लेख
– विवेकी झा
#लेखनी_के_धार #दहेज_मुक्त_मिथिला
फगुआ
अइछ सब एक रँग में रँगल॥
होलिका दहन आ होली मनाबै के पाछु एकटा प्रचलित कथा अइछ। कहल जायत छै दानव राजा हिरण्यकश्यप जे देवता सँ घृणा करैत छल आ ब्रम्हा सँ प्राप्त बरदान के कारण अपने के सर्व शक्तिशाली मानि भगवान बुझय लागल छल । हुनक पुत्र प्रह्लाद जे भगवान विष्णुक भक्त छल हुनकर पूजा करैत छल। अहि बात सँ क्रोध में आन्हर हिरण्यकश्यप अपन पुत्र प्रह्लाद के दंड दै लेल अपन बहिन होलिका के बजेलक जिनका पास एहेन कपड़ा छलनि जकरा ओढ़ला के बाद आगि सँ नय जरैत छली। अहिबात के फायदा उठबैत प्रह्लाद के ल होलिका आइग के चिता में प्रबेश केली । जिनका सँग भगवान हुनका की हैत नियति अपन काज केलक कपड़ा होलिका लग सँ हटी प्रहलादक सँ लिपैट गेल ताहि कारन प्रहलाद बची गेलैथ आ होलिका जरि गेली। ओही के प्रतीक स्वरुप सम्मत जरायल जायत छै ।
हम सब गांव में जखन होयत छी त अपन अगल बगल मिलैत-जुलैत राग-लय में किछु आम भाषाक गीत जरुर सुनइ में आबि जायत, जाहि में किछु प्रचलित ….जोगिरा श र र र जोगिरा रे ………गीत सुनाई द जायत । रघुबर सँ खेलब हम होली सजनी…रघुबर सँ …. आ होली खेले रघुबीरा….. जेकाँ गीत आहाँके होली के रँग में सराबोर क झुमै पर मजबुर क देत।
फगुआ आ भांग के मस्ती नय भेल से केना अहि क्रम में पुरा तरह स सब किछु बिसरा क सब एक भ जायत छै। फगुआ का विशेष पकवान पिड़कीया (गुझिया) हर घर में बनल भेट जायत। मालपुआ के बारे में की कहल जाय। जलेबी सेहो भाँग सँ डुबल, जे किछु खाय ओ सब आहाँ के हाथ के रँग सँ रँगायल ।