आब जुग ओ नहि जे जनाधार बनेनिहार कोनो गरीब-गुरबाक मैनजन लेल लोक मतदान करत, आब सुस्पष्ट छैक जे टिकट सँ लैत चुनावी प्रचार आ जीतक लक्ष्य सँ चुनाव लड़निहार लेल करोड़ों रुपयाक दरकार पड़ैत छैक। चुनाव लेल आदर्श केवल शब्दाडंबर बनिकय रहि गेल छैक, असलियत यैह जे कार्यकर्ता सँ लैत अभियान संचालन सब किछु मे लाखों-करोड़ों रुपया पाइन जेकाँ बहेनाय आवश्यक भऽ गेलैक आब।
चुनाव आयोग सेहो एहि लेल निरन्तर चिन्तन करैत अछि। चुनावी खर्च पर अंकुश लगबैत अछि। आवश्यक खर्च लेल सीमा तय करैत अछि। लेकिन जाहि देश मे उज्जड़ आ कारी दुइ रंगक पैसा सँ आर्थिक रक्त संचार होइत छैक, ओतय विधि-व्यवस्था पर प्रशासकीय नियंत्रण सेहो संभव नहि छैक। एहन वीभत्स परिस्थिति मे सात्त्विक राज्य-शासनक कल्पना कतहु सँ साकार भेनाय सेहो असंभव छैक।
आइ मिथिलावादी एकटा दल मिथिलाँचल मुक्ति मोर्चा केर एक अपडेट सँ चिन्ता प्रकट करैत देखलहुँ। एहि मे क्रान्तिकारी जनमानस सँ धनबल केँ चुनावी तंत्र पर हावी होय सँ रोकबाक लड़ाई हेतु आह्वान अछि। निश्चित रूप सँ ई एकटा सकारात्मक आह्वान लागल। एहि मे कहल गेल छल जे बहुत पहिने बाहुबल चुनाव मे हावी होइत छल, तेकरा सँ पूर्वज काफी संघर्ष करैत जीत हासिल केलनि। मुदा वर्तमान समय मे धनबलक महिमा चुनावी तंत्र पर अपन कब्जा जमा रहल अछि। एकरो सँ संघर्ष करैत जीत हासिल करय पड़त।
प्रजातंत्र केर चुनाव मे संख्याबल केँ नाजायज कियो नहि कहि सकैत अछि, मुदा संख्याबल लेल अशिक्षाक प्रसार, जातिवादिताक उन्मादी नारा, सांप्रदायिक विभाजन सँ संख्याबल केर वृद्धि, अनैतिक रास्ता सँ मतदाता-ध्रुवीकरण आदि एहेन कमजोर पक्ष छैक जाहि पर न्यायपालिका, विधायिका आ प्रशासिका केँ सजग बनि नियंत्रण करब जरुरी छैक। चुनाव आयोग असगरे कतेक बात देखौक, विधायिका आ न्यायपालिकाक संग प्रशासिकाक जाबत एहि दिशानिर्देशक संग ईमानदार अनुपालन नहि हेतैक, ताबत कि स्वच्छ राजनीति आ भ्रष्टाचार सँ राष्ट्रतंत्र केँ मुक्ति भेटतैक? वर्तमान युग मे प्रत्येक राजनीतिक दल केर मुख्य एजेन्डा जातीय आधारित, धर्म आधारित, वर्ग आधारित आधार पर राजनीति करबाक तंत्र प्रचलन मे आबि गेलैक अछि। एहि तरफ बुद्धिजीवी आ नीतिनिर्माणकर्ताक ध्यानकेन्द्रित होयब सेहो जरुरी छैक। सबसँ पहिल आवश्यकता अशिक्षा सँ मुक्ति लेल जनमानस मे क्रान्तिक जरुरत छैक। जेना-जेना साक्षरता बढैत छैक, समाजक शुद्धीकरण सेहो तही गति मे होइत छैक।