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गोपाल मोहन मिश्र केर दुइ गोट लघुकथा

*एक निश्चय-ठोस परिणाम*
एक लड़का एक दिन बहुत धनी आदमी के देखलक। ओहि धनी आदमीक ठाठ-बाठ  देखि कs लड़का के दिमाग में आयल कि वाह ! ज़िंदगी एहने हेबाक चाही आ फेर ओ सोचि लेलक कि आब   ओकरो धनवान बनबाक अछि। ओ कतेक दिन तक एकरा बारे में सोचलक आ फेर एकटा बिजनेस शुरू कैलक। कतेक दिन तक ओ कमाई में लागल रहल आ किछु पाई सेहो कमा लेलक। मुदा ओ ओतबा नहि कमा पाबि रहल छल, जाहि सं ओ धनवान बनि सकै। तैं आब ओकर धैर्य धीरे-धीरे खत्म होबs लागल।
 एहि बीच ओकर भेंट एक विद्वान   सं भेल। आ ओ ओहि विद्वान सं  एतेक बेसी प्रभावित भेल कि आब ओ विद्वान बनबाक निश्चय कैलक आ दोसरे दिन सं कमाई-धमाई छोड़ि कs पढबा़ में लागि गेल। आब समझि चुकल छल कि  पाई-संपत्ति सब मोह-माया छै, ज्ञान अर्जित केनाई सभ सं पैघ बात छै। ज्ञान के आगू तs पाई  फेल अछि।
ओ बड्ड ज़ोर-शोर से पढ़ाई शुरू कैलक आ किछु साल तक तs पढ़ाई निरंतर करैत रहल,लेकिन फेर जेना ओकर मन पढ़ाई में कनी कम लागs लगलै। धीरे-धीरे  ओ संगीत के तरफ आकर्षित होबs लागल। संगीत सुनि कs ओ अपन धुन में मगन भs जाईत छल। धीरे-धीरे ओकरा अनुभव होबs लगलै कि ओ संगीत के बहुत समझ रखैत अछि !
संयोग सं ओकर भेंट एक संगीतज्ञ  सं भेलै आ ओहि दिन ओहि संगीतज्ञ सं बातचीत के बाद ओ निर्णय कैलक, आब ओ संगीत सीखत। तैं ओहि दिन सं पढ़ाई बंद कs देलक आब संगीत सीेखs लागल।
किछु साल बाद संगीत सं सेहो ओकर मन ऊबs लागल आ ओ एक नेता बनबाक निश्चय कैलक। ओ सोचि लेलक कि एहि बेर कोई गलती नहि करब , नेता बनबाक अछि  तs बनब।
काफी उम्र बीत गेलै, नै ओ धनी भs सकल आ नै विद्वान। नै संगीत सीखि सकल आ नै नेता बनि सकल। तखन ओकरा बड्ड दुःख भेलै। एक दिन ओकरा एक महात्मा सं भेंट भेलै। ओ अपन दुःखक कारण बतेलक। महात्मा मुस्कुराईत बजलाह–“’बेटा ! दुनिया बड्ड चिक्कन छै। जहाँ-जहाँ जायब कोई न कोई आकर्षण देखाई देत। अहाँ  ओकरा पाछू भागब फेर सं अहाँ के किछु आर आकर्षित करत। यदि जीवन में किछु करबाक अछि तs एक निश्चय कs लियs आ फेर जीवन भरि ओहि पर ठोस प्रयास करैत रहू तs अहाँक उन्‍नति अवश्य होयत। बेर-बेर रुचि बदलैत रहला सं कखनों उन्नति नै कs सकब।” ! युवक के समझ में आबि गेलै !
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*”भगवान पर आस्था “*
         एकटा पुरान सन भवन में वैद्यजी केर मकान छल। पिछला हिस्सा में रहैत छलाह आ अगिला हिस्सा में क्लिनिक खोलने छलाह।  हुनकर पत्नी के आदत छलनि कि क्लिनिक खोलबा सं पहिने ओहि दिन के लेल आवश्यक सामानक लिस्ट एकटा चिठ्ठी में लिखि कs दs दैत छलीह। वैद्यजी क्लिनिक के कुर्सी पर बैसि कs पहिने भगवानक नाम लैत छलाह,फेर ओहि चिठ्ठी के खोलैत छलाह। पत्नी जे बात लिखने छलीह, ओकर भाव देखैत , फेर ओकर हिसाब करैत छलाह। फेर परमात्मा सं प्रार्थना करैत छलाह कि हे भगवान ! हम एकमात्र अहीं के आदेशानुसार अहाँक भक्ति छोड़ि कs एतय दुनियादारी के चक्कर में आबि बैसल छी। वैद्यजी कखनों अपन मुँह सं कोनों रोगी सं फ़ीस नहि माँगैत छलाह। कोई  दैत छल, कोई नहियो दैत छल,किन्तु एक बात निश्चित छल कि जखने ओहि दिनक आवश्यक सामान ख़रीदबा  योग्य पाई पूरा भs जाइत छल , ओकरा बाद ओ केकरो सं दवाई के पाई नहि लैत छलाह, चाहे रोगी कतबो धनवान कियै नहि हो।
         एक दिन वैद्यजी क्लिनिक खोललनि। कुर्सी पर बैसि कs परमात्मा के स्मरण कs , पाईक हिसाब लगाबs हेतु आवश्यक सामान वाला चिट्ठी खोललनि ,तs ओ चिठ्ठी  के एकटक देखते रहि गेलाह। एक बेर कनि तs हुनकर मन भटकि गेलनि। हुनका अपन आँखि के सामने तारा चमकs लगलनि,किन्तु शीघ्रहि ओ अपन तंत्रिका पर नियंत्रण पाबि लेलनि ।
         आँटा -दालि-चाऊर आदि के बाद पत्नी लिखलखीन – *”बेटीक विवाह 20 तारीख़ कs अछि, ओकर दहेजक सामान।”* वैद्यजी किछु देर सोचैत रहलाह, फेर बाकी चीजक क़ीमत लिखला के बाद दहेज के सामने लिखलैन – *”ई काज परमात्मा के छनि,परमात्मा जानथि।”

*

           एक-दू टा रोगी आएल छलखीन। हुनका वैद्यजी दवाई देलखीन। एहि दौरान एकटा पैघ कार हुनकर क्लिनिक के सामने आबि कs रुकल। वैद्यजी  ओकरा कोई खास महत्त्व नहि देलखीन,कारण कि कतेक कार वाला हुनका ओतs अबैत रहैत छलखीन। ओ सूटेड-बूटेड साहेब कार सं बाहर निकललाह आ नमस्ते कहि कs बेंच पर बैसि गेलाह। वैद्यजी कहलखीन कि यदि अहाँ के अपना लेल दवाई लेबाक अछि, तs स्टूल पर बैसि जाउ,ताकि अहाँ के नाड़ी देखि सकी।
     ओ साहेब कहs  लगलखीन – “वैद्यजी ! अहाँ हमरा नहि चिन्हलौं । हमर नाम कृष्णलाल अछि,लेकिन अहाँ हमरा चिन्हबो कोना सकैत छी ? कारण कि हमर 15-16 साल बाद अहाँ के क्लिनिक पर अयलहुं अछि।
      अहाँ के पिछला भेंटक हाल सुनबैत छी, फेर अहाँ के सब बात याद आबि जाएत। जखन हम पहिल बेर एतs आयल रही, तs हम स्वयं नहि आयल रही,अपितु ईश्वर हमरा अहाँ के लग लs अयलाह, कारण कि ईश्वर हमरा पर कृपा  कैलनि आ ओ हमर घर आबाद करs चाहैत छलाह।भेल ई छल कि हम कार सं अपन पैतृक घर जा रहल छलहुं। एकदम अहाँ के क्लिनिक के सामने हमर कार पंक्चर भs गेल छल। ड्राईवर कार के पहिया खोलि कs पंक्चर बनवाबs चलि गेल। अहाँ देखलहुं कि गर्मी में हम कार के लग ठाढ़ छलहुं, तs अहाँ हमरा लग अयलहुं आ क्लिनिक के तरफ इशारा कैलहुं आ कहलहुं कि इम्हर आबि कs कुर्सी पर बैसि जाउ। “आन्हर की चाहय दू टा आँखि” आ हम कुर्सी पर आबि कs बैसि गेलहुं।
        एक छोट बच्ची सेहो ओतs अहाँ के लग ठाढ़ छल आ बेर-बेर कहि रहल छल, ” चलू न बाबूजी ,हमरा भूख लागल अछि।” अहाँ ओकरा सं कहि रहल छलहुं कि बेटी कनि धीरज धर, चलैत छी। हम ई सोचि रहल छलहुं कि हमरा कारण अहाँ भोजन नहि कs रहल छी।
          हमरा कोनों दवाई खरीद लेबाक  चाही, ताकि अहाँ हमर बैसबाक भार महसूस नहि करी। हम कहलहुं -“वैद्यजी हम पिछला  5-6 साल सं इंग्लैंड में रहि कs कारोबार कs रहल छी। इंग्लैंड जाइ सं पहिने हमर विवाह भs गेल छल,लेकिन अखन तक बच्चा के सुख सं वंचित छी। एतहुं इलाज करेलहुं आ इंग्लैंड में सेहो, लेकिन किस्मत में निराशा के सिवा आर किछु नहि भेंटल ।
          अहाँ कहने छलहुं , ” हमर भाई ! भगवान सं निराश नहि होउ । याद राखू कि हुनकर कोष में कोनों चीज़ के कोई कमी नहि छै। आस-संतान, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु सब किछु  हुनके हाथ में छै। ई कोनों वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहि होईत छै आ नहि कोनों दवाई में होईत छै।  जे किछु होईत छै, सब भगवान के आदेश सं होईत छै। संतान भेंटत तs हुनके आदेश सं। हमरा याद अछि अहाँ बात करैत जा रहल रही आ संग-संग पुड़िया सेहो बनेने जाईत रही। सब दवाई अहाँ  दू भाग में विभाजित कs दू अलग-अलग लिफाफ में रखने रही आ फेर हमरा सं पूछि कs एक लिफाफ पर हमर आ दोसर पर हमर पत्नी के नाम लिखि कs दवाई उपयोग करबाक तरीका बतेलहुं।
           हम तखन बेमन  सं ओ दवाई लेनेे रही, कारण कि हम एकमात्र किछु पाई अहाँ के देबs चाहैत छलहुं। लेकिन जखन दवाई लेला के बाद हम पाई पूछलहुं,तs अहाँ कहलहुं, सब ठीक छै। हम फेर आग्रह कैलहुं, तs अहाँ कहलहुं कि आई के खाता बंद भs गेलै। हमरा हुनकर बात समझ नहि आयल। एहि बीच ओतs एक आर आदमी आयल,ओ हमरा दूनू के चर्चा सुनि कs हमरा बतौलनि कि खाता बंद होई के मतलब ई छै कि आई घरेलू खर्च के लेल जतेक राशि वैद्यजी भगवान सं माँग कैलनि ओ ईश्वर हुंनका दs देलखीन। बेसी पाई ओ नहि लs सकैत छैथ।
          हम किछु अचम्भित  भेलहुं आ किछु हृदय में लज्जित भेलहुं कि हमर विचार कतेक निम्न छल आ ई सरलचित्त वैद्य कतेक महान छैथ।
हम जखन घर जा कs पत्नी के औषधि देखेलियनि आ सब बात बतेलियनि तs हुंनका मुँह सं निकलल, ओ मनुक्ख नहि कोनों देवता छैथ आ हुनकर देेल दवाई हमर मन के अभिलाषा पूरा करबाक कारण बनत। आई हमर घर में दू टा फूल खिलल छैथ। हम  दूनू पति-पत्नी हर समय अहाँ के लेल प्रार्थना करैत रहैत छी। एतेक साल तक कारोबार में फ़ुरसत नहि भेंटल कि स्वयं आबि कs अहाँ सं धन्यवाद के दू शब्द कहि जैतहुं। एतेक साल बाद आई भारत अयलहुं आ कार सीधा एतहि रोकलहुं।
          वैद्यजी हमर पूरा परिवार इंग्लैंड में सेटल भs गेल अछि। एकमात्र हमर एक विधवा बहिन अपन बेटी के संग भारत में रहैत छैथ । हमर भगिनी के विवाह एहि महीना  के 21 तारीख कs होई के छै। नहि जानी किये, जखन-जखन हम अपन भगिनी के विवाह के लेेल कोनों सामान खरीदैत छलहुं, तs हमर आँखि के सामने अहाँ के ओ छोट बेटी आबि जाईत छल आ प्रत्येक सामान हम दोहरा खरीद लैत छलहुं। हम अहाँ के विचार के जनैत छलहुं कि संभवतः अहाँ ओ सामान नहि लेेब, किन्तु हमरा लगैत छल कि हमर अपन भगिनी के संग जे चेहरा हमरा बेर-बेर देखाईत रहैत अछि, ओहो हमर भगिनी अछि। हमरा लगैत अछि कि ईश्वर एहू भगिनी के विवाह में हमरा ज़िम्मेदारी दs रहलाह अछि ।
          वैद्यजी के आँखि आश्चर्य सं खुलल के खुलल रहि गेल। बहुत धीरे आवाज़ में कहलनि – ” कृष्णलाल जी,अहाँ जे किछु कहि रहल छी हमरा किछु समझ नहि आबि रहल अछि कि ईश्वर के ई कोन माया छै। अहाँ हमर श्रीमती के हाथ के लिखल ई चिठ्ठी देेखू।” वैद्यजी चिट्ठी खोलि कs कृष्णलाल जी के पकड़ा देलनि।
कंपैत आवाज़ में वैद्यजी बजलाह – *”ई काज परमात्मा के छैनि, परमात्मा जानथि।”*
 –गोपाल मोहन मिश्र
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