ओ प्रदूषण जे शहर सँ गाम धरि पहुँचि गेल

ओ प्रदूषण जे शहर सँ गाम तक पहुँचि गेल
 
हिन्दी मे एकटा कहावत बड़ा लोकप्रिय – घर की मुर्गी दाल बराबर… मिथिलावासी लेल अपनहि भाषा तुच्छ-नीच होइत छन्हि तेँ ई कहावत केँ ई सब बाकायदा अपन जीवन मे अपना लेने छथि। हमरो ई कहावत के बदला ‘बारीक पटुआ तीत’ प्रयोग करबाक चाहैत छल, लेकिन आब बाध्य छी जे मैथिली भाषा केँ स्वयं मैथिलीभाषी जखन दुत्कारि रहल छथि तखन फेर ई मैथिली लोक मुहावरा (लोक कहिनी) केर अर्थ कियो बुझबो करता कि नहि… ताहि सँ नीक जे हिन्दिये मुहावरा कहैत किछु जरूरी सन्देश देबाक चेष्टा कयल जाय।
 
१. मैथिली भाषाक संचारकर्म बहुत कमजोर अवस्था मे अछि। जखन कि इतिहास विगत १९०५ ई. सँ आइ २०२२ ई. धरि कुल ११७ वर्षक गना गेल, मुदा एकर पहुँच आइ धरि १% पाठक धरि गेल अथवा नहि ताहि सँ हम अनभिज्ञ छी, जँ किनको बुझल हो आ कोनो सन्दर्भ सहितक जानकारी दय सकी त आभारी होयब।
 
२. मैथिली भाषा लेल जे कियो काज करैत रहला अछि ताहि मे बेसी ठाम ‘स्वान्तःसुखाय’ वाली बात अछि, एहि काज केँ लोकक काज, जन-जन के काज आ सभक काज बनेबाक स्थिति अनेकों कारण सँ नहि भ’ सकल अछि। एकर कि कारण छैक ताहि पर सेहो हम आब एहि जीवन मे त नहिये टा शोध कय सकब… लेकिन संछेप मे लोकक नक्कारापन आ अपन निजत्व सँ गौरवबोध मे कमी, दोसर भाषाक गुलाम बनि जेबाक आ फदर-फदर दोसरे भाषा मे गलत-सलत बाजि काज चला लेबाक महान दुर्गुण त एकटा कारण छीहे…. भ’ सकैत छैक जे सामन्ती युग सँ लोकतांत्रिक युग मे प्रवेश के समय जाहि गति सँ मैथिली भाषाक संग निजत्व आ गौरवबोध जोड़बाक काज करबाक छल से अभावग्रस्त आ आत्मकेन्द्रित मैथिलीभाषी एलिट्स (प्रबुद्धवर्ग) अथवा अगुआवर्ग द्वारा नहि कयल जा सकल, सहर्ष हिन्दी केँ अपनाकय महाभूल कय बैसलथि, जेकर दुष्परिणाम सोझाँ अछि। आब पुनः अपन मातृभाषा आ मूल साहित्य संग लोक मे ललक पैदा करबाक लेल कोन स्तर पर काज कयल जाय से हमर समझ सँ कनेक परे बुझा रहल अछि, तथापि अपना भरि प्रयास त करबाके टा चाही, कइये रहल छी, किछु हद तक सफलता भेटियो रहल अछि, मुदा उल्लेख्य सफलता लेल राज्य के सहयोग बिना ई काज असम्भव बुझना जा रहल अछि आ राज्य सेहो सहयोग करबाक मूड मे बिल्कुल नहि अछि, नहिये अपन धरतीपुत्र मध्य कियो तेहेन झुनझुन्ना पहिरल टनटन बेटा (नेता) देखि रहल छी जे राज्य द्वारा कयल जा रहल विभेद केँ समाप्त कय अपन निजताक मूल्य व मान्यता केँ स्थापित करत।
 
३. एतेक दिन होइत छल जे गाम मे मौलिकताक रक्षा भ’ जायत… लेकिन अफसोस, एतय सेहो आब नवकनियां लोकनि घरवला संग हिन्दी मे फदकैत घर-अंगना-दलान-दरूक्खा सबटा केँ हिन्दियायल गन्ध सँ दुर्गन्धित कएने रहैत छथि। धियापुता संग हिन्दी मे, घरवला संग हिन्दी मे, ननैद-दियादनी संग हिन्दी मे, आसपड़ोस मे हिन्दी मे… आहि रौ बा! तखन फेर गाम सेहो पराया होयबाक परिस्थिति मे ई मधुरभाषा मैथिलीक रक्षा केना होयत?
 
४. चाल-ढाल सबटा बदलि गेल। डीजे के कनफोड़ू आवाज मे लोक लाज-शर्म उठाकय पीबि गेल आ माय-बेटा संगे फूहड़ गीत पर नचैत ओ सब सँ बेसी प्रचलित गारि केँ परिलक्षित करैत बुझा रहल अछि। आब बताउ? बेशरम-बेहाया जेकाँ नंगापन आ फूहड़ शब्दक गीत पर सब नाचि रहल छी, अपन संस्कार आ सम्बन्धक लाज केँ ताख पर छोड़ि स्वयं सरेआम आम समाज के बीच अलमस्त अन्दाज मे अपन खुशीक इजहार करैत दोसर केँ आँखि देखबैत छियैक… कहैत छियैक जे हमरा जेना मोन होयत हम तेना जियब… तखन त ई ओहिना बात नहि भ’ गेलय जेना हिरण्याक्ष सौंसे धरती मे मल-मूत्र-गन्दगी फेकबा देलकय जाहि सँ देवताक आगमन नहि हेतय आ ओ गन्दगी व अन्हरिया (आसुरिक) राज कायम राखत? आब फेर कोनो वराह अवतार लेता आ एहि गन्दगी केँ साफ कय केँ धर्मक राज कायम रखता ई दिन देखब हमरा लेल त दुर्लभे बुझाइत अछि।
 
५. घरवला केँ घरवालीक साड़ी-चोली वला ड्रेस आ आँचर प्रथा, घोघ सब त कहिया न गेल तेलहन्डी के कड़कैत तेल मे! आब त जीन्स पहिरू डार्लिंग टप लगाउ यय, मुम्बई हिरोईन अहूँ बनि जाउ यय! कनी दिन बाद बिकिनी-ब्रा पहिराकय लोक घरवाली केँ नहि प्रदर्शनक वस्तु बना देलक त जे कहू! ई नहि कहि रहल छी जे अपनहि टा पारम्परिक पहिरन मे सब रहू, मुदा काजो-प्रयोजन आ एकत्रित-एकजुट होयबाक अवसरहु पर त अपन संस्कृतिक संरक्षणार्थ आगू आबय जाउ। मोलहा मुम्बई मे घरवाली केँ लय गेल आ ओतय सँ गोआ गेल त बिच पर दुनू प्राणी ओहिना छोट-छोट वस्त्र धारण कय खूब घूमल आ फेसबुक लाइव सेहो कयलक। किछु गौआँ देखियो लेलक। मोलहाक भाइ तेलिया त वीडियो सेहो डाउनलोड कय केँ भौजी गाम एती त खूब चुस्की लेब से नियारि लेलक। तैयो ई बात कोहुना बुझू जे गोआ, मुम्बई, मोलहा आ तेलिया के अलावे कियो बुझलक, कियो नहि बुझलक! मुदा गदाधर बाबू के बेटा शिरोमणि त अपन कनियाँ केँ गामहि मे गोआ देखेबाक बात कहि धोबिया पोखरिक महार केँ गोआ बिच बनाकय ब्रा-बिकिनी मे घुमेनाय शुरू कय के एकटा नवके रेकर्ड न बना देलखिन! कहू त?
 
एहि तरहें प्रदूषण केँ हम सब केना रोकि सकब? सवाल ई छैक। चिन्तन एहि पर होयब बड जरूरी अछि।
 
हरिः हरः!!