रामचरितमानस मोतीः कवि वंदना

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

७. कवि वंदना

 

तुलसीकृत रामचरितमानस सँ मोती चुनबाक क्रम मे आइ सातम पायदान पर आबि गेल छी। देवता लोकनि केँ प्रणाम करबाक प्रथम पायदान केर गिनती हम एहि मे नहि समेटलहुँ कारण ओ परम अनिवार्य रहितो केवल आस्थावान् लेल होइत अछि। जेना तुलसीदासजी सरस्वती, गणेशजी आ स्वयं भगवान् श्री रामचन्द्रजी आ शंकरजी केँ प्रणाम करैत कार्यारम्भ लेल आशीर्वाद प्राप्तिक इच्छा रखलनि, ताहि लेल सब कर्त्तापुरुष केर स्वविवेक पर छोड़ि देलहुँ हम। लेकिन तदोपरान्त गुरु सँ आरम्भ करैत ब्राह्मण-संत, संत-असंत, दुष्ट, रामरूपी समस्त चराचर जीव, आदिक वन्दना करैत तुलसीदासजी अपन दीनता भाव केँ प्रकट करैत रामचरित गायनक कविताक महिमा अन्तर्गत जे सब महत्वपूर्ण बात कहलनि अछि ताहि पर मनन करैत आब हम सब ‘कवि वन्दना’ केर अध्याय मे पहुँचि गेलहुँ अछि। कवि केर महत्व आ हुनका प्रति सम्मान, आदर आ प्रणाम (अभिवादनशीलता) केर भाव सेहो ओतबे महत्वपूर्ण अछि।
 
१. समस्त श्रेष्ठ कवि लोकनिक चरणकमल मे प्रणाम करैत छी जे हमर सब मनोरथ केँ पूरा करथि। कलियुगहु केर ओहि कवि लोकनि केँ हम प्रणाम करैत छी जे श्री रघुनाथजीक गुण समूह सभक वर्णन कयलनि अछि।
 
२. जे पैघ बुद्धिमान प्राकृत कवि छथि, जे विभिन्न भाषा मे हरि चरित्र केर वर्णन कयलनि अछि, जे एहेन कवि पहिने भऽ चुकल छथि, जे एहि समय वर्तमान मे छथि आर जे आगू हेताह, हुनका सब केँ हम सब कपट त्यागिकय प्रणाम करैत छी।
 
३. अपने सब प्रसन्न भ’ कय हमरा ई वरदान दी जे साधु समाज मे हमर कविताक सम्मान हो, कियैक तँ बुद्धिमान लोक जाहि कविता केँ आदर नहि करैत छथि, मूर्ख कवि ओहि तरहक रचना करबाक परिश्रम बेकारे करैत छथि।
 
४. कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वैह उत्तम होइछ जे गंगाजी जेकाँ सबहक हित करयवला हो।
 
५. श्री रामचन्द्रजी केर कीर्ति तऽ बड सुंदर (सभक अनन्त कल्याण करयवला) होइछ, लेकिन हमर कविता नीक नहि अछि। ई असामंजस्य भेल (अर्थात एहि दुनू के मेल नहि बनैत अछि), एकरे हमरा चिन्ता अछि। परन्तु हे कवि लोकनि! अहाँ सभक कृपा सँ ई बात सेहो हमरा लेल सुलभ भ’ सकैत अछि। रेशमीक सिलाई टाट पर सेहो सुहाओन लगैत छैक।
 
६. चतुर पुरुष वएह कविता केर आदर करैत छथि जे सरल हो और जाहि मे निर्मल चरित्र केर वर्णन हो तथा जेकरा सुनिकय शत्रु सेहो स्वाभाविक शत्रुता केँ बिसरिकय ओकर सराहना करय लागय। एहेन कविता बिना निर्मल बुद्धि केर होइत नहि छैक आर हमर बुद्धिक बल बहुते कम अछि, ताहि हेतु हम बेर-बेर निहोरा करैत छी जे हे कवि लोकनि! अहाँ कृपा करू जाहि सँ हम हरि यश केर वर्णन कय सकी।
 
७. कवि एवं पण्डितगण! अपने सब जे रामचरित्र रूपी मानसरोवर केर सुंदर हंस थिकहुँ, हम बालक केर विनती सुनिकय और सुंदर रुचि देखिकय हमरा पर कृपा करू।
 
हरिः हरः!!