— भावेश चौधरी।
सामान्य परिस्थिति में कोनो गृहस्थ सा पुछबन-‘जे ब्याह,उपनयन, मुंडन, मृत्यु भोज आदि में अपव्यय कतेक उचित?’, ता अधिकांश के जवाब याह रहत कि ‘पूरा अनुचित। एकर कारण पहिने से मानसिक तनाव रहैत अछि’।लेकिन तहिओ अधिकांश लोग अपन ताकत सा कतेको गुणा बेसी खर्च करैत छथि। यद्यपि एहि प्रकार के अपव्ययिता के कोनो धार्मिक विधान नहीं अछि, आ ने कोनो समाजिक बंधन।बंधन अई ता बस लोगक रूढ़िवादी मनोवृति के। प्रदर्शन आ धूम-धाम के प्रथा चलल गेल आ बढईत गेल। अनिच्छो सा सामाजिक कार्यक्रम में पैसा के पाइन जेका बहाइल जाईत अछि। एकर पाछू कतेको कारण छै।प्रमुख कारण में ‘संस्कार के प्रेरणा’ के राखल जा सकैत अछि।सामाजिक कार्यक्रम में अपव्ययता के एकटा जुनून,एकटा उन्माद आइब जाई छै!खर्च करई के त्योहार माइन लेल जायत अछि। मोन आ मुठ्ठी खोइल के खर्च करैत छथि।अपन जेबी में नै रहला पर कर्ज लैत छथि।घर,जमीन,आभूषण बेच दैत छथि। ई प्रथा आ परंपरा एतेक स्वाभाविक अछि जे बिना सिखब आ प्रयत्न के ई संस्कार में दीक्षित भा जाई अछि।, ऐहन संस्कार जाहि सा प्रेरित लोग नै चाहितो अई लेल विवश भेल रहै छथि।
अपव्ययता के एकटा और कारण लोक लज्जा के डर सेहो प्रमुख भेल।कम खर्च करय पर आलोचना सहय पड़ई छनि,अनेक तरह के विशेषण सा सुशोभित होयत छथि। अहि कटुता सा बचय के लेल अनर्गल खर्च भा जायत छै।
लेकिन विवेकशीलता याह में अय जे कोनो प्रथा या परंपरा अपनाबा सा पहिने ओकर औचित्य आ अनौचित्य पर विचार कायल जाय आ जे उपयुक्त होई,ओकरा ग्रहण करैत बाकी के परित्याग काल जाई। अहि उचित आ अनुचित के त्याग में लोक भय सा विचलित नई होबक चाही।
कतऊ कतऊ बड़प्पन देखेबाक लालसा लोक भय पर भारी होयत अछि ता कतो उल्टा।।अनेकों निर्बल-मना व्यक्ति अतिरिक्त खर्च के प्रदर्शन का समाज में अपना आप के पैग देखेबाक प्रयत्न करैत छथि आ एकरा प्रसन्नता के अभिव्यक्ति नाम दैत छथि।बाद में भले ही कतबो दिक्कत हुआ लेकिन तत्काल में पैसा के पाइन जेका बहाबैत छथि।लेकिन आब ई बुझनाई आ बुझेनाई जरूरी भा गेलैया कि अपव्ययता बड़प्पन के निशानी नै,बल्कि बड़प्पन के मानदंड सरलता,सादगी आ सत्कर्म भेल।अहि हेतु समाज के प्रबुद्धजन,सामाजिक संस्था आ नुक्कड़ नाटक द्वारा चेतना के विस्तार करबाक चाही।एक तय न्यूनतम खर्च सा बेसी खर्च करबाक इच्छुक व्यक्ति के ओहि पाई के सामाजिक शिक्षा,रोजगार,कल्याण आ न्याय में लगेबाक लेल प्रेरित करबाक चाही।।
जय मिथिला,जय मैथिली।।