— भावेश चौधरी।
मिथिला में गोसाउनिक पूजा पीढ़ी दर पीढ़ी चलि आबि रहल अछि।हर गोत्र के अधिकांशतः अपन भिन्न कुलदेवता/ देवी होइत छथिन,लेकिन सबहक स्वरूप एक समान- मनोरम, वात्सल्यमयी,कल्याणकारी,दयामय आ फलदायनी।।मिथिला में कुलदेवता/देवी के उपासना गोसाउनिक रूप में परंपरागत तरीका सा होबैत आइब रहल अई। कुलदेवता/देवी के चयन के आधार के कोनो बुझल वृतांत हमरा लग उपलब्ध नै,लेकिन शायद कुलक पूर्वज के जाहि भगवान/भगवती सा मनोकामना पूर्ण भेलनि और जिनकर स्मरण मात्र सा सब रोग,शोक,दुख, दारिद्र्य आदि सा मुक्ति प्राप्ति भेलनि, हुंका ओ परिवार कल्याण हेतु कुल देवता बना गोसाउन घर मे स्थापित केलनि। हुनकर पूजा के ई परंपरा वंशानुगत चलईत रहल।अहि धार्मिक परंपरा में कोनो तरह के संशोधन अमंगलकारी मानल गेल।
दियादी बखड़ा के बाद घरक बटवाड़ा आ नया घर निर्माण शुरू भेल।लेकिन गोसाउन घर आ कुलदेवता के स्थानांतरण के अनुमति अपन संस्कृति में नै अछि।एक जगह स्थापित भेल भगवान/भगवती के दू मूंह बनबई के आज्ञा नै। लेकिन विभिन्न शास्त्रीय पद्धति द्वारा नया घर में प्राण प्रतिष्ठा स्वीकार्य अछि।अलग अलग जगह सा माईट पाइन आइन,धार्मिक रीति रिवाज सा पूजा करा नया गोसाउन घर स्थापित भा सकैत अछि ।आ सेहो अपन डीह के क्षेत्रफल में।नित्य पूजा के अलावा सब मांगलिक कार्य में गोसाउन घर में विशेष पूजा,आंचैर बदलनाई, पातैर देनाइ आदि के हरदम सा महत्व रहल।
विभिन्न कारण सा गांव सा पलायन बढ़ल।किछु पलायन अस्थाई भेल(जे दूर रहितो बीच बीच में गांव अबैत छथि,गांव के कार्यक्रम सा जुडल रहैत छथि),लेकिन किछु पलायन स्थाई भा गेल।पूर्वजक जमीन,मकान, गाछी, पोखइर सब छोरि नया शहर/राज्य/देश में स्थापित भा गेला। एहि क्रम में गोसाउन पूजा के भाग्य भाई/दियाद/समगोत्री के देनाई शुरू भेल।पूजा करई लेल मंत्र लेनाई जरूरी छै।मांसाहार(माछ आ देवी के चढ़ल माउस अपवाद) के त्यागी होबाक चाही।पारिवारिक स्थानांतरण आ विस्थापन के अलावा धर्म परिवर्तन,जानकार व्यक्ति या असगर सदस्य के असमय मृत्यु,संस्कार के क्षय, पाश्चात्य मानसिकता आदि के कारण पूजा में लोकनीक कमी बढ़इत जा रहल अछि।समगोत्री सदस्य के कमी या हुनकर पूजा के लेल अश्विकार्यता,पंडित के अभाव,आर्थिक स्थिति ठीक नई होबक कारण पंडित के व्यवस्था नै करब, भौतिकवादी आ विज्ञान के बेसी ज्ञान के कारण धर्म के आडंबर मानब आदि कतेको कारण सा समय संगे आब गोसाउन पूजा छूटय लागल।किछु जगह एखनो दियादी पूजा सा ता किछु जगह गछलाहा पंडित के कृपा सा भगवान के फूल, पाइन आ प्रसाद के नियमित भोग लागय छनि,लेकिन कतेको जगह कुलदेवता सालो साल भूखल प्यासल आ अपूज्य रहि रहल छैथ। किछु लोक ता बीच बीच में आईब के भुखल भगवान के पूजा पाठ का के मनाबई के प्रयास करैत रहैत छथि,लेकिन कतेको लोकनि के गोसावन घर सालों साल सा बंद छनि। टूटल देवार,लटकैत मकड़ा के जाल, मूस आ सांप के धोधैर,लंबा लंबा घास आ देवार पर पीपलक गाछ के बीच कुलदेवता/देवी अपन भक्तक वंश के संस्कार आ संस्कृति पर मुस्कराइत हुनकर आबई के प्रतीक्षा करैत हेता।।
जय मिथिला, जय मैथिली।।