केहेन जमाना उनटा

केहेन जमाना उनटा…

– प्रवीण नारायण चौधरी

स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते
ई छल कहियो नीतिक बात,
जातिवादिताक घोर वैमनस्यक राजनीति
बहबैत अछि उनटा बसात!!
मूर्ख-गँवारक संख्या बेसी –
शिक्षित समाज गौण आइ;
ताहि पर सँ लोकपलायन,
मिथिलाक मर्म छै खतरा मे,
केकरा बुझेबैक आ के ई बुझत,
उनटे ज्ञान देत “अहाँ तोड़ैत छी!”
“तोड़ू नहि – जोड़ू, बिहारी बनू!”
कि कहबय ओहि मूढजन केँ –
“रौ बूरि हरासंख! बनलें तऽ बिहारी,
बीत गेलौक देख सौवो साल,
देखा उपलब्धि एहि शत वर्ष मे,
कि जन्मल फेरो एकहु ओ लाल?
भेल कियो कि विद्यापति फेर,
आ कि आयल कपिल मुनि,
गौतम-कणाद कि आयल फेरो,
वाचस्पति आ कि भामती?
गार्गी-मैत्रेयी-अहिल्या फेरो भेली?
टूटि गेलौ सब मानव संहिता,
फूटि गेलौ समृद्ध संसार,
घर छोड़ि सब भागल फिरें,
तखन गरीबी मेटौ कपार!
बनो मिथिला बजो जानकी,
तखनहि अयथुन पाहुन राम!
घर-घर बेटी पूजथून गौरी,
सुधैर जेतौ ई दिनो बाम!”

हरि: हर:!!