– अरुण कुमार मिश्र।
मिथिलामे विवाह संबंधक लेल ‘सभा’ लगवाक परम्परा छलै। ओकर मूल उद्देश्य ई रहैत छलैक जे सम्बंधित परिवार आ बालकक पहिने शील-संस्कार ओ वैदुष्यक जनतब प्राप्त कएल जाय। विवाह-सम्बन्ध स्थापित करबामे ई एक मूलाधार होइत छलै। सत्तरिक उत्तरार्द्ध ओ अस्सीक पूर्वार्द्ध धरि सौराठ सभाक सकल आदर्श विलुप्त होवाक स्थितिमे आबि गेल छलै मुदा दहेज रुकबाक बदला बढ़िते चलल गेलै आ तकर आधार बनलै किछु नब प्रचलन सभ जेना- घरकथा, गताती, गोलट आदि।
बेसीतर कथा एही प्रक्रिया सँ स्थिर होमय’ लागल छलैक। सौराठ आबि ताहि सम्बंध पर मोहरे टा लागैत छलैक आ ‘सिद्धांत’ लिखाइत देरी विवाहक लेल प्रस्थान क’ जाथि। एहि सँ लेन-देन संबधी प्रक्रिया गोपनीय रहि जाइत छलैक। एकर विपरीत, ई एक सामाजिक प्रतिष्ठाक विषय सेहो बनलैक जे फल्लाँ बाबु केँ पुत्रक विवाह मे एते टका भेटलन्हि अछि।
गताती विवाह स’र कुटुम्ब आ सम्बन्धीक परिचयमे कएल गेल विवाह संबंध केँ कहल जाइत छैक। एक समयमे इ बहुतायतमे देखल जाइत छलैक मुदा आब कमे विवाह संबंध लोक गतातीमे करैत छैथ। पलायनवाद सँ जुझैथ मिथिलामे एकर प्रचलनक प्रमुख कारण छलैक जे ब’र आ कनिया दुनु पक्ष केँ सभ टा बुझल गमल रहैत छलन्हि आ इ वैवाहिक परिचय लेल आदर्श स्थिति रहैत छलैक।
एकर एक टा लाभ इहो होइत छलै जे ब’र कनिया केँ दाम्पत्य जीवनमे सामंजस्य आ स्थिरता शीघ्र स्थापित भ’ जाइत छलै आ कनियागत केँ दहेजमे किछु रियायत भेटैत छलै। दहेज पूर्ण रूपे समाप्त त’ नहि होइत छलै, शोख मनोरथ आ विवाह रातिक खर्चक नामपर जतेक बेसी कनियागत सँ भेट जाय तकर प्रयास वरागत दिस सँ होइत छलै। अस्तु।
—अरुण कुमार मिश्र