फगुआ – दहेज मुक्त मिथिला ‘लेखनीक धार’ अन्तर्गतक लेख

लेख

– विवेकी झा

#लेखनी_के_धार #दहेज_मुक्त_मिथिला

फगुआ

फगुआ अहि शब्द के तात्पर्य फागुन सँ अइछ । अंग्रेजी कैलेंडरक हिसाब सँ ई मार्च के महीना मे मनायल जायत अइछ । अपना सबहक हिसाब सँ कहल जाय त फाल्गुन के महीना भेलै फागुन। अहि महीना मे मनायल जाय बाला त्योहार अइछ होली । अपना ओइठाम बसंत पंचमी के बाद सँ होली शुरु भ जायत अइछ । अहि दिन रंग खेलै के परंपरा अइछ । बिहार आ यूपी मे सुबह मे रंगो वाली होली खेलैत छी आ फेर नहा-धो क अबीर और गुलाल के संग साँझ मे खेलाय के परंपरा अइछ । अहि दिन लोक सब झुंड बना सबहक दरबाजा पर घुइम फगुआ गाबैत सेहो भेट जायत ।  साँझ होइत टोली बना निकैल जायत केकरो पास ढोल त केकरो पास मजीरा । सब गोटे चौपाल पर जुइट गेल तखन की छै माहौल शुरू । गांव में फगुआ लोकगीत जेकरा आम भाषा मे फाग कहल जायत अइछ। धूरा-माटि सँ सेहो होली खेलल जायत छै, जेकरा हमसब धुड़खेल कहैत छी।
 
आयल बसंत अइछ धरा गमकल,
पूर्वा सँ ई तन बदन झुमल,
शिव प्रसाद सँ अइछ मन मतल,
फगुआ के रँग मे सब डुबल,
आँगन घर सराबोर बनल,
लाल, पियर, हरियर रँगल,
जन जन अइछ एक रँग बनल,
नय कोई कारी, नय कोई गोर चमकल,
बैर भाव अइछ एहन मिटल,
जाती धर्म के भेद हटल,
नय कोई हमरा चिन्हे,
नय हम केकरो चिन्ही,

अइछ सब एक रँग में रँगल॥

होलिका दहन आ होली मनाबै के पाछु एकटा प्रचलित कथा अइछ। कहल जायत छै दानव राजा हिरण्यकश्यप जे देवता सँ घृणा करैत छल आ ब्रम्हा सँ प्राप्त बरदान के कारण अपने के सर्व शक्तिशाली मानि भगवान बुझय लागल छल । हुनक पुत्र प्रह्लाद जे भगवान विष्णुक भक्त छल हुनकर पूजा करैत छल। अहि बात सँ क्रोध में आन्हर हिरण्यकश्यप अपन पुत्र प्रह्लाद के दंड दै लेल अपन बहिन होलिका के बजेलक जिनका पास एहेन कपड़ा छलनि जकरा ओढ़ला के बाद आगि सँ नय जरैत छली। अहिबात के फायदा उठबैत प्रह्लाद के ल होलिका आइग के चिता में प्रबेश केली । जिनका सँग भगवान हुनका की हैत नियति अपन काज केलक कपड़ा होलिका लग सँ हटी प्रहलादक सँ लिपैट गेल ताहि कारन प्रहलाद बची गेलैथ आ होलिका जरि गेली। ओही के प्रतीक स्वरुप सम्मत जरायल जायत छै ।

हम सब गांव में जखन होयत छी त अपन अगल बगल मिलैत-जुलैत राग-लय में किछु आम भाषाक गीत जरुर सुनइ में आबि जायत, जाहि में किछु प्रचलित ….जोगिरा श र र र जोगिरा रे ………गीत सुनाई द जायत । रघुबर सँ खेलब हम होली सजनी…रघुबर सँ …. आ होली खेले रघुबीरा….. जेकाँ गीत आहाँके होली के रँग में सराबोर क झुमै पर मजबुर क देत।

फगुआ आ भांग के मस्ती नय भेल से केना अहि क्रम में पुरा तरह स सब किछु बिसरा क सब एक भ जायत छै। फगुआ का विशेष पकवान पिड़कीया (गुझिया) हर घर में बनल भेट जायत। मालपुआ के बारे में की कहल जाय। जलेबी सेहो भाँग सँ डुबल, जे किछु खाय ओ सब आहाँ के हाथ के रँग सँ रँगायल ।