“गोसाओन के रूपमे मातृशक्तिक उपासना”

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— आभा झा।                     

मिथिला में मैथिलक परंपरागत सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्र में सब सँ अग्रसर गोसाउनिक पूजा संग-संग भरि सालक पाबैन तिहार रहल अछि।मातृशक्तिक उपासना मिथिला में भगवती गोसाउनिक रूप में परंपरा सँ होइत आबि रहल अछि।मिथिला परंपरा सँ शक्ति उपासनाक केंद्र भूमि रहल अछि।ई प्रायः मिथिलाक सभ हिन्दू जातिक घर में कुल पुज्या छथि।मिथिला में पारिवारिक कोनो मांगलिक यज्ञ कार्य बिना हिनकर अभ्यर्थना सँ प्रारंभ नहिं होइत अछि।मुड़न,उपनयन,विवाह,द्विरागमन में हिनकर भक्ति भाव सँ अराधना कएल जाइत अछि आ यज्ञक पहिल निमंत्रण देल जाइत अछि।ई कुलदेवी प्रत्येक कुलक अलग अलग होइत छथि।कुलक पूर्वज अपन अपन सहायक उपकारी ईष्ट देवी के चूनि हुनकर स्थापना आ प्राण प्रतिष्ठा दय नित्य पूजा कय अपन हितेषी देवीक मान्यता प्रदान कएने छथि।महाकवि विद्यापति अपन गोसाउनिक वंदना में”जय जय भैरवी असुर भयाओनि पशुपति भामिनि माया”कहि अभ्यर्थना कयने छथि।ई गोसाउनि मिथिलान्तर्गत अलग अलग कुलक भिन्न भिन्न नाम धारिणी छथि।अधिकांश परिवार में हिनकर जे तीन स्वरूप प्राप्त भेल अछि से थिक महालक्ष्मी ,महासरस्वती आ महाकाली।महालक्ष्मी- ई देवी कुल परिवार के सभ प्रकारे वैभव प्रदायिनी देवी छथि।हिनकर अराधना सँ दरिद्रता दूर होइत अछि आ धन ,वैभव,सुख समृद्धि प्राप्त होइत अछि।मिथिला में परंपरा सँ प्रचलित अछि जे कुलदेवी रूप में महालक्ष्मीक अराधना केला सँ ओहि वंश के हिनकर कृपा सँ कोनो प्रकारक अभावक कष्ट नहिं भोगय पड़ैत छनि।महासरस्वती- भगवतीक दोसर स्वरूप में महासरस्वतीक आह्वान होइत अछि।ई विद्या,ज्ञान प्रदायिनी छथि।मान्यता अछि जे यदि कुल में एकोटा सरस्वती पुत्र या पुत्री विद्वान जन्म लेलक तँ सात पुश्त तक नाम यश लोक चर्चित रहैत अछि।महाकाली- ई देवी दुष्ट दानव संहार करय वाली आ सब कष्ट विपदा के टारि अनुगतक उद्धार करय वाली छथि।ई बलि सँ अत्यधिक प्रसन्न होइत छथि।मिथिलाक समाज में कुलदेवी भगवतीक तीन पिंडी में एकटा काली दोसर शीतला आ तेसर विषहरि देवीक पूजा होइत छनि।शीतला माय रोग शोक हारिणी छथि।विषहरि- ई विष हारिणी ,सर्प भय विनाशिनी तथा अभय दायिनी देवी छथि।मिथिला नदीक क्षेत्र अछि।एतय भारी वर्षा सँ सब साल भयानक बाढ़ि में असंख्य विषधर आबि जाइत छल आ सर्प दंश सँ अनेको लोकक मृत्यु भऽ जाइत छल। एतय के लोक एकरो देवी प्रकोप मानि सर्प पूजा प्रारंभ कयल आ सर्प माताक रूप में विषहरि देवी के प्रसन्न करवाक लेल घरे घर हिनकर पिंडी स्थापित कऽ अर्चना प्रारंभ भेल। कुल वंश में ककरो सर्प दंश सँ मृत्यु नहिं हो ताहि लेल हिनकर अराधना कएल जाइत अछि।मांगलिक कार्य में गोसाउन घर में पूजा ,पातैर ,अँचरी बदलनाइ एहि सबहक बड्ड महत्व रहल अछि।गाम में पलायन अनेकों कारण सँ बढ़ल।सब अपन जीविकोपार्जन लेल बाहर चलि गेल। कतेको के डीह पर तऽ कुलदेवता अपूज्य रहि जाइत छथि।घर में कोनो सदस्य के नहिं रहला पर गोसाउन घर सालों साल बंद रहैत अछि।हमर अंगना में हमर पितियौत दियादनी सब पूजा-पाठ करैत छथि।भगवती के पूरा परिवारक लोक देखभाल करय में सहयोग करैत छथि।परंतु एकटा सकारात्मक बात पर सेहो ध्यान देबाक चाही।जे लोक सब जीविकोपार्जन के कारण गाम छोड़ला पर मजबूर भेला ओ सब बाहरो रहि कऽ अपन अपन घर में ओतबै श्रद्धापूर्वक पूजा-पाठ करै छथि।यदि तर्कपूर्वक सोचल जाय तऽ गामक भगवती घर के अंचरा तरक भगवती और महानगर के फ्लैट में देवाल पर टांगल छोट छिन लकड़ी के मंदिर में राखल देवी-देवताक फोटो एके छथि।भगवान तऽ सर्वव्यापी छथि।🙏🙏

आभा झा (गाजियाबाद)