फगुआ (होली) – दहेज मुक्त मिथिला ‘लेखनीक धार’ अन्तर्गतक पुरस्कृत लेख

लेख

– आभा झा

फगुआ (होली)

होली पर्व हिंदू पंचांगक अनुसार फागुन मासक पूर्णिमा क’ मनाओल जाइत छैक। होली रंगक संग हँसी-खुशी के पाबैन अछि। अपन मिथिला तथा नेपाल में ई प्रमुखता सँ मनाओल जाइत छैक। होली सँ एक दिन पहिने “सम्मत” जराओल जाइत छैक, जकरा “होलिका दहन” कहैत छी। दोसर दिन, जकरा प्रमुखतः धुरखेल या धुलेंडी व धुरड्डी अलग-अलग नाम सँ जानल जाइत छैक। अपन सबहक मिथिलाक आँगन में होली दिन भगवती के खीर-पुआ के पातैर पड़ैत छनि। हुनको अबीर चढ़ाओल जाइत छनि। एहेन मानल जाइत छैक कि होलीक दिन लोक अपन पुरान कटुता के बिसरि कऽ एक दोसर के संगी बनि जाइत छथि। राग-रंगक ई पाबैन बसंतक संदेशवाहक सेहो अछि। प्रकृति सेहो एहि समय रंग-बिरंगक यौवनक संग अपन चरम अवस्था पर होइत छैक।

होली पाबैन बसंत पंचमीये सँ आरंभ भ’ जाइत छैक। ओहि दिन पहिल बेर रंग-अबीरक खेल होइत छैक। अहि दिन सँ फाग के गीत प्रारंभ भऽ जाइत छैक।खेत खरिहान में सरिसों के पियर फूल खिल उठैत अछि। अपन मिथिला में बच्चा, बूढ़, जवान सब थाल, कादो, करिखा सँ होली खेलाइत छथि। मिथिलाक भाँग तऽ नामी अछि। पुरूख-पात तऽ भाँग सँ मतल रहैत छथि। बहुत गोटे एहि नशा में महिला सब संग अभद्र व्यवहार सेहो करैत छथि। एहि दिन सभ लोकक खूब आगत-स्वागत होइत छैक। अपन मिथिलाक प्रमुख पकवान पिड़ूकिया, पूआ, खीर, दहीबरा, मिठाई सब बनैत अछि।

होली मनाबै के पाछू पौराणिक महत्व सेहो अछि। पौराणिक कथा के अनुसार शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप छलाह, ओ अपना आपके भगवान मानैत छलाह, और चाहैत छलाह कि सब भगवानक जेकां हुनकर पूजा करैन। अपन पिता के आदेशक पालन नहिं करैत हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद हुनकर पूजा करै सँ मना कऽ देलखिन और हुनकर जगह भगवान विष्णुक पूजा करय लगलाह। अहि बात सँ नाराज हिरण्यकश्यप अपन पुत्र प्रह्लाद के कतेको दंड देलखिन जाहि सँ ओ प्रभावित नहिं भेला। ओकर बाद हिरण्यकश्यप और हुनकर बहिन होलिका मिलि कऽ एक योजना बनेलनि कि ओ प्रहलाद के संग चिता पर बइसती। होलिका के संग एक एहेन कपड़ा छलनि जकरा ओढ़ला के बाद हुनका आगि सँ कोनो तरहक नुकसान नहिं हेतेन, दोसर दिस प्रह्लाद के लग अपना आप के बचाबै के लेल किछ नहिं छलनि। जहाँ ने आगि जरल ओ कपड़ा होलिका के लग सँ उड़ि कऽ प्रह्लादक ऊपर चलि गेलनि। अहि तरहें प्रहलादक जान बचि गेलनि। यैह कारण अछि कि होली पाबैन बुराई पर अच्छाई के जीतक प्रतीक के रूप में मनाओल जाइत छैक।

ई पाबैन आस्था और विश्वासक प्रतीक अछि। बुराई, अहंकार और नकारात्मकता के जरबै वाला रंगक त्योहार सँ पहिने हर साल सांझ कऽ एक पवित्र अलाव जराओल जाइत छैक। होली बंधन, मित्रता एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्वक पाबैन अछि। होली के धार्मिक महत्व सेहो छैक जे भगवान श्रीकृष्ण सँ जुड़ल अछि, जिनकर रंग गाढ़ छलनि और माँ सँ शिकायत करैत छलाह कि सब गोपी और राधा के रंग गोर छनि फेर ओ कियैक पिंडश्याम छथि। गोपी कृष्णक मजाक उड़बैत छलखिन, ताहि दुवारे हुनकर माँ हुनका कहलखिन कि ओ गोपी और राधा के अपन मनपसंद रंग में रंगि सकैत छथि।

होली के वैज्ञानिक महत्व सेहो छैक। होली के समय बैक्टीरिया के सब सँ बेसी वृद्धि देखल जाइत छैक। होलिका दहन के दौरान आगि सँ निकलै वाला गर्मी आसपास के बैक्टीरिया के मारि दैत छैक, जे हमरा सबके होइ वाला खतरनाक बीमारी सँ बचबैत अछि।

होली के पावन पर्व ई संदेश आनैत अछि कि मनुष्य अपन ईर्ष्या द्वेष तथा परस्पर वैमनस्य के बिसरि कऽ समानता व प्रेम के दृष्टिकोण अपनाबैथ। ई पाबैन हमर सबहक संस्कृतिक विरासत अछि। सब सँ निवेदन अछि कि सौहार्दपूर्ण होली सबगोटे खेलाइ। जय मिथिला जय जानकी ।🙏🙏