादि सिद्ध, मुनि, योगी गण नामहि केर प्रसाद सँ ब्रह्मानन्द केँ भोगैत छथि।
५१. नारदजी नामहि केर प्रताप केँ जनलनि। हरि सारा संसार केँ प्रिय छथि, हरि केँ हर प्रिय छथिन, अहाँ श्री नारदजी हरि और हर दुनूक प्रिय छी।
५२. नामे जपला सँ प्रभु कृपा कयलनि आ प्रह्लाद भक्त शिरोमणि बनि गेलाह।
५३. ध्रुवजी ग्लानि सँ विमाताक वचन सुनि दुःखी भ’ कय सकाम भाव सँ हरि नाम केँ जपलनि आर ओकर प्रताब सँ अचल अनुपम स्थान ‘ध्रुवलोक’ प्राप्त कयलनि।
५४. हनुमान्‌जी पवित्र नामहि केर स्मरण कय केँ श्री रामजी केँ अपन वश मे कय रखने छथि। 
५५. नीच अजामिल, गज और गणिका (वेश्या) सेहो श्री हरि केर नामक प्रभाव सँ मुक्त भऽ गेलाह। हम (तुलसीदास) नामक बड़ाई कतय धरि कहू! राम स्वयं नाम केर गुण केँ नहि गाबि सकैत छथि। 
५६. कलियुग मे राम केर नाम कल्पतरु यानी मनचाहा पदार्थ दयवला आर कल्याण केर निवास यानी मुक्ति केर घर थिक, जेकरा स्मरण कयला सँ भाँग सन निकृष्ट तुलसीदास तुलसी केर समान पवित्र भ’ गेलाह। 
५७. केवल कलियुगहि केर बात नहि छैक, चारू युग मे, तीनू काल मे और तीनू लोक मे नाम केँ जपिकय जीव शोकरहित भेल अछि। वेद, पुराण और संत लोकनिक यैह मत छन्हि जे समस्त पुण्य केर फल श्री रामजी मे या राम नाम मे प्रेम भेनाय होइत छैक।
५८. पहिने सत्ययुग मे ध्यान सँ, दोसर त्रेतायुग मे यज्ञ सँ और द्वापर मे पूजन सँ भगवान प्रसन्न होइत छथि, लेकिन कलियुग केवल पापक जैड़ आ मलिन अछि ताहि मे मनुष्य केर मन पापरूपी समुद्र मे माछ बनल रहैत अछि – मतलब जे पाप सँ कखनहुँ अलग होबय नहि चाहैत अछि, ताहि सँ ध्यान, यज्ञ और पूजन नहि भऽ सकैत छैक आ तेँ एहेन कराल कलियुग केर काल मे नाम टा कल्पवृक्ष थिक, जे स्मरण करिते संसार केर सब जंजाल केर नाश करयवला भऽ जाइत अछि। कलियुग मे ई राम नाम मनोवांछित फल दयवला अछि। परलोक केर परम हितैषी और एहि लोक केर माता-पिता थिक। परलोक मे भगवान केर परमधाम दैत अछि आर एहि लोक मे माता-पिता समान सब प्रकार सँ पालन और रक्षण करैत अछि। कलियुग मे नहि कर्म अछि, न भक्ति अछि आर नहिये ज्ञान अछि, राम नाम मात्र एक आधार अछि। कपट केर खान कलियुग रूपी कालनेमि केँ मारबाक लेल राम नाम टा बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमान्‌जी बनैछ।
५९. राम नाम श्री नृसिंह भगवान छथि, कलियुग हिरण्यकशिपु थिक और जप करनिहार लोक प्रह्लाद केर समान अछि, यैह राम नाम देवता सभक शत्रु कलियुग रूपी दैत्य केँ मारिकय जप करयवला लोक केर रक्षा करत। नीक भाव (प्रेम) सँ, खराब भाव (बैर) सँ, क्रोध सँ या आलस्य सँ, कोनो तरहें सँ नाम जपला सँ दसो दिशा मे कल्याण होइत छैक।
६०. ओहि परम कल्याणकारी राम नाम केर स्मरण कय केँ और श्री रघुनाथजी केँ मस्तक नमाकय हम रामजीक गुण सभक वर्णन करैत छी।