विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
स्वर्णलता दीदीक समाद
आइ मैसेन्जर चेक करबाक क्रम मे भोरे-भोर जे सन्देश देखलहुँ ताहि पर केन्द्रित छी। स्वर्णलता दीदी लिखली अछि, “आइ लव-अरेंज विवाह बहुत भय रहल अछि अहि के परिप्रेक्ष्य में किछु विचार दियौ और झुठे लोक दहेज के रोना क रहल छैथ ई कोना अहि लोक और परलोक लेल गलत अछि कृपा क विवेचना समय समय पर करू।”
सही बात छैक जे लव मैरिज के मात्रा बढि रहल छैक, कारणः
१. विवाह करबाक न्यूनतम उम्र सीमा मे बदलाव – पहिने जेना रजस्वला धर्मक प्राप्ति उपरान्त कोनो कन्याक विवाहक उमेर शुरू भ’ गेल से सोच रखनिहार अथवा १३ वर्ष सँ १८ वर्ष या फेर अधिकतम २० सँ २२ वर्ष धरिक अवस्था मे विवाह (कन्यादान) करबाक एकटा पूर्वक स्थिति जे होइत छल ताहि मे परिवर्तन अबैत आब न्यूनतम २० सँ ३० वर्ष धरिक उम्र सीमा मे लोक कन्यादान करबाक सोच रखैत अछि। आर तहिना वरक उमेर २५ सँ ३५ वर्ष एखन चलि रहल अछि। कारण उचित शिक्षा आ स्वाबलम्बनक सिद्धान्त सँ आजुक लोक नैतिक बंधन मे पड़ल अछि, जे एहि सँ इतर अछि ओकरा ओतय आइयो विवाहक उमेर पूर्वहि जेकाँ छैक। यैह मैच्योर्ड एज के कारण कन्या या वर अपन मर्जी (विचार) सेहो अपनहि विवाह मे अभिभावक संग साझा करैत छथि, आर एहि तरहें लव या अरेन्ज मैरिज होइत देखल जा रहल अछि।
२. वर्तमान समय मे सामाजिक अथवा पारिवारिक अंकुश (स्वच्छन्द विचरण पर नियंत्रण) पहिने सँ बहुत घटि गेलैक अछि, तेकर बहुत रास कारण सब छैक… उच्च शिक्षा दिश बेटा-बेटी केँ अग्रसर करब, घर-परिवार सँ दूर स्वतंत्र जिनगी जियब, फिल्म आ पोर्न सामग्री सब सँ रुबरू होयब… आदि। पहिने जेना १८-२० वर्ष धरिक युवा मे परिपक्वता के कमी रहैत छलैक से एखन स्थिति दोसर छैक। आर त आर, लोक अपन जीवनक महत्वपूर्ण निर्णय लेल जे अभिभावक पर निर्भर करैत छल ताहि मे सेहो बड पैघ कमी एलैक एना हमरा लागि रहल अछि… तखन त स्वतंत्र निर्णय मे लव मैरिज स्वाभाविके बढ़बे करतैक, भले एकर दुष्परिणाम बाद मे जे झेलय पड़य, लेकिन लव मैरिज करय मे सच्चे बहुतो व्यक्ति आ परिवार आगू बढि रहल अछि।
३. ‘झूठे लोक दहेजक रोना रो रहल छथि’ - एहि पंक्ति मे झूठे शब्द ओहिना नहि एलय। दहेज कुप्रथा बनिकय जखन कोखिये मे बेटीक भ्रूण केँ हत्या कय देबाक परिपाटी चलि पड़लैक त फेर ई झूठ केना भ’ सकैत छैक? पहिने लोक के दर्जन-दर्जन भरि सन्तान होइक आ लोक शान सँ जीवन जियैत छल, आब? आब त सन्तानोत्पत्ति मे सेहो सन्तानक संख्या सीमित करबाक अवस्था आबि गेलय आ ताहि मे अर्थ व्यवस्थापन सँ जीवन व्यवस्थापनक बात केँ कियो नकारि नहि सकैत छी। पहिने लोक अभाव मे सेहो माँड़-भात खा कय जीवन जी लैत छल, आब ई सब सम्भव नहि छैक। दहेज के लोभ लोक-समाज मे हावी भेलैक आ तेकर असर सँ हमरा लोकनि त्राहि-त्राहि कय रहल छी। एहि लेल त हल्ला हेबाके चाही। लोभी आ दुष्ट लोक द्वारा एहि प्रथा केँ कूप्रथा बना देल गेल, अन्यथा स्वेच्छा सँ अपन सामर्थ्य मुताबिक दुइ परिवार विवाह जेहेन सौहार्द्रता केँ बढावा दैत छल, दैत अछि, दैत रहत, एहि मे दहेजक सवाल कतहु उठिते नहि छैक।
४. जे धन स्वेच्छानुसार अपन सामर्थ्य मुताबिक वर एवं कन्याक विवाह पर दुनू पक्ष खर्च करैत छथि, भले ओहि मे करोड़ों के दहेज लेन-देन कयलनि, से वास्तव मे दहेज नहि कहाइत अछि आ समाजक आन लोक केँ ई अधिकार नहि छैक जे ओकरा दहेज कहिकय हिकारत भरल दृष्टि सँ देखय अथवा ओकरा अपना लेल सेहो बाध्यकारी व्यवहार रूप मे लियए। ई स्पष्ट बुझबाक चाही जे विवाह सदिखन दुइ परिवार के योग्य वर व योग्य कन्या बीच भेलैक, हुनका सब केँ अपना मे जतेक जुड़लनि ताहि अनुसारे सब किछु कयलनि, लेलखिन-देलखिन। मुदा, जखन यैह विवाह करयवला परिवार प्रदर्शनकारी रवैया मे ई लेन-देन कयलक त फेर ई पापपूर्ण दहेज के श्रेणी मे आबि गेलैक। एतय सँ वैह लेल-देल वस्तु अनिष्टकारी आ समाज केँ सेहो गलत रास्ता पर चलबयवला बनि गेल। ई गलत प्रारब्ध उत्पन्न करत। एकर अनिष्टकारी परिणाम भोगहे टा पड़त, कर्त्तापुरुष केँ आ जे एहि सँ प्रभावित भ’ अपनो बेटा-बेटीक विवाह मे एहि तरहक देखबयवला प्रवृत्ति मे दहेजक लेन-देन करैत छथि हुनका सब केँ एकर खराब फल भोगहे टा पड़तनि, से अहु लोक मे आ परलोको मे।
५. अपन मिथिला मे बेटाक विवाह मे मांगिकय दहेज लेनाय माने बेटा केँ बेचनाय कहल जाइत छैक। कीनयवला त बाजार मे कतेको मालदार पार्टी अछिये। जँ कीनयवला नहि रहैत त बेटबेचुवा सब बेटा केँ कतय बेचितथि? लेकिन से त छैक नहि… एतय त बेटी केँ उच्चशिक्षा आ स्वाबलम्बन सँ वंचित कइयो केँ लोक दहेज मोट गानत आ सरकारी दूल्हा सँ लैत प्राइवेट मे लाखों टका के पैकेज कमेनिहार दूल्हा करबाक लेल मोटगर-डटगर माल खर्चा कय केँ अपन बेटी लेल बेमिशाल दूल्हा आनय लेल बेहाल अछि। बाजार मे जखनहि कीनयवला लोक तैयार त बिकायवला त आर बेसी लोभी… ओ त आर बिकाय लेल तैयार हेब्बे करत। यैह कीनब आ बेचब वला दुर्गुण के कारण दहेज प्रथा एहि तरहें हावी भ’ गेल समाज मे। जखन कि बेटाक बेचनिहार जँ ओहि बेटा सँ मुखाग्नि लैत छथि त हुनका पैठ नहि भेटतनि, ओ नर्कक भोग करता, से शास्त्र आ लोकविधान मे प्रचलित बात अछि। मुदा छोड़ू… के देखैत छैक मरबाक बाद कि होयत… एखन ई पाप करय लेल लाखों लोक उद्यत रहैत अछि। हम त कहब जे नीक सँ देखू एहि बेटबेचुवा परिवार केँ या बेटकीनुवा परिवार केँ… एकोटा प्रखर सन्तान तक पैदा नहि कय सकैत अछि एहेन दम्पत्ति। आब बताउ? एहि लोक मे सेहो ओकरा कि फायदा भेलैक? परलोक मे सेहो नुक्सान, एहि लोक मे सेहो नुक्सान। हमर विवेचना यैह कहैत अछि। बाकी, जेकर जे मर्जी से करय, सैह करैत अछि। हमर सभक काज छी स्वयं केँ पाप सँ बचाकय मोक्षगामी बनेबाक, से बनय जाय। दैट्स अल!!
हरिः हरः!!