स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
८. वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदिक वंदना
अध्याय ७म केँ निरन्तरता दैत महाकवि तुलसीदासजी ‘रामायण’ रूपी अद्भुत-उपयोगी ज्ञान आ सम्मत लेल सम्बन्धित विभिन्न स्रष्टा आ सृजनकर्मी लोकनि केँ विशेष प्रणाम करैत किछु विशेष सन्देश दय रहला अछि। जेना रामायण मे खरदुषण रहितो ई खर आ दुषण केर स्वभाव सँ इतर हम मानव लेल कोना ग्राह्य आ अनुकरणीय अछि से सब मोती एहि अध्याय सँ भेटत।
१. हम ओहि वाल्मीकि मुनिक चरण कमल केर वंदना करैत छी जे रामायणक रचना कयलनि अछि, जे खर (राक्षस) सहित रहितो (खर माने कठोरता सँ विपरीत) बड़ा कोमल और सुंदर अछि तथा जे दूषण (राक्षस) सहित रहितो दूषण अर्थात् दोष सँ रहित अछि।
२. हम चरू वेद केर वन्दना करैत छी जे संसार समुद्र केँ पार होयबाक लेल जहाज समान अछि तथा जे श्री रघुनाथजीक निर्मल यश केर वर्णन करैत स्वप्न मे सेहो खेद (थकावट) नहि होबय दैत अछि।
३. हम ब्रह्माजीक चरण रज केर वन्दना करैत छी जे भवसागर बनेलनि अछि, जतय सँ एक दिश संतरूपी अमृत, चन्द्रमा और कामधेनु निकलैत अछि और दोसर दिश दुष्ट मनुष्यरूपी विष और मदिरा उत्पन्न होइत अछि।
४. देवता, ब्राह्मण, पंडित, ग्रह – एहि सभक चरणक वंदना कय केँ हाथ जोड़िकय कहैत छी जे अहाँ प्रसन्न भ’ कय हमर सम्पूर्ण सुन्दर मनोरथ केँ पूरा करू।
५. पुनः हम सरस्वती और देवनदी गंगाजी केर वंदना करैत छी। दुनू पवित्र और मनोहर चरित्र वाली छथि। एक (गंगाजी) स्नान करय आ जल पीबय सँ पाप सभक हरण करैत छथि आर दोसर (सरस्वतीजी) गुण और यश कहय व सुनय सँ अज्ञान केर नाश कय दैत छथि।
६. श्री महेश और पार्वती केँ हम प्रणाम करैत छी जे हमर गुरु और माता-पिता छथि, जे दीनबन्धु और नित्य दान करयवला छथि, जे सीतापति श्री रामचन्द्रजी केर सेवक, स्वामी और सखा छथि तथा हमर सब तरहें कपटरहित (सच्चा) हित करनिहार छथि।
७. जे शिव-पार्वती कलियुग केँ देखिकय जग के हित लेल शाबर मन्त्र समूह केर रचना कयलनि, जाहि मंत्र केर अक्षर बेमेल अछि, जेकर न कोनो ठीक अर्थ होइत छैक आर नहिये जप होइत छैक, तैयो श्री शिवजीक प्रताप सँ जेकर प्रभाव प्रत्यक्ष छैक से उमापति शिवजी हमरा पर प्रसन्न भ’ कय (श्री रामजी केर) एहि कथा केँ आनन्द और मंगल केर मूल (उत्पन्न करयवला) बनओता।
८. एहि तरहें पार्वतीजी और शिवजी दुनू गोटे केँ स्मरण कय केँ आर हुनकहि प्रसाद पाबिकय हम एकदम उत्साहित चित्त सँ श्री रामचरित्र केर वर्णन करैत छी।
९. हमर कविता श्री शिवजीक कृपा सँ एना सुशोभित होयत जेना तारागण सहित चन्द्रमाक संग राति सुशोभित होइत अछि।
१०. जे एहि कथा केँ प्रेम सहित एवं सावधानीक संग समझि-बुझिकय कहत-सुनत, ओ कलियुग केर पाप सँ रहित और सुंदर कल्याण केर भागी बनिकय श्री रामचन्द्रजीक चरणक प्रेमी बनि जायत।
११. यदि हमरापर श्री शिवजी और पार्वतीजी केर स्वप्नहु मे सचमुच प्रसन्नता होइन्ह त हम एहि भाषा कविताक जे प्रभाव कहलहुँ अछि ओ सब सही हुए।
हरिः हरः!!