फगुआ – दहेज मुक्त मिथिला लेखनीक धार अन्तर्गत पुरस्कृत लेख

लेख

– कीर्ति नारायण झा

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फगुआ

मिथिला मे राम खेलथि होली मिथिला मे…… मिथिलाक ई प्रसिद्ध फगुआ गीत मिथिलाक गली-गली गुंजैत अछि फगुआ के समय मे। मिथिला जनकनन्दनी जानकी के गाम होयबाक कारणे भगवान राम के संग जानकी के होली खेलेबाक परिकल्पना करैत अछि। रंग अबीर के स्नेह आ सम्बन्ध के प्रतीक होली अर्थात् फगुआ जे फागुन मे खेलायल जाइत अछि, एहि सम्बन्धमे कहल जाइत अछि जे “जे जीबए से खेलय फागु” अर्थात् फगुआ केर महत्व मिथिला मे बहुत बेसी छैक।

फगुआ के इतिहास के सम्बन्ध मे कहल जाइत अछि जे प्रारम्भ मे विवाहित स्त्रीगण द्वारा हुनक परिवार के खुशी आओर समृद्धि वास्ते एकटा अनुष्ठान के रूप मे कयल जाइत छल। पौराणिक कथा केर अनुसार हिरण्यकश्यप के बहिन होलिका द्वारा प्रह्लाद के आगि मे भस्म करबाक लेल आगि मे कूदि जाइत छैथि मुदा प्रह्लाद के असीम भक्ति के कारण भगवान नारायण स्वयं प्रह्लाद केर रक्षा करैत छैथि आ होलिका जिनका वरदान प्राप्त छलैन्ह जे आगि हुनका प्रभावित नहिं कऽ सकैत अछि मुदा ईश्वर केर असीम कृपा के समक्ष सभ किछु सम्भव अछि। ओहि दिन के हमरा लोकनि फगुआ के एक दिन पूर्व होलिका दहन के रूप मे मनाबैत छी। अन्य कथा केर अनुसार कृष्ण केर मामा कंस द्वारा कृष्ण के हत्या के लेल पूतना नामक राक्षसी के पठबैत अछि जकर हत्या भगवान कृष्ण द्वारा कयल जाइत अछि। एहि अवसर पर समस्त नंदगांव में फगुआ मनाओल गेल। एहन अनेकानेक कथा एहि पाबनि सँ सम्बंधित घटित भेल अछि।

हम सभ अपना ओहिठाम अत्यन्त शालीनता केर संग फगुआ के पाबनि मनाबैत छी। अपन श्रेष्ठ के पएर पर अबीर खसा कऽ आशीर्वाद लैत छी। लाल रंग पुरिया के एकटा बाल्टी मे घोरि कऽ अपन संगी सभ संगे पिचकारी सँ रंग खेलएबाक आनंद एकटा अलगे होइत छैक। फगुआ दिन हमरा सभ भोरे उठि कऽ भरि बाल्टी रंग आ पिचकारी लऽ कऽ निकलि जाइत छलहुँ गामक धिया पूता के झुंड मे आ पूरा गाम मे घुमैत छलहुँ। एहि मे धनीक गरीब केर कोनो अन्तर नहिं होइत छल। फगुआ दिन सभटा अन्तर के ई पाबनि समाप्त कऽ दैत अछि। गामक प्रायः सभ आदमी हमर सभक प्रतीक्षा करैत छलाह आ पुनः हुनका सभ संगे रंग खेलाइत हुनका संग लैत आगू बढैत छलहुं। पकवान मे मालपुआ खाइत खाइत हमर सभक हालत खराब भऽ जाइत छल। सभक ओहिठाम कने कने खाए पड़ैत छल। हमरा लोकनि अत्यन्त शालीनता केर संग रंग खेलाइत छलहुँ। जिनका रंग खेलएबाक मोन नहिं होइत छलैन्ह हुनका हम सभ जबरदस्ती रंग नहिं दैत छलियन्हि।

पूरा गाम में एहि पावनि सँ एकटा अत्यन्त मजबूत सम्बन्ध स्थापित होइत छल आ आपस के दूरी समाप्त भऽ जाइत छल। पूरा शरीर रंग सँ सरावोर भऽ जाइत छल। फेर स्नान कयलाक उपरान्त गामक लोक सभक संग दरबज्जे दरबज्जे फगुआ गीत गेबाक लेल हारमोनियम ढोल झाइल बला सभ संगे जाइत छलहुँ आ बहुत नीक नीक फगुआ के गीत आ जोगीरा सरररर सभ गाओल जाइत छलैक। सभक दरबज्जापर सरबत आ पान सुपारी देल जाइत छलैक। कोनो कोनो दरबज्जापर भांग केर ब्यवस्था सेहो रहैत छलैक जकरा हम सभ विशेष कऽ कऽ फगुआ गाबय बला के पिया दैत छलियै आ तकर बाद ओकर गबै के अन्दाज आओर नीक भऽ जाइत छलैक।

भरि दिनक कार्यक्रम एकदम ब्यस्त रहैत छल। के अधिकारी? के विद्यार्थी आ के महीस चरबाह? कोनो अंतर नहि। सभटा अंतर के ई रंगीन फगुआ समाप्त कऽ दैत छल। मुदा आब एहि पाबनि के दशा आ दिशा दुनू बदलि रहल छैक। लोक रंग खेलेनाइ देहाती होयबाक परिचायक मानैत छैथि। कियो जँ गलती सँ रंग लगा देलकैन तऽ ओकरा सँ झगड़ा करबाक लेल तैयार भऽ जाइत छैथि । फगुआ के रंग आस्ते आस्ते मिथिला मे फीका भेल जा रहल अछि। सम्बन्ध केर मजबूती ढील भेल जा रहल अछि।

गाम मे एखनो धरि ई पाबनि किछु बचल अछि मुदा शहर मे एहि पाबनि के उद्येश्य के बिपरीत प्रभाव पड़ैत छैक। मिथिलाक इन्द्रधनुषी पाबनिक एहि परम्परा आ उद्येश्य के धीरे धीरे हमरा लोकनि बिसरल जा रहल छी आ आवश्यकता छैक एकर पुनरुत्थान के। फगुआ अबितहि अतीत में घुमय लगैत छी आ मोन होइत अछि पुनः धमगिज्जर करबाक लेल मुदा आब अपना के नियंत्रित करैत छी जे कियो आदमी एकरा खराब नहिं मानैथि। कियो मानसिक स्थिति पर प्रश्नचिन्ह नहिं लगाबैथि। जय मिथिला आ जय मिथिलाक पारम्परिक पाबनि तिहार! 🙏🙏🙏