स्वार्थी मनुष्यक बदलैत रूप-रंगः आजीवन असफल रहबाक कठोर सत्य
‘हम’ सफल होइ, ‘हम’ हर क्षेत्र मे नीक करी, ‘हम’ केकरो सँ आगू रही…. ई तीनू अवस्था जनसामान्य केर मनक भीतर होइते टा छैक। हँ, तेहने भुश्कोल छात्र रहत जे पहिने सँ हाथ-पैर चियारि देत, मुंह बाबि देत आ बकार हरण भ’ जेतैक तखन ओ ई सब भावना नहियो आनय से सम्भव अछि। जनसामान्य केर मन-मस्तिष्क मे सफलता प्राप्ति प्रमुख लक्ष्य होइत छैक। सब कियो एहि लेल प्रयत्नशील रहिते टा अछि। जेना-जेना जीवन आगू बढैत जाइत छैक तेना-तेना ई ‘हम एना…’, ‘हम ओना…’, ‘हम केना…’, ‘हमर ई….’, ‘हमर ओ….’, ‘हमहीं पहिने तखन कियो’… ई भावना खतरनाक रूप सँ बढैत चलि जाइत छैक बहुतो लोक मे। कतहु हम पढ़ने रही जे ई अति महात्वाकांक्षाक कारण मनुष्यक मानसिकता मे आत्मकेन्द्रित रहबाक बात आ अपना आगू दोसरक अस्तित्व केँ गौण कय देबाक या जानि बुझिकय नकारि देबाक अवस्था आबि गेल करैत छैक।
अपन मिथिला मे सेहो टका-पैसा कमेबाक होड़ लागल किछु दशक पहिने। आब जँ कियो अभाव मे जिनगी जियय के प्रयास करैत अछि त ओकरा गामघर मे ततबा थू-थू कयल जाइत छैक जे ओ कतबू कान मुनत तैयो ओकरा डेग-डेग पर ‘थू-थू’ करबाक स्वर सुनाइ पड़ि जाइत छैक आ ओहो भागैत अछि बस-ट्रेन पकड़य आ गाड़ी चढ़लाक बाद मंजिल कतय से सोचैत अछि। आर एहि तरहें आजुक समय अबैत-अबैत टका-पैसा कमेबाक होड़ सँ बढ़िकय खतरनाक भौतिकतावादी प्रदर्शन तक होड़बाजीक अवस्था पहुँचि गेलैक अछि। ई होड़बाजी एहेन छैक जे लोक केँ नैतिकता-अनैतिकताक भेदक विवेक केँ सेहो हरण कय लेलकैक। चोरी, डकैती, लूटपाट, हत्या, हिन्सा, ठगी, धोखाधड़ी, झूठ-फरेब… कय रंग के त्यज्य आ दुष्कर्म तक करय सँ लोक नहि डराइत अछि। ई थिकैक सामान्य जन सभक अवस्था।
एहेन परिस्थिति मे आपसी प्रेम आ भाइचारा सेहो लोकस्वार्थ केँ ‘भेंट’ (बलि) चढ़ि रहल देखाइत अछि। एक लोक अपन स्वार्थपूर्ति लेल दोसर केँ सीढ़ी जेकाँ प्रयोग करैछ आ समय पर ओकरे किनार करय सँ बाज नहि अबैछ। समाजसेवाक नाम पर या राजनीतिक कार्यकर्ता बनिकय एहेन छट्ठू सब विभिन्न खेल-वेल करय मे लागल अछि। भीतर मे लोकक सेवा या हित केर भावना कम आ स्वयं केना पद आ प्रतिष्ठा हासिल करब ताहि लेल बेहाल अछि। एहेन कतिपय लोक विगत १० वर्षक दरम्यान मैथिली-मिथिला मे सेहो प्रवेश कयलक, स्वार्थ कतेक पुरलय नहि पुरलय सब किछु छोड़ि-छाड़ि अलग भेल… फेर मोन नहि मानलकैक त फेरो मैथिली-मिथिला करब आरम्भ कयलक, कियो मैथिली-मिथिला मे स्वार्थक पूर्ति मे समस्या देखलक हिन्दी-हिन्दिया मे लागि गेल, आदि।
हमरा बुझने नैतिकताक मार्ग सँ हंटिकय होड़बाजीक संसार मे कोनो अनैतिक आ पापपूर्ण तरीका सँ मंजिल हासिल करबाक सोच छद्म आ क्षणिक मात्र भ’ सकैत अछि। असली मनसाय मे लोक प्रति सेवाक भावना नहि रहत त प्रकृति आ नियति अहाँ केँ कखनहुँ संग नहि देत, अन्हरिया मे हथोरिया मारैत रहू, अपटी खेत मे जान गमबैत रहू, चाहे जे करू। स्वार्थ किछु आर राखब आ से सिद्ध हुए ताहि लेल छक्का-पंजा दाव खेलायब त कतेक सफलता भेटत ई स्वयं सोचू।
हरिः हरः!!